ॐ नम: शिवाय ॐ नम: शिवाय

ॐ नम: शिवाय ॐ नम: शिवाय

ॐ नम: शिवाय

दारिद्र्यदहन शिवस्तोत्रम्॥

Daaridryadahana Shiva

Stotram

विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय,

कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय।

कर्पूरकांतिधवलाय जटाधराय,

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥

गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय,

कालांतकाय भुजगाधिपकंकणाय।

गंगाधराय गजराजविमर्दनाय,

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥

भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय,

उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय।

ज्योतिर्मयाय गणनाथसुनृत्यकाय,

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥

चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय,

भालेक्षणाय मणिकुंडलमंडिताय।

मंजिरपादयुगलाय जटाधराय,

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥

पंचाननाय फणिराजविभूषणाय,

हेमांशुकाय भुवनत्रयमंडिताय।

आनंदभूमिवरदाय तपोमयाय,

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥

भानुप्रियाय भवसागरतारणाय,

कालांतकाय कमलासनपूजिताय।

नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय,

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥

रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय,

नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय।

पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय,

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय,

गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय।

मातंगचर्मवसनाय महेश्वराय,

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥

वसिष्ठेन कृतं स्तोत्र सर्वरोगनिवारणम्,

सर्वसंपत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनं।

त्रिसंध्ययः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात्,

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥

॥इति वसिष्ठविरचितं

दारिद्र्यदहन स्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

॥हर हर महादेव॥💐

ईश्वर ने हर एक मनुष्य के

भाग्य में लिख दिया है कि

किसको कब और क्या

और कहाँ मिलेगा।

पर यह नहीं लिखा होता है

कि वह कैसे मिलेगा।

यह हमारे कर्म तय करते हैं।

हमारे कर्म ही हमारा भाग्य,

यश,अपयश,लाभ,हानि,

जय,पराजय,दुःख,शोक,

लोक,परलोक तय करते हैं।

हम इसके लिये ईश्वर को

दोषी नहीं ठहरा सकते हैं..!!

एक बार एक शिव भक्त

मंदिर गया।

पैरों में महँगे और नये जूते होने

पर सोचता है कि क्या करूँ ?

यदि बाहर उतार कर जाता हूँ तो

कोई उठा न ले जाये और अंदर

पूजा में मन भी नहीं लगेगा;

सारा ध्यान् जूतों पर ही रहेगा।

उसे बाहर एक भिखारी

बैठा दिखाई देता है।

वह धनिक भिखारी से कहता

है,,”भाई मेरे जूतों का ध्यान

रखोगे ?

जब तक मैं पूजा करके वापस

न आ जाऊँ” भिखारी हाँ कर

देता है।

अंदर पूजा करते समय भक्त

सोचता है कि,,” हे प्रभु आपने

यह कैसा असंतुलित संसार

बनाया है ?

किसी को इतना धन दिया है

कि वह पैरों तक में महँगे जूते

पहनता है तो किसी को अपना

पेट भरने के लिये भीख तक

माँगनी पड़ती है !

कितना अच्छा हो कि सभी

एक समान हो जायें!!”

वह धनिक निश्चय करता है कि

वह बाहर आकर भिखारी को

100 का एक नोट देगा।

बाहर आकर वह भक्त देखता

है कि वहाँ न तो वह भिखारी

है और न ही उसके जूते ही।

धनिक ठगा सा रह जाता है।

वह कुछ देर भिखारी का

इंतजार करता है कि शायद

भिखारी किसी काम से कहीं

चला गया हो।

पर वह नहीं आया।

भक्त दुखी मन से नंगे पैर

घर के लिये चल देता है।

रास्ते में फुटपाथ पर देखता

है कि एक आदमी जूते चप्पल

बेच रहा है।

भक्त चप्पल खरीदने के

उद्देश्य से वहाँ पहुँचता है,

पर क्या देखता है कि उसके

जूते भी वहाँ रखे हैं।

जब भक्त दबाव डालकर

उससे जूतों के बारे में पूछता

हो वह आदमी बताता है कि

एक भिखारी उन जूतों को

100 रु. में बेच गया है।

भक्त वहीं खड़े होकर कुछ

सोचता है और मुस्कराते हुये

नंगे पैर ही घर के लिये चल

देता है।

उस दिन भक्त को उसके सवालों

के जवाब मिल गये थे—-

समाज में कभी एकरूपता नहीं

आ सकती,क्योंकि हमारे कर्म

कभी भी एक समान नहीं

हो सकते।

और जिस दिन ऐसा हो गया

उस दिन समाज-संसार की

सारी विषमतायें समाप्त हो

जायेंगी।

ईश्वर ने हर एक मनुष्य के

भाग्य में लिख दिया है कि

किसको कब और क्या

और कहाँ मिलेगा।

💐पर यह नहीं लिखा होता

है कि वह कैसे मिलेगा।💐

यह हमारे कर्म तय करते हैं।

जैसे कि भिखारी के लिये उस

दिन तय था कि उसे 100 रु.

मिलेंगे,पर कैसे मिलेंगे यह उस

भिखारी के कर्म ने तय किया।

हमारे कर्म ही हमारा भाग्य,

यश,अपयश,लाभ,हानि,जय,

पराजय,दुःख,शोक,लोक,

परलोक तय करते हैं।

हम इसके लिये ईश्वर को

दोषी नहीं ठहरा सकते हैं..!!

जयति पुण्यसनातन संस्कृति💐

जयति पुण्यभूमि भारत💐

जयतु जयतु हिंदुराष्ट्रं💐

सदा सर्वदा सुमंगल💐

ॐ नम: शिवाय💐

कष्ट हरो,काल हरो💐

दुःख हरो,दारिद्र्य हरो💐

हर हर महादेव💐

जयभवानी💐

जयश्रीराम💐