Month: March 2017

Subhashitam 5

नाप्राप्यमभिवांछन्ति नष्टं नेछन्ति शोचितुम् । आपत्स्वपि न मुह्यन्ति नराः पण्डितबुद्धयः ।। वास्तव में वही व्यक्ति श्रेष्ठ तथा बुद्धिमान हैं, जो न मिलने वाली वस्तु की इच्छा नहीं करते, नष्ट हुई वस्तु का शोक नहीं करते तथा विपत्तियों...

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Subhashitam 4

विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा, सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः। यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ, प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्।। विपत्तिकाल में धैर्य धारण करना और समृद्धिकाल में क्षमाशीलता, सभा में वचन नैपुण्य, युद्धभूमि में शौर्य, यश...

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Subhashitam 3

शान्तितुल्यं तपो नास्ति न संतोषात्परं सुखम् । न तृष्णया: परो व्याधिर्न च धर्मो दया परा: || शांती के समान कोई तप नही है, संतोष से श्रेष्ठ कोई सुख नही, तृष्णा से बढकर कोई रोग नही और दया से बढकर कोई धर्म नही...

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Subhashitam 2

धनेन किं यो न ददाति नाश्नुते बलेन किं यश्च रिपुर्न बाधते । श्रुतेन किं यो न च धर्ममाचरेत् किमात्मना यो न जितेन्द्रियो भवेत् ॥   उस धन से क्या है ? जो न देता है और न खाता है, उस बल से क्या है ? जो वैरियों को नहीं सताता है,...

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Bhagavadgita 10-15, श्रीमद्भगवद्गीता १०-१४

श्लोकः स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम। भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते।।१०-१५।। सन्धि विग्रहः स्वयम् एव आत्मना आत्मानम् वेत्थ त्वम् पुरुषोत्तम। भूत-भावन भूत-ईश देव-देव जगत्-पते।।१०-१५।। श्लोकार्थः हे पुरुषोत्तम!...

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