अकालो नास्ति धर्मस्य

जीविते चञ्चले सति ।

गृहीत: इव केशेषु

मृत्युना धर्मम् आचरेत् ॥

जिथे जीवनच अनिश्चित आहे तिथे कोणतीही वेळ धर्माचरणासाठी प्रतिकूल असू शकत नाही . नेहमी हे गृहीत धरूनच धर्माचरण करायला हवं की मृत्यू अतिशय जवळ आहे .

जब की जीवन अनिश्चित हैं , अतः कोई भी समय इतना विपरित नहीं हो सकता की जीवन को धर्म के आधार पर न जिया जा सके । सदैव यहि सोचकर धर्म का आचरण करना चाहिये , की मृत्यु एकदम सन्निकट हैं ।

When this life is full of uncertainty there is no time which is unfavourable for living the life as per the ‘dharma’ . Think as if death is within it’s reach to you and obey the ‘dharma’ .