२४० . ।। नान्यत् ।।
दानेन तुल्यो विधिरास्ति नान्यो
लोभोच नान्योस्ति रिपुः पृथिव्याम् ।
विभूषणं शीलसमं च नान्यत्
सन्तोषतुल्यं धनमस्ति नान्यत् ।।
दानासारखा दुसरा कोणता विधी नाही , लोभासारखा दुसरा कोणता शत्रू नाही . शीलासारखे दुसरे विभूषण नाही आणि समाधानासारखे दुसरे कोणते धन नाही .
दान के समान दुसरी कोई विधि नहीं हैं , लोभ के समान दुसरा कोई शत्रु नहीं हैं । शील के समान दुसरा भूषण नहीं हैं और संतोष के समान अन्य कोई धन नहीं हैं ।
There is no ritual ( vidhi) that is more noble than giving ( dana) , there is no worse enemy
than greed . There is no better ornament than good character , there is no better wealth
than contentment ( santosha) .