यथा ह्येकेन चक्रेन न रथस्य गतिर्भवेत् ।

एवं पुरुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ।।

ज्या प्रमाणे केवळ एक चाकाने रथाला गती प्राप्त होणे शक्य नाही , त्याच प्रमाणे पुरुषार्थ आणि परिश्रमाविना केवळ दैवाच्या भरवश्यावर कार्यसिद्धी होणे शक्य नाही .

जिस प्रकार केवल एक पहिये से रथ की गति संभव नहीं है , उसी प्रकार पुरुषार्थ और परिश्रम के बिना केवल भाग्य से कार्य सिद्ध नहीं होते हैं ।

Just as a chariot cannot run on a single wheel , in the same way mere destiny ( daiva) alone will not accomplish a task without human effort or initiative ( purushakaran).