नालोकः क्रियते सूर्ये भूः प्रतीपं न धार्यते ।

न हि प्रत्युपकाराणामपेक्षा सत्सु विद्यते ॥

–सुभाषितरत्नभाण्डागारः पु. ४६.७७

न आलोकः क्रियते सूर्ये भूः प्रतीपं न धार्यते । न हि प्रत्युपकाराणाम् अपेक्षा सत्सु विद्यते ॥

सूर्ये आलोकः न क्रियते। भूः प्रतीपं न धार्यते । सत्सु प्रत्युपकाराणाम् अपेक्षा न हि विद्यते ॥

सूरज पर प्रकाश नहीं डाला जा सकता (वह स्वयं ही प्राकश करता है)। धरती को धारण नहीं किया जासकता (वह स्वयं ही धारण करती है)। (उसी प्रकार) सज्जन व्यक्तियों में (अपने द्वारा किए गए भलाई के) प्रतिफल की इच्छा नहीं रहती है।

Light cannot be shone on the Sun (for he is the light himself). The Earth cannot be held in return (for she is the supporter of everything). There is no expectation of any good in return, in the noble people (for the good that they do to others).