क्षत्रियः. (5) – मूर्धाभिषिक्त (पुं), राजन्य (पुं), बाहुज (पुं), क्षत्रिय (पुं), विराज् (पुं)
2.8.1.1 – मूर्धाभिषिक्तो राजन्यो बाहुजः क्षत्रियो विराट्

राजा. (7) – राज् (पुं), राज् (पुं), पार्थिव (पुं), क्ष्माभृत् (पुं), नृप (पुं), भूप (पुं), महीक्षित् (पुं)
2.8.1.2 – राजा राट्पार्थिवक्ष्माभृन्नृपभूपमहीक्षितः

सर्वसंनिहितनृपवशकारी. (1) – अधीश्वर (पुं)
2.8.2.1 – राजा तु प्रणताशेषसामन्तः स्यादधीश्वरः

चक्रवर्ती. (2) – चक्रवर्तिन् (पुं), सार्वभौम (पुं)
मण्डलेश्वरः. (1) – मण्डलेश्वर (पुं)
2.8.2.2 – चक्रवर्ती सार्वभौमो नृपोऽन्यो मण्डलेश्वरः

2.8.3.1 – येनेष्टं राजसूयेन मण्डलस्येश्वरश्च यः

सम्राट्. (1) – सम्राट् (पुं)
राजसमूहः. (1) – राजक (नपुं)
2.8.3.2 – शास्ति यश्चाज्ञया राज्ञः स सम्राडथ राजकम्

क्षत्रियसमूहः. (1) – राजन्यक (नपुं)
2.8.4.1 – राजन्यकं च नृपतिक्षत्रियाणां गणे क्रमात्

मन्त्री. (3) – मन्त्रिन् (पुं), धीसचिव (पुं), अमात्य (पुं)
सहायकारिः. (1) – कर्मसचिव (पुं)
2.8.4.2 – मन्त्री धीसचिवोऽमात्योऽन्ये कर्मसचिवास्ततः

प्रधानोद्योगस्थाः. (2) – महामात्र (पुं), प्रधान (नपुं)
धर्माध्यक्षः. (2) – पुरोधस् (पुं), पुरोहित (पुं)
2.8.5.1 – महामात्राः प्रधानानि पुरोधास्तु पुरोहितः

न्यायाधीशः. (2) – प्राड्विवाक (पुं), अक्षदर्शक (पुं)
2.8.5.2 – द्रष्टरि व्यवहाराणां प्राड्विवाकाक्षदर्शकौ

द्वारपालकः. (5) – प्रतीहार (पुं), द्वारपाल (पुं), द्वाःस्थ (पुं), द्वास्थित (पुं), दर्शक (पुं)
2.8.6.1 – प्रतीहारो द्वारपालद्वास्थद्वास्थितदर्शकाः

राज्ञः रक्षिगणम्. (2) – रक्षिवर्ग (पुं), अनीकस्थ (पुं)
अधिकारी. (2) – अध्यक्ष (पुं), अधिकृत (पुं)
2.8.6.2 – रक्षिवर्गस्त्वनीकस्थोऽथाध्यक्षाधिकृतौ समौ

एकग्रामाधिकारी. (1) – स्थायुक (पुं)
बहुग्रामाधिकृतः. (1) – गोप (पुं)
2.8.7.1 – स्थायुकोऽधिकृतो ग्रामे गोपो ग्रामेषु भूरिषु

सुवर्णाधिकृतः. (2) – भौरिक (पुं), कनकाध्यक्ष (पुं)
रूप्याधिकृतः. (2) – रूप्याध्यक्ष (पुं), नैष्किक (पुं)
2.8.7.2 – भौरिकः कनकाध्यक्षो रूप्याध्यक्षस्तु नैष्किकः

अन्तःपुराधिकृतः. (1) – अन्तर्वंशिक (पुं)
2.8.8.1 – अन्तःपुरे त्वधिकृतः स्यादन्तर्वंशिको जनः

अन्तःपुरस्य रक्षाधिकारी. (4) – सौविदल्ल (पुं), कञ्चुकिन् (पुं), स्थापत्य (पुं), सौविद (पुं)
2.8.8.2 – सौविदल्लाः कञ्चुकिनः स्थापत्याः सौविदाश्च ते

अन्तःपुरचारिणनपुंसकाः. (2) – शण्ढ (पुं), वर्षवर (पुं)
सेवकः. (3) – सेवक (पुं), अर्थिन् (पुं), अनुजीविन् (पुं)
2.8.9.1 – शण्ढो वर्षवरस्तुल्यौ सेवकार्थ्यनुजीविनः

स्वदेशाव्यवहितदेशराजा. (1) – शत्रु (पुं)
शत्रुराज्याव्यवहितराजा. (1) – मित्र (नपुं)
2.8.9.2 – विषयानन्तरो राजा शत्रुर्मित्रमतः परम्

शत्रुमित्राभ्यां परतरः राजा. (1) – उदासीन (पुं)
पृष्ठतो वर्तमानः राजा. (1) – पार्ष्णिग्राह (पुं)
2.8.10.1 – उदासीनः परतरः पार्ष्णिग्राहस्तु पृष्ठतः

शत्रुः. (7) – रिपु (पुं), वैरिन् (पुं), सपत्न (पुं), अरि (पुं), द्विषत् (पुं), द्वेषण (पुं), दुर्हृद् (पुं)
2.8.10.2 – रिपौ वैरिसपत्नारिद्विषद्द्वेषणदुर्हृदः

शत्रुः. (7) – द्विष् (पुं), विपक्ष (पुं), अहित (पुं), अमित्र (नपुं), दस्यु (पुं), शात्रव (पुं), शत्रु (पुं)
2.8.11.1 – द्विड्विपक्षाहितामित्रदस्युशात्रवशत्रवः

शत्रुः. (5) – अभिघातिन् (पुं), पर (पुं), अराति (पुं), प्रत्यर्थिन् (पुं), परिपन्थिन् (पुं)
2.8.11.2 – अभिघातिपरारातिप्रत्यर्थिपरिपन्थिनः

तुल्यवयस्कः. (3) – वयस्य (पुं), स्निग्ध (पुं), सवयस् (पुं)
मित्रम्. (3) – मित्र (पुं), सखि (पुं), सुहृद् (पुं)
2.8.12.1 – वयस्यः स्निग्धः सवया अथ मित्रं सखा सुहृत्

सख्यधर्मः. (2) – सख्य (नपुं), साप्तपदीन (नपुं)
अनुसरणम्. (2) – अनुरोध (पुं), अनुवर्तन (नपुं)
2.8.12.2 – सख्यं साप्तपदीनं स्यादनुरोधोऽनुवर्तनम्

चारपुरुषः. (5) – यथार्हवर्ण (पुं), प्रणिधि (पुं), अपसर्प (पुं), चर (पुं), स्पश (पुं)
2.8.13.1 – यथार्हवर्णः प्रणिधिरपसर्पश्चरः स्पशः

चारपुरुषः. (2) – चार (पुं), गूढपुरुष (पुं)
विश्वासाधारः. (2) – आप्त (पुं), प्रत्ययित (वि)
2.8.13.2 – चारश्च गूढपुरुषश्चाप्तप्रत्ययितौ समौ

ज्यौतिषिकः. (4) – सांवत्सर (पुं), ज्यौतिषिक (पुं), दैवज्ञ (पुं), गणक (पुं)
2.8.14.1 – सांवत्सरो ज्यौतिषिको दैवज्ञगणकावपि

ज्यौतिषिकः. (4) – मौहूर्तिक (पुं), मौहूर्त (पुं), ज्ञानिन् (पुं), कार्तान्तिक (पुं)
2.8.14.2 – स्युर्मौहूर्तिकमौहूर्तज्ञानिकार्तान्तिका अपि

तत्वार्थज्ञाता. (2) – तान्त्रिक (पुं), ज्ञातसिद्धान्त (पुं)
सदान्नादिदानकर्तुः गृहस्थः. (2) – सत्रिन् (पुं), गृहपति (पुं)
2.8.15.1 – तान्त्रिको ज्ञातसिद्धान्तः सत्री गृहपतिः समौ

लेखकः. (4) – लिपिकार (पुं), अक्षरचण (पुं), अक्षरचुञ्चु (पुं), लेखक (पुं)
2.8.15.2 – लिपिकारोऽक्षरचरणोऽक्षरचुञ्चुश्च लेखके

लिपिः. (2) – लिपि (स्त्री), लिबि (स्त्री)
2.8.16.1 – लिखिताक्षरविन्यासे लिपिर्लिबिरुभे स्त्रियौ

दूतः. (2) – सन्देशहर (पुं), दूत (पुं)
दूतकर्मः. (1) – दूत्य (नपुं)
2.8.16.2 – स्यात्सन्देशहरो दूतो दूत्यं तद्भावकर्मणी

पान्थः. (5) – अध्वनीन (पुं), अध्वग (पुं), अध्वन्य (पुं), पान्थ (पुं), पथिक (पुं)
2.8.17.1 – अध्वनीनोऽध्वगोऽध्वन्यः पान्थः पथिक इत्यपि

राजा. (1) – स्वामिन् (पुं)
मन्त्री. (1) – अमात्य (पुं)
मित्रम्. (1) – सुहृद् (पुं)
भण्डारम्. (1) – कोश (पुं)
स्वभूमिः. (1) – राष्ट्र (नपुं)
पर्वतादयः. (1) – दुर्ग (नपुं)
सेना. (1) – बल (पुं)
2.8.17.2 – स्वाम्यमात्यसुहृत्कोशराष्ट्रदुर्गबलानि च

राज्याङ्गाः. (2) – राज्याङ्ग (नपुं), प्रकृति (स्त्री)
2.8.18.1 – राज्याङ्गानि प्रकृतयः पौराणां श्रेणयोऽपि च

राज्यगुणः. (6) – सन्धि (पुं), विग्रह (पुं), यान (नपुं), आसन (नपुं), द्वैध (नपुं), आश्रय (पुं)
2.8.18.2 – सन्धिर्ना विग्रहो यानमासनं द्वैधमाश्रयः

राजशक्तिः. (3) – प्रभाव (पुं), उत्साह (पुं), मन्त्रजा (स्त्री)
2.8.19.1 – षड्गुणा: शक्तयस्तिस्रः प्रभावोत्साहमन्त्रजाः

अष्टवर्गाणां क्षयः. (1) – क्षय (पुं)
अष्टवर्गाणां स्थितिः. (1) – स्थान (नपुं)
अष्टवर्गाणां वृद्धिः. (1) – वृद्धि (स्त्री)
2.8.19.2 – क्षयः स्थानं च वृद्धिश्च त्रिवर्गो नीतिवेदिनाम्

कोशदण्डजतेजः. (2) – प्रताप (पुं), प्रभाव (पुं)
2.8.20.1 – स प्रतापः प्रभावश्च यत्तेजः कोशदण्डजम्

उपायाः. (4) – भेद (पुं), दण्ड (पुं), सामन् (नपुं), दान (नपुं)
2.8.20.2 – भेदो दण्डः साम दानमित्युपायचतुष्टयम्

दण्डः. (3) – साहस (नपुं), दम (पुं), दण्ड (पुं)
सामः. (2) – सामन् (नपुं), सान्त्व (नपुं)
2.8.21.1 – साहसं तु दमो दण्डः साम सान्त्वमथो समौ

भेदः. (2) – भेद (पुं), उपजाप (पुं)
धर्माद्यैः परीक्षणम्. (1) – उपधा (स्त्री)
2.8.21.2 – भेदोपजापावुपधा धर्माद्यैर्यत्परीक्षणम्

द्वाभ्यामेव कृत मन्त्रः. (1) – अषडक्षीण (वि)
2.8.22.1 – पञ्च त्रिष्वषडक्षीणो यस्तृतीयाद्यगोचरः

विजनः. (5) – विविक्त (वि), विजन (वि), छन्न (वि), निःशलाक (वि), रहस् (नपुं)
2.8.22.2 – विविक्तविजनच्छन्ननिःशलाकास्तथा रहः

विजनः. (2) – रहस् (अव्य), उपांशु (अव्य)
रहस्यम्. (1) – रहस्य (वि)
2.8.23.1 – रहश्चोपांशु चालिङ्गे रहस्यं तद्भवे त्रिषु

विश्वासः. (2) – विस्रम्भ (पुं), विश्वास (पुं)
भ्रंशः. (1) – भ्रेष (पुं)
2.8.23.2 – समौ विस्रम्भविश्वासौ भ्रेषो भ्रंशो यथोचितात्

नीतिः. (5) – अभ्रेष (पुं), न्याय (पुं), कल्प (पुं), देशरूप (नपुं), समञ्जस (नपुं)
2.8.24.1 – अभ्रेषन्यायकल्पास्तु देशरूपं समञ्जसम्

न्यायादनपेतद्रव्यम्. (5) – युक्त (वि), औपयिक (वि), लभ्य (वि), भजमान (वि), अभिनीत (वि)
2.8.24.2 – युक्तमौपयिकं लभ्यं भजमानाभिनीतवत्

न्यायादनपेतद्रव्यम्. (1) – न्याय्य (वि)
युक्तायुक्तपरीक्षणम्. (2) – सम्प्रधारणा (स्त्री), समर्थन (नपुं)
2.8.25.1 – न्याय्यं च त्रिषु षट्संप्रधारणा तु समर्थनम्

आज्ञा. (4) – अववाद (पुं), निर्देश (पुं), निदेश (पुं), शासन (नपुं)
2.8.25.2 – अववादस्तु निर्देशो निदेशः शासनं च सः

आज्ञा. (2) – शिष्टि (स्त्री), आज्ञा (स्त्री)
मर्यादा. (4) – संस्था (स्त्री), मर्यादा (स्त्री), धारणा (स्त्री), स्थिति (स्त्री)
2.8.26.1 – शिष्टिश्चाज्ञा च संस्था तु मर्यादा धारणा स्थितिः

अपराधः. (3) – आगस् (नपुं), अपराध (पुं), मन्तु (पुं)
बन्धनम्. (2) – उद्दान (नपुं), बन्धन (नपुं)
2.8.26.2 – आगोऽपराधो मन्तुश्च समे तूद्दानबन्धने

द्विगुणदण्डः. (1) – द्विपाद्य (पुं)
बलिः. (3) – भागधेय (पुं), कर (पुं), बलि (पुं)
2.8.27.1 – द्विपाद्यो द्विगुणो दण्डो भागधेयः करो बलिः

शुल्कः. (1) – शुल्क (पुं-नपुं)
देवताभ्यो दीयमानः. (2) – प्राभृत (नपुं), प्रदेशन (नपुं)
2.8.27.2 – घट्टादिदेयं शुल्कोऽस्त्री प्राभृतं तु प्रदेशनम्

उपहारः. (4) – उपायन (नपुं), उपग्राह्य (नपुं), उपहार (पुं), उपदा (स्त्री)
2.8.28.1 – उपायनमुपग्राह्यमुपहारस्तथोपदा

अवश्यं दीयमानद्रव्यम्. (2) – सुदाय (पुं), हरण (नपुं)
2.8.28.2 – यौतकादि तु यद्देयं सुदायो हरणं च तत्

वर्तमानकालः. (2) – तत्काल (पुं), तदात्व (नपुं)
2.8.29.1 – तत्कालस्तु तदात्वं स्यादुत्तरः काल आयतिः

सद्योजायमानफलम्. (1) – सान्दृष्टिक (नपुं)
भाविनः फलम्. (1) – उदर्क (पुं)
2.8.29.2 – सांदृष्टिकं फलं सद्य उदर्कः फलमुत्तरम्

अग्न्यादिकृतभयम्. (1) – अदृष्ट (नपुं)
स्वपरसैन्याद्भयम्. (1) – दृष्ट (नपुं)
2.8.30.1 – अदृष्टं वह्नितोयादि दृष्टं स्वपरचक्रजम्

स्वपक्षप्रभवभयम्. (1) – अहिभय (नपुं)
2.8.30.2 – महीभुजामहिभयं स्वपक्षप्रभवं भयम्

राज्ञां छत्रचामरादिव्यापारः. (2) – प्रक्रिया (स्त्री), अधिकार (पुं)
चामरम्. (2) – चामर (नपुं), प्रकीर्णक (नपुं)
2.8.31.1 – प्रक्रिया त्वधिकारः स्याच्चामरं तु प्रकीर्णकम्

राजासनम्. (2) – नृपासन (नपुं), भद्रासन (नपुं)
सुवर्णकृतराजासनम्. (1) – सिंहासन (नपुं)
2.8.31.2 – नृपासनं यत्तद्भद्रासनं सिंहासनं तु तत्

छत्रम्. (2) – छत्र (नपुं), आतपत्र (नपुं)
नृपच्छत्रम्. (1) – नृपलक्ष्म (नपुं)
2.8.32.1 – हैमं छत्रं त्वातपत्रं राज्ञस्तु नृपलक्ष्म तत्

पूर्णघटम्. (2) – भद्रकुम्भ (पुं), पूर्णकुम्भ (पुं)
सुवर्णजलपात्रम्. (2) – भृङ्गार (पुं), कनकालुका (स्त्री)
2.8.32.2 – भद्रकुम्भः पूर्णकुम्भो भृङ्गारः कनकालुका

सैन्यवासस्थानम्. (2) – निवेश (पुं), शिबिर (नपुं)
सैन्यरक्षणप्रहरिकादिः. (2) – सज्जन (नपुं), उपरक्षण (नपुं)
2.8.33.1 – निवेशः शिबिरं षण्ढे सज्जनं तूपरक्षणम्

हस्त्यश्वरथपादातसेना. (1) – सेनाङ्ग (नपुं)
2.8.33.2 – हस्त्यश्वरथपादातं सेनाङ्गं स्याच्चतुष्टयम्

हस्तिः. (6) – दन्तिन् (पुं), दन्तावल (पुं), हस्तिन् (पुं), द्विरद (पुं), अनेकप (पुं), द्विप (पुं)
2.8.34.1 – दन्ती दन्तावलो हस्ती द्विरदोऽनेकपो द्विपः

हस्तिः. (6) – मतङ्गज (पुं), गज (पुं), नाग (पुं), कुञ्जर (पुं), वारण (पुं), करिन् (पुं)
2.8.34.2 – मतङ्गजो गजो नागः कुञ्जरो वारणः करी

हस्तिः. (3) – इभ (पुं), स्तम्बेरम (पुं), पद्मिन् (पुं)
यूथमुख्यहस्तिः. (2) – यूथनाथ (पुं), यूथप (पुं)
2.8.35.1 – इभः स्तम्बेरमः पद्मी यूथनाथस्तु यूथपः

अन्तर्मदहस्तिः. (2) – मदोत्कट (पुं), मदकल (पुं)
करिपोतः. (2) – कलभ (पुं), करिशावक (पुं)
2.8.35.2 – मदोत्कटो मदकलः कलभः करिशावकः

मत्तगजः. (3) – प्रभिन्न (पुं), गर्जित (पुं), मत्त (पुं)
गतमतगजः. (2) – उद्वान्त (पुं), निर्मद (पुं)
2.8.36.1 – प्रभिन्नो गर्जितो मत्तः समावुद्वान्तनिर्मदौ

हस्तिवृन्दम्. (2) – हास्तिक (नपुं), गजता (स्त्री)
हस्तिनी. (3) – करिणी (स्त्री), धेनुका (स्त्री), वशा (स्त्री)
2.8.36.2 – हास्तिकं गजता वृन्दे करिणी धेनुका वशा

गजगण्डः. (2) – गण्ड (पुं), कट (पुं)
मदजलम्. (2) – मद (पुं), दान (नपुं)
शुण्डानिर्गतजलम्. (2) – वमथु (पुं), करशीकर (पुं)
2.8.37.1 – गण्डः कटो मदो दानं वमथुः करशीकरः

गजमस्तकौ. (3) – कुम्भ (पुं), पिण्ड (पुं), शिरस् (नपुं)
गजमस्तकमध्यभागः. (1) – विदु (पुं)
2.8.37.2 – कुम्भौ तु पिण्डौ शिरसस्तयोर्मध्ये विदुः पुमान्

गजललाटम्. (1) – अवग्रह (पुं)
गजनेत्रगोलकम्. (1) – ईषिका (स्त्री)
2.8.38.1 – अवग्रहो ललाटं स्यादीषिका त्वक्षिकूटकम्

गजापाङ्गदेशः. (1) – निर्याण (नपुं)
गजकर्णमूलम्. (1) – चूलिका (स्त्री)
2.8.38.2 – अपाङ्गदेशो निर्याणं कर्णमूलं तु चूलिका

गजकुम्भाधोभागः. (1) – वाहित्थ (नपुं)
वाहित्थाधोभागदन्तमध्यम्. (1) – प्रतिमान (नपुं)
2.8.39.1 – अधः कुम्भस्य वाहित्थं प्रतिमानमधोऽस्य यत्

गजस्कन्धदेशः. (2) – आसन (नपुं), स्कन्धदेश (पुं)
गजमुखादिस्थबिन्दुसमूहः. (2) – पद्मक (नपुं), बिन्दुजालक (नपुं)
2.8.39.2 – आसनं स्कन्धदेशः स्यात्पद्मकं बिन्दुजालकम्

गजपार्श्वभागः. (2) – पार्श्वभाग (पुं), पक्षभाग (पुं)
अग्रभागः. (1) – दन्तभाग (पुं)
2.8.40.1 – पार्श्वभागः पक्षभागो दन्तभागस्तु योऽग्रतः

गजजङ्घापूर्वभागः. (1) – गात्र (नपुं)
गजजङ्घापरोभागः. (1) – आवर (नपुं)
2.8 https://at-casinos.com.40.2 – द्वौ पूर्वपश्चाज्जङ्घादिदेशौ गात्रावरे क्रमात्

गजतोदनदण्डः. (2) – तोत्र (नपुं), वेणुक (नपुं)
गजबन्धनस्तम्भः. (2) – आलान (नपुं), बन्धस्तम्भ (पुं)
गजशृङ्खला. (1) – शृङ्खल (वि)
2.8.41.1 – तोत्रं वेणुकमालानं बन्धस्तम्भेऽथ शृङ्खले

गजशृङ्खला. (2) – अन्दुक (पुं), निगड (पुं-नपुं)
गजाङ्कुशः. (2) – अङ्कुश (पुं-नपुं), सृणि (स्त्री)
2.8.41.2 – अन्दुको निगडोऽस्त्री स्यादङ्कुशोऽस्त्री सृणिः स्त्रियाम्

गजमध्यबन्धनचर्मरज्जुः. (3) – दूष्या (स्त्री), कक्ष्या (स्त्री), वरत्रा (स्त्री)
गजसज्जीकरणम्. (2) – कल्पना (स्त्री), सज्जना (स्त्री)
2.8.42.1 – दूष्या कक्ष्या वरत्रा स्यात्कल्पना सज्जना समे

गजपृष्टवर्ती चित्रकम्बलः. (5) – प्रवेणि (स्त्री), आस्तरण (नपुं), वर्ण (पुं), परिस्तोम (पुं), कुथ (स्त्री-पुं)
2.8.42.2 – प्रवेण्यास्तरणं वर्णः परिस्तोमः कुथो द्वयोः

निर्बलहस्त्यश्वसमूहः. (1) – वीत (नपुं)
गजबन्धनशाला. (2) – वारी (स्त्री), गजबन्धनी (स्त्री)
2.8.43.1 – वीतं त्वसारं हस्त्यश्वं वारी तु गजबन्धनी

अश्वः. (6) – घोटक (पुं), वीति (पुं), तुरग (पुं), तुरङ्ग (पुं), अश्व (पुं), तुरङ्गम (पुं)
2.8.43.2 – घोटके वीतितुरगतुरङ्गाश्वतुरङ्गमाः

अश्वः. (7) – वाजिन् (पुं), वाह (पुं), अर्वन् (पुं), गन्धर्व (पुं), हय (पुं), सैन्धव (पुं), सप्ति (पुं)
2.8.44.1 – वाजिवाहार्वगन्धर्वहयसैन्धवसप्तयः

कुलीनाश्वः. (2) – आजानेय (पुं), कुलीन (पुं)
सम्यग्गतिमान् वाजिः. (2) – विनीत (पुं), साधुवाहिन् (पुं)
2.8.44.2 – आजानेयाः कुलीनाः स्युर्विनीताः साधुवाहिनः

वनायुदेशवाजिः. (1) – वनायुज (पुं)
पारसीदेशवाजिः. (1) – पारसीक (पुं)
काम्बोजदेशवाजिः. (1) – काम्बोज (पुं)
बाल्हिकदेशवाजिः. (1) – बाह्लिक (पुं)
2.8.45.1 – वनायुजाः पारसीकाः काम्बोजाः बाह्लिका हयाः

अश्वमेधीयवाजिः. (2) – ययु (पुं), अश्वमेधीय (पुं)
अधिकवेगवाजिः. (2) – जवन (पुं), जवाधिक (पुं)
2.8.45.2 – ययुरश्वोऽश्वमेधीयो जवनस्तु जवाधिकः

भारवाह्यश्वः. (2) – पृष्ठ्य (पुं), स्थौरिन् (पुं)
शुक्लाश्वः. (2) – सित (पुं), कर्क (पुं)
रथवाहकाश्वः. (1) – रथ्य (पुं)
2.8.46.1 – पृष्ठ्यः स्थौरी सितः कर्को रथ्यो वोढा रथस्य यः

अश्वबालः. (2) – बाल (पुं), किशोर (पुं)
अश्वा. (3) – वामी (स्त्री), अश्वा (स्त्री), वडवा (स्त्री)
अश्वसमूहः. (1) – वाडव (नपुं)
2.8.46.2 – बालः किशोरो वाम्यश्वा वडवा वाडवं गणे

अश्वेन दिनैकाक्रमणदेशः. (1) – आश्वीन (वि)
2.8.47.1 – त्रिष्वाश्वीनं यदश्वेन दिनेनैकेन गम्यते

अश्वमध्यम्. (1) – कश्य (नपुं)
अश्वशब्दः. (2) – हेषा (स्त्री), ह्रेषा (स्त्री)
2.8.47.2 – कश्यं तु मध्यमश्वानां हेषा ह्रेषा च निस्वनः

अश्वगलसमीपभागः. (2) – निगाल (पुं), गलोद्देश (पुं)
अश्ववृन्दम्. (2) – आश्वीय (नपुं), आश्व (नपुं)
2.8.48.1 – निगालस्तु गलोद्देशो वृन्दे त्वश्वीयमश्ववत्

अश्वगतिविशेषः. (5) – आस्कन्दित (नपुं), धौरितक (नपुं), रेचित (नपुं), वल्गित (नपुं), प्लुत (नपुं)
2.8.48.2 – आस्कन्दितं धौरितकं रेचितम्वल्गितं प्लुतम्

आस्कन्दितादि पञ्चगतयः. (1) – धारा (स्त्री)
अश्वनासिका. (2) – घोणा (स्त्री), प्रोथ (पुं-नपुं)
2.8.49.1 – गतयोऽमूः पञ्च धारा घोणा तु प्रोथमस्त्रियाम्

खलीनः. (2) – कविका (स्त्री), खलीन (पुं-नपुं)
मृगपादः. (2) – शफ (नपुं), खुर (पुं)
2.8.49.2 – कविका तु खलीनोऽस्त्री शफं क्लीबे खुरः पुमान्

मृगपुच्छः. (3) – पुच्छ (पुं-नपुं), लूमन् (नपुं), लाङ्गूल (नपुं)
केशवल्लाङ्गूलम्. (2) – वालहस्त (पुं), वालधि (पुं)
2.8.50.1 – पुच्छोऽस्त्री लूमलाङ्गूले वालहस्तश्च वालधिः

श्रान्त्या भूमौ लुठिताश्वः. (2) – उपावृत्त (वि), लुठित (वि)
2.8.50.2 – त्रिषूपावृत्तलुठितौ परावृत्ते मुहुर्भुवि

रथः. (3) – शताङ्ग (पुं), स्यन्दन (पुं), रथ (पुं)
2.8.51.1 – याने चक्रिणि युद्धार्थे शताङ्गः स्यन्दनो रथः

क्रीडारथः. (1) – पुष्यरथ (पुं)
2.8.51.2 – असौ पुष्परथश्चक्रयानं न समराय यत्

पुरुषस्कन्धवाह्ययानम्. (3) – कर्णीरथ (पुं), प्रवहण (नपुं), डयन (नपुं)
2.8.52.1 – कर्णीरथः प्रवहणं डयनं च समं त्रयम्

शकटम्. (2) – अनस् (नपुं), शकट (पुं-नपुं)
शकटिका. (2) – गन्त्री (स्त्री), कम्बलिवाह्यक (नपुं)
2.8.52.2 – क्लीबेऽनः शकटोऽस्त्री स्याद्गन्त्री कम्बलिवाह्यकम्

पालकी. (2) – शिबिका (स्त्री), याप्ययान (नपुं)
दोला. (2) – दोला (स्त्री), प्रेङ्खा (स्त्री)
2.8.53.1 – शिबिका याप्ययानं स्याद्दोला प्रेङ्खादिका स्त्रियाम्

व्याघ्रचर्मवेष्टितरथः. (2) – द्वैप (वि), वैयाघ्र (वि)
2.8.53.2 – उभौ तु द्वैपवैयाघ्रौ द्वीपिचर्मावृते रथे

शुक्लकम्बलवेष्टितरथः. (1) – पाण्डुकम्बलिन् (वि)
2.8.54.1 – पाण्डुकम्बलसंवीतः स्यन्दनः पाण्डुकम्बली

कम्बलाद्यावृतरथः. (1) – काम्बल (पुं)
2.8.54.2 – रथे काम्बलवास्त्राद्याः कम्बलादिभिरावृते

रथसमूहः. (3) – रथ्या (स्त्री), रथकट्या (स्त्री), रथव्रज (पुं)
2.8.55.1 – त्रिषु द्वैपादयो रथ्या रथकट्या रथव्रजे

रथादीनां मुखभागः. (2) – धू (स्त्री), यानमुख (नपुं)
रथावयवमात्रम्. (2) – रथाङ्ग (नपुं), अपस्कर (पुं)
2.8.55.2 – धूः स्त्री क्लीबे यानमुखं स्याद्रथाङ्गमपस्करः

चक्रम्. (2) – चक्र (नपुं), रथाङ्ग (नपुं)
चक्रान्तभागः. (2) – नेमि (स्त्री), प्रधि (पुं)
2.8.56.1 – चक्रं रथाङ्गं तस्यान्ते नेमिः स्त्री स्यात्प्रधिः पुमान्

रथचक्रमध्यमण्डलाकारः. (2) – पिण्डिका (स्त्री), नाभि (पुं)
चक्रधारणकीलकम्. (2) – अक्षाग्रकीलक (पुं), अणि (स्त्री-पुं)
2.8.56.2 – पिण्डिका नाभिरक्षाग्रकीलके तु द्वयोरणिः

शस्त्राघादरक्षनार्थलोहादिमयावरणम्. (2) – रथगुप्ति (स्त्री), वरूथ (पुं)
युगकाष्ठबन्धनस्थानम्. (2) – कूबर (पुं), युगन्धर (पुं)
2.8.57.1 – रथगुप्तिर्वरूथो ना कूबरस्तु युगन्धरः

रथस्याधस्थदारुः. (1) – अनुकर्ष (पुं)
अन्यवृषयुग्मम्. (1) – प्रासङ्ग (पुं)
2.8.57.2 – अनुकर्षो दार्वधःस्थं प्रासङ्गो ना युगाद्युगः

वाहनम्. (5) – वाहन (नपुं), यान (नपुं), युग्य (नपुं), पत्र (नपुं), धोरण (नपुं)
2.8.58.1 – सर्वं स्याद्वाहनं यानं युग्यं पत्रं च धोरणम्

परम्परावाहनम्. (1) – वैनीतक (पुं-नपुं)
2.8.58.2 – परम्परावाहनं यत्तद्वैनीतकमस्त्रियाम्

हस्तिपकः. (4) – आधोरण (पुं), हस्तिपक (पुं), हस्त्यारोह (पुं), निषादिन् (पुं)
2.8.59.1 – आधोरणा हस्तिपका हस्त्यारोहा निषादिनः

सारथिः. (6) – नियन्तृ (पुं), प्राजितृ (पुं), यन्तृ (पुं), सूत (पुं), क्षन्त्रृ (पुं), सारथि (पुं)
2.8.59.2 – नियन्ता प्राजिता यन्ता सूतः क्षत्ता च सारथिः

सारथिः. (2) – सव्येष्ठ (पुं), दक्षिणस्थ (पुं)
2.8.60.1 – सव्येष्ठदक्षिणस्थौ च संज्ञा रथकुटुम्बिनः

रथारूढयोद्धा. (2) – रथिन् (पुं), स्यन्दनारोह (पुं)
अश्वारोहः. (2) – अश्वारोह (पुं), सादिन् (पुं)
2.8.60.2 – रथिनः स्यन्दनारोहा अश्वारोहास्तु सादिनः

योद्धा. (3) – भट (पुं), योध (पुं), योद्धृ (पुं)
सेनारक्षकः. (2) – सेनारक्ष (पुं), सैनिक (पुं)
2.8.61.1 – भटा योधाश्च योद्धारः सेना रक्षास्तु सैनिकाः

सेनायां समवेतः. (2) – सैन्य (पुं), सैनिक (पुं)
2.8.61.2 – सेनायां समवेता ये सैन्यास्ते सैनिकाश्च ते

सहस्रभटनेता. (2) – साहस्र (पुं), सहस्रिन् (पुं)
2.8.62.1 – बलिनो ये सहस्रेण साहस्रास्ते सहस्रिणः

सेनानियन्तः. (2) – परिधिस्थ (पुं), परिचर (पुं)
सैन्याधिपतिः. (2) – सेनानी (पुं), वाहिनीपति (पुं)
2.8.62.2 – परिधिस्थः परिचरः सेनानीर्वाहिनीपतिः

चोलकादिसन्नाहः. (2) – कञ्चुक (पुं), वारबाण (पुं-नपुं)
2.8.63.1 – कञ्चुको वारबाणोऽस्त्री यत्तु मध्ये सकञ्चुकाः

दार्ढ्यार्थं कञ्चुकोपरि बद्धः. (2) – सारसन (नपुं), अधिकाङ्ग (पुं)
शिरस्त्राणः. (1) – शीर्षक (नपुं)
2.8.63.2 – बध्नन्ति तत्सारसनमधिकाङ्गोऽथ शीर्षकम्

शिरस्त्राणः. (2) – शीर्षण्य (नपुं), शिरस्त्र (नपुं)
सन्नाहः. (3) – तनुत्र (नपुं), वर्मन् (नपुं), दंशन (नपुं)
2.8.64.1 – शीर्षण्यं च शिरस्त्रेऽथ तनुत्रं वर्म दंशनम्

सन्नाहः. (4) – उरःछद (पुं), कङ्कटक (पुं), जगर (पुं), कवच (पुं-नपुं)
2.8.64.2 – उरश्छदः कङ्कटको जागरः कवचोऽस्त्रियाम्

परिहितकवचः. (4) – आमुक्त (वि), प्रतिमुक्त (वि), पिनद्ध (वि), अपिनद्ध (वि)
2.8.65.1 – आमुक्तः प्रतिमुक्तश्च पिनद्धश्चापिनद्धवत्

धृतकवचः. (5) – संनद्ध (वि), वर्मित (वि), सज्ज (वि), दंशित (वि), व्यूढकङ्कट (वि)
2.8.65.2 – संनद्धो वर्मितः सज्जो दंशितो व्युढकङ्कटः

धृतकवचगणः. (1) – कावचिक (नपुं)
2.8.66.1 – त्रिष्वामुक्तादयो वर्मभृतां कावचिकं गणे

पदातिः. (5) – पदाति (पुं), पत्ति (पुं), पदग (पुं), पादातिक (पुं), पदाजि (पुं)
2.8.66.2 – पदातिपत्तिपदगपादातिकपदाजयः

पदातिः. (2) – पद्ग (पुं), पदिक (पुं)
पदातिसमूहः. (2) – पादात (पुं), पत्तिसंहति (स्त्री)
2.8.67.1 – पद्गश्च पदिकश्चाथ पादातं पत्तिसंहतिः

आयुधजीविः. (4) – शस्त्राजीव (पुं), काण्डपृष्ठ (पुं), आयुधीय (पुं), आयुधिक (पुं)
2.8.67.2 – शस्त्राजीवे काण्डपृष्ठायुधीयायुधिकाः समाः

सम्यक्कृतशराभ्यासः. (3) – कृतहस्त (पुं), सुप्रयोगविशिख (पुं), कृतपुङ्ख (पुं)
2.8.68.1 – कृतहस्तः सुप्रयोगविशिखः कृतपुङ्खवत्

लक्ष्यश्चुतसायकः. (1) – अपराद्धपृषत्क (पुं)
2.8.68.2 – अपराद्धपृषत्कोऽसौ लक्ष्याद्यश्च्युतसायकः

धनुर्धरः. (6) – धन्विन् (पुं), धनुष्मत् (पुं), धानुष्क (पुं), निषङ्गिन् (पुं), अस्त्रिन् (पुं), धनुर्धर (पुं)
2.8.69.1 – धन्वी धनुष्मान्धानुष्को निषङ्ग्यस्त्री धनुर्धरः

बाणधारिः. (2) – काण्डवत् (पुं), काण्डीर (पुं)
शक्त्यायुधधारिः. (2) – शाक्तीक (पुं), शक्तिहेतिक (पुं)
2.8.69.2 – स्यात्काण्डवांस्तु काण्डीरः शाक्तीकः शक्तिहेतिकः

यष्टिहेतिकः. (1) – याष्टीक (पुं)
पर्श्वधहेतिकः. (1) – पारश्वधिक (पुं)
2.8.70.1 – याष्टीकपारश्वधिकौ यष्टिपर्श्वधहेतिकौ

खड्गधारिः. (2) – नैस्त्रिंशिक (पुं), असिहेति (पुं)
प्रासायुधिः. (1) – प्रासिक (पुं)
कुन्तायुधिः. (1) – कौन्तिक (पुं)
2.8.70.2 – नैस्त्रिंशिकोऽसिहेतिः स्यात्समौ प्रासिककौन्तिकौ

फलकधारकः. (2) – चर्मिन् (पुं), फलकपाणि (पुं)
ध्वजधारिः. (2) – पताकिन् (पुं), वैजयन्तिक (पुं)
2.8.71.1 – चर्मी फलकपाणिः स्यात्पताकी वैजयन्तिकः

सहायकः. (4) – अनुप्लव (पुं), सहाय (पुं), अनुचर (पुं), अभिचर (पुं)
2.8.71.2 – अनुप्लवः सहायश्चानुचरोऽभिचरः समाः

अग्रेसरः. (5) – पुरोग (पुं), अग्रेसर (पुं), प्रष्ठ (पुं), अग्रतःसर (पुं), पुरःसर (पुं)
2.8.72.1 – पुरोगाग्रेसरप्रष्ठाग्रतः सरपुरः सराः

अग्रेसरः. (2) – पुरोगम (पुं), पुरोगामिन् (पुं)
शनैर्गमनशीलः. (2) – मन्दगामिन् (पुं), मन्थर (पुं)
2.8.72.2 – पुरोगमः पुरोगामी मन्दगामी तु मन्थरः

अतिवेगगमनशीलः. (2) – जङ्घाल (पुं), अतिजव (पुं)
जङ्घाजीविः. (2) – जङ्घाकरिक (पुं), जाङ्घिक (पुं)
2.8.73.1 – जङ्घालोऽतिजवस्तुल्यौ जङ्घाकरिकजाङ्घिकौ

त्वरितवन्मात्रः. (6) – तरस्विन् (पुं), त्वरित (पुं), वेगिन् (पुं), प्रजविन् (पुं), जवन (पुं), जव (पुं)
2.8.73.2 – तरस्वी त्वरितो वेगी प्रजवी जवनो जवः

जेतुं शक्यः. (1) – जय्य (पुं)
जेतुं योग्यः. (1) – जेय (पुं)
2.8.74.1 – जय्यो यः शक्यते जेतुं जेयो जेतव्यमात्रके

जेता. (2) – जैत्र (पुं), जेतृ (पुं)
2.8.74.2 – जैत्रस्तु जेता यो गच्छत्यलं विद्विषतः प्रति

ससामर्थ्यम् शत्रूणां सम्मुखं गतः. (3) – अभ्यमित्र्य (पुं), अभ्यमित्रीय (पुं), अभ्यमित्रीण (पुं)
2.8.75.1 – सोऽभ्यमित्रोऽभ्यमित्रीयोऽप्यभ्यमित्रीण इत्यपि

बलातिशयवान्. (3) – ऊर्जस्वल (पुं), ऊर्जस्विन् (पुं), ऊर्जातिशयान्वित (पुं)
2.8.75.2 – ऊर्जस्वलः स्यादूर्जस्वी य ऊर्जातिशयान्वितः

विपुलोरः. (2) – उरस्वत् (पुं), उरसिल (पुं)
रथस्वामिः. (3) – रथिर (पुं), रथिक (पुं), रथिन् (पुं)
2.8.76.1 – स्वादुरस्वानुरसिलो रथिरो रथिको रथी

यथेष्टं गमनशिलः. (2) – कामङ्गामिन् (पुं), अनुकामीन (पुं)
अतिगमनशीलः. (1) – अत्यन्तीन (पुं)
2.8.76.2 – कामङ्गाम्यनुकामीनो ह्यत्यन्तीनस्तथा भृशम्

शूरः. (3) – शूर (पुं), वीर (पुं), विक्रान्त (पुं)
जयशीलः. (3) – जेतृ (पुं), जिष्णु (पुं), जित्वर (पुं)
2.8.77.1 – शूरो वीरश्च विक्रान्तो जेता जिष्णुश्च जित्वरः

युद्धकुशलः. (1) – सांयुगीन (पुं)
2.8.77.2 – सांयुगीनो रणे साधुः शस्त्राजीवादयस्त्रिषु

सेना. (6) – ध्वजिनी (स्त्री), वाहिनी (स्त्री), सेना (स्त्री), पृतना (स्त्री), अनीकिनी (स्त्री), चमू (स्त्री)
2.8.78.1 – ध्वजिनी वाहिनी सेना पृतनानीकिनी चमूः

सेना. (5) – वरूथिनी (स्त्री), बल (पुं), सैन्य (पुं), चक्र (पुं), अनीक (पुं-नपुं)
2.8.78.2 – वरूथिनी बलं सैन्यं चक्रं चानीकमस्त्रियाम्

सैन्यव्यूहः. (2) – व्यूह (पुं), बलविन्यास (पुं)
2.8.79.1 – व्यूहस्तु बलविन्यासो भेदादण्डादयो युधि

व्यूहपृष्टभागः. (2) – प्रत्यासार (पुं), व्यूहपार्ष्णि (पुं)
सैन्यपृष्टानीकः. (1) – प्रतिग्रह (पुं)
2.8.79.2 – प्रत्यासारो व्यूहपार्ष्णिः सैन्यपृष्ठे प्रतिग्रहः

पत्तिसेना. (1) – पत्ति (पुं)
2.8.80.1 – एकेभैकरथा त्र्यश्वा पत्तिः पञ्चपदातिका

2.8.80.2 – पत्त्यङ्गैस्त्रिगुणैः सर्वैः क्रमादाख्या यथोत्तरम्

सेनामुखनामकसेना. (1) – सेनामुख (नपुं)
गुल्मसेना. (1) – गुल्म (पुं)
गणसेना. (1) – गण (पुं)
वाहिनीसेना. (1) – वाहिनी (स्त्री)
पृतनासेना. (1) – पृतना (स्त्री)
चमूसेना. (1) – चमू (स्त्री)
2.8.81.1 – सेनामुखं गुल्मगणौ वाहिनी पृतना चमूः

अनीकिनीसेना. (1) – अनीकिनी (स्त्री)
अक्षौहिणीसेना. (1) – अक्षौहिणी (स्त्री)
धनसमृद्धिः. (1) – सम्पद् (स्त्री)
2.8.81.2 – अनीकिनी दशानीकिन्यक्षौहिण्यथ सम्पदि

धनसमृद्धिः. (3) – सम्पत्ति (स्त्री), श्री (स्त्री), लक्ष्मी (स्त्री)
आपत्. (3) – विपत्ति (स्त्री), विपद् (स्त्री), आपद् (स्त्री)
2.8.82.1 – सम्पत्तिः श्रीश्च लक्ष्मीश्च विपत्त्यां विपदापदौ

आयुधम्. (2) – आयुध (नपुं), प्रहरण (नपुं)
शस्त्रायुधम्. (1) – शस्त्र (पुं-नपुं)
अस्त्रायुधम्. (1) – अस्त्र (पुं-नपुं)
2.8.82.2 – आयुधं तु प्रहरणं शस्त्रमस्त्रमथास्त्रियौ

धनुः. (6) – धनुस् (पुं-नपुं), चाप (पुं-नपुं), धन्वन् (नपुं), शरासन (नपुं), कोदण्ड (नपुं), कार्मुक (नपुं)
2.8.83.1 – धनुश्चापौ धन्वशरासनकोदण्डकार्मुकम्

धनुः. (1) – इष्वास (पुं)
कर्णधनुः. (1) – कालपृष्ठ (नपुं)
2.8.83.2 – इष्वासोऽप्यथ कर्णस्य कालपृष्ठं शरासनम्

अर्जुनधनुः. (2) – गाण्डीव (पुं-नपुं), गाण्डिव (पुं-नपुं)
2.8.84.1 – कपिध्वजस्य गाण्डीवगाण्डिवौ पुन्नपुंसकौ

धनुषः अन्त्यभागः. (2) – कोटि (स्त्री), अटनी (स्त्री)
ज्याघातवारणः. (2) – गोधा (स्त्री), तल (नपुं)
2.8.84.2 – कोटिरस्याटनी गोधातले ज्याघातवारणे

धनुर्मध्यम्. (2) – लस्तक (पुं), धनुर्मध्य (नपुं)
ज्या. (4) – मोर्वी (स्त्री), ज्या (स्त्री), शिञ्जिनी (स्त्री), गुण (पुं)
2.8.85.1 – लस्तकस्तु धनुर्मध्यं मोर्वी ज्या शिञ्जिनी गुणः

धन्विनां स्थानभेदः. (2) – प्रत्यालीढ (नपुं), आलीढ (नपुं)
2.8.85.2 – स्यात्प्रत्यालीढमालीढमित्यादि स्थानपञ्चकम्

लक्ष्यम्. (3) – लक्ष (नपुं), लक्ष्य (नपुं), शरव्य (नपुं)
शरक्षेपाभ्यासः. (2) – शराभ्यास (पुं), उपासन (नपुं)
2.8.86.1 – लक्षं लक्ष्यं शरव्यं च शराभ्यास उपासनम्

बाणः. (6) – पृषत्क (पुं), बाण (पुं), विशिख (पुं), अजिह्मग (पुं), खग (पुं), आशुग (पुं)
2.8.86.2 – पृषत्कबाणविशिखा अजिह्मगखगाशुगाः

बाणः. (6) – कलम्ब (पुं), मार्गण (पुं), शर (पुं), पत्रिन् (पुं), रोप (पुं), इषु (स्त्री-पुं)
2.8.87.1 – कलम्बमार्गणशराः पत्री रोप इषुर्द्वयोः

सर्वलोहमयशरः. (2) – प्रक्ष्वेडन (पुं), नाराच (पुं)
शरपक्षः. (2) – पक्ष (पुं), वाज (पुं)
2.8.87.2 – प्रक्ष्वेडनास्तु नाराचाः पक्षो वाजस्त्रिषूत्तरे

प्रक्षिप्तबाणः. (1) – निरस्त (वि)
विषसम्बद्धबाणः. (2) – दिग्ध (वि), लिप्तक (वि)
2.8.88.1 – निरस्तः प्रहिते बाणे विषाक्ते दिग्धलिप्तकौ

शराधारः. (5) – तूण (पुं), उपासङ्ग (पुं), तूणीर (पुं), निषङ्ग (पुं), इषुधि (स्त्री-पुं)
2.8.88.2 – तूणोपासङ्गतूणीरनिषङ्गा इषुधिर्द्वयोः

शराधारः. (1) – तूणी (स्त्री)
खड्गः. (5) – खड्ग (पुं), निस्त्रिंश (पुं), चन्द्रहास (पुं), असि (पुं), रिष्टि (पुं)
2.8.89.1 – तूण्यां खड्गे तु निस्त्रिंशचन्द्रहासासिरिष्टयः

खड्गः. (4) – कौक्षेयक (पुं), मण्डलाग्र (पुं), करवाल (पुं), कृपाण (पुं)
2.8.89.2 – कौक्षेयको मण्डलाग्रः करवालः कृपाणवत्

खड्गाद्यायुधमुष्टिः. (1) – त्सरु (पुं)
खड्गमुष्टिनिबन्धनम्. (1) – मेखला (स्त्री)
2.8.90.1 – त्सरुः खड्गादिमुष्टौ स्यान्मेखला तन्निबन्धनम्

फलकः. (3) – फलक (पुं-नपुं), फल (नपुं), चर्मन् (नपुं)
फलकमुष्टिः. (1) – सङ्ग्राह (पुं)
2.8.90.2 – फलकोऽस्त्री फलं चर्म संग्राहो मुष्टिरस्य यः

मुद्गरः. (3) – द्रुघण (पुं), मुद्गर (पुं), घन (पुं)
ह्रस्वखड्गः. (2) – ईली (स्त्री), करवालिका (स्त्री)
2.8.91.1 – द्रुघणो मुद्गरघनौ स्यादीली करवालिका

अश्मक्षेपसाधनम्. (2) – भिन्दिपाल (पुं), सृग (पुं)
लोहाङ्गी. (2) – परिघ (पुं), परिघातन (पुं)
2.8.91.2 – भिन्दिपालः सृगस्तुल्यौ परिघः परिघातिनः

कुठारः. (4) – कुठार (स्त्री-पुं), स्वधिति (स्त्री-पुं), परशु (स्त्री-पुं), परश्वध (पुं)
2.8.92.1 – द्वयोः कुठारः स्वधितिः परशुश्च परश्वधः

छुरिका. (4) – शस्त्री (स्त्री), असिपुत्री (स्त्री), छुरिका (स्त्री), असिधेनुका (स्त्री)
2.8.92.2 – स्याच्छ्स्त्री चासिपुत्री च छुरिका चासिधेनुका

बाणाग्रायुधविशेषः. (2) – शल्य (पुं-नपुं), शङ्कु (पुं)
तोमरः. (2) – सर्वला (स्त्री), तोमर (पुं-नपुं)
2.8.93.1 – वा पुंसि शल्यं शङ्कुर्ना सर्वला तोमरोऽस्त्रियाम्

कुन्तः. (2) – प्रास (पुं), कुन्त (पुं)
खड्गादिप्रान्तभागः. (4) – कोण (पुं), पाली (स्त्री), अश्रि (स्त्री), कोटि (स्त्री)
2.8.93.2 – प्रासस्तु कुन्तः कोणस्तु स्त्रियः पाल्यश्रिकोटयः

चतुरङ्गसैन्यसन्नाहः. (3) – सर्वाभिसार (पुं), सर्वौघ (पुं), सर्वसन्नहन (नपुं)
2.8.94.1 – सर्वाभिसारः सर्वौघः सर्वसन्नहनार्थकः

प्रस्तानात्प्राग् शस्त्रवाहनादिपूजा. (1) – लोहाभिहार (पुं)
2.8.94.2 – लोहाभिसारोऽस्त्रभृतां राज्ञां नीराजनाविधिः

शत्रौ ससैन्यगमनम्. (1) – अभिषेणन (नपुं)
2.8.95.1 – यत्सेनयाभिगमनमरौ तदभिषेणनम्

प्रयाणम्. (6) – यात्रा (स्त्री), व्रज्या (स्त्री), अभिनिर्याण (नपुं), प्रस्थान (नपुं), गमन (नपुं), गम (पुं)
2.8.95.2 – यात्रा व्रज्याभिनिर्वाणं प्रस्थानं गमनं गमः

सैन्यस्य सर्वतो व्याप्तिः. (2) – आसार (पुं), प्रसरण (नपुं)
प्रस्थितसैन्यः. (2) – प्रचक्र (नपुं), चलित (नपुं)
2.8.96.1 – स्यादासारः प्रसरणं प्रचक्रं चलितार्थकम्

निर्भीकयायिः. (1) – अभिक्रम (पुं)
2.8.96.2 – अहितान्प्रत्यभीतस्य रणे यानमभिक्रमः

प्रातर्जागरणकारिः. (2) – वैतालिक (पुं), बोधकर (पुं)
घण्टिकावादयः. (2) – चाक्रिक (पुं), घाण्टिक (पुं)
2.8.97.1 – वैतालिका बोधकराश्चाक्रिका घाण्टिकार्थकाः

वंशपरम्पराशंसकाः. (2) – मागध (पुं), मगध (पुं)
राजादिस्तुतिपाठकः. (2) – वन्दिन् (पुं), स्तुतिपाठक (पुं)
2.8.97.2 – स्युर्मागधास्तु मगधा बन्दिनः स्तुतिपाठकाः

शपतवशात्सङ्ग्रामादपरावर्तिः. (1) – संशप्तक (पुं)
2.8.98.1 – संशप्तकास्तु समयात्संग्रामादनिवर्तिनः

रजः. (4) – रेणु (स्त्री-पुं), धूलि (स्त्री), पांसु (पुं), रजस् (नपुं)
2.8.98.2 – रेणुर्द्वयोः स्त्रियां धूलिः पांसुर्ना न द्वयो रजः

पिष्टस्य रजः. (2) – चूर्ण (नपुं), क्षोद (पुं)
अतिसङ्कुलसैन्याः. (2) – समुत्पिञ्ज (पुं), पिञ्जल (पुं)
2.8.99.1 – चूर्णे क्षोदः समुत्पिञ्जपिञ्जलौ भृशमाकुले

पताका. (4) – पताका (स्त्री), वैजयन्ती (स्त्री), केतन (नपुं), ध्वज (पुं-नपुं)
2.8.99.2 – पताका वैजयन्ती स्यात्केतनं ध्वजमस्त्रियाम्

भयङ्करयुद्धभूमिः. (1) – वीराशंसन (नपुं)
2.8.100.1 – सा वीराशंसनं युद्धभूमिर्यातिभयप्रदा

अहम्पूर्वमहम्पूर्वमिति. (1) – अहम्पूर्विका (स्त्री)
2.8.100.2 – अहंपूर्वमहंपूर्वमित्यहंपूर्विका स्त्रियाम्

आत्मनि शक्त्याविष्कारः. (1) – आहोपुरुषिका (स्त्री)
2.8.101.1 – आहोपुरुषिका दर्पाद्या स्यात्संभावनात्मनि

परस्पराहङ्कारः. (1) – अहमहमिका (स्त्री)
2.8.101.2 – अहमहमिका तु सा स्यात्परस्परं यो भवत्यहङ्कारः

सामर्थ्यम्. (7) – द्रविण (नपुं), तरस् (नपुं), सहस् (नपुं), बल (नपुं), शौर्य (नपुं), स्थामन् (नपुं), शुष्म (नपुं)
2.8.102.1 – द्रविणं तरः सहोबलशौर्याणि स्थाम शुष्मं च

सामर्थ्यम्. (3) – शक्ति (स्त्री), पराक्रम (पुं), प्राण (पुं)
अतिपराक्रमः. (2) – विक्रम (पुं), अतिशक्तिता (स्त्री)
2.8.102.2 – शक्तिः पराक्रमः प्राणो विक्रमस्त्वतिशक्तिता

युद्धारम्भे अन्ते वा पानकर्मः. (1) – वीरपाण (नपुं)
2.8.103.1 – वीरपानं तु यत्पानं वृत्ते भाविनि वारणे

युद्धम्. (5) – युद्ध (नपुं), आयोधन (नपुं), जन्य (पुं), प्रधन (नपुं), प्रविदारण (नपुं)
2.8.103.2 – युद्धमायोधनं जन्यं प्रधनं प्रविदारणम्

युद्धम्. (5) – मृध (नपुं), आस्कन्दन (नपुं), सङ्ख्य (नपुं), समीक (नपुं), साम्परायिक (नपुं)
2.8.104.1 – मृधमास्कन्दनं संख्यं समीकं सांपरायिकम्

युद्धम्. (5) – समर (पुं), अनीक (पुं), रण (पुं), कलह (पुं), विग्रह (पुं)
2.8.104.2 – अस्त्रियां समरानीकरणाः कलहविग्रहौ

युद्धम्. (5) – सम्प्रहार (पुं), अभिसम्पात (पुं), कलि (पुं), संस्फोट (पुं), संयुग (पुं)
2.8.105.1 – सम्प्रहाराभिसम्पात कलिसंस्फोट संयुगाः

युद्धम्. (5) – अभ्यामर्द (पुं), समाघात (पुं), सङ्ग्राम (पुं), अभ्यागम (पुं), आहव (पुं)
2.8.105.2 – अभ्यामर्द समाघात संग्रामाभ्यागमाहवाः

युद्धम्. (6) – समुदाय (पुं), संयत् (स्त्री), समिति (स्त्री), आजि (स्त्री), समित् (स्त्री), युध् (स्त्री)
2.8.106.1 – समुदायः स्त्रियः संयत्समित्याजिसमिद्युधः

बाहुयुद्धम्. (2) – नियुद्ध (नपुं), बाहुयुद्ध (नपुं)
रणव्याकुलता. (2) – तुमुल (नपुं), रणसङ्कुल (नपुं)
2.8.106.2 – नियुद्धं बाहुयुद्धेऽथ तुमुलं रणसङ्कुले

योधानां सिंहनादः. (2) – क्ष्वेडा (स्त्री), सिंहनाद (पुं)
हस्तिसङ्घः. (2) – घटना (स्त्री), घटा (स्त्री)
2.8.107.1 – क्ष्वेडा तु सिंहनादः स्यात्करिणां घटना घटा

स्पर्धया योधनामाह्वानम्. (2) – क्रन्दन (नपुं), योधसंराव (पुं)
हस्तिगर्जनम्. (2) – बृंहित (नपुं), करिगर्जित (नपुं)
2.8.107.2 – क्रन्दनं योधसंरावो बृंहितं करिगर्जितम्

धनुषः शब्दः. (1) – विस्फार (पुं)
युद्धपटहः. (2) – पटह (पुं), आडम्बर (पुं)
2.8.108.1 – विस्फारो धनुषः स्वानः पताहाडम्बरो समौ

बलात्कारः. (3) – प्रसभ (नपुं), बलात्कार (पुं), हठ (पुं)
युद्धमर्यादायाश्चलनम्. (2) – स्खलित (नपुं), छल (नपुं)
2.8.108.2 – प्रसभं तु बलात्कारो हठोऽथ स्खलितं छलम्

शुभाशुभसूचकः. (3) – अजन्य (नपुं), उत्पात (पुं), उपसर्ग (पुं)
2.8.109.1 – अजन्यं क्लीबमुत्पात उपसर्गः समं त्रयम्

मूर्च्छा. (3) – मूर्छा (स्त्री), कश्मल (नपुं), मोह (पुं)
परचक्र पीडनम्. (2) – अवमर्द (पुं), पीडन (नपुं)
2.8.109.2 – मूर्छा तु कश्मलं मोहोऽप्यवमर्दस्तु पीडनम्

छलादाक्रमणम्. (2) – अभ्यवस्कन्दन (नपुं), अभ्यासादन (नपुं)
विजयः. (2) – विजय (पुं), जय (पुं)
2.8.110.1 – अभ्यवस्कन्दनं त्वभ्यासादनं विजयो जयः

वैरशोधनम्. (3) – वैरशुद्धि (स्त्री), प्रतीकार (पुं), वैरनिर्यातन (नपुं)
2.8.110.2 – वैरशुद्धिः प्रतीकारो वैरनिर्यातनं च सा

पलायनम्. (6) – प्रद्राव (पुं), उद्द्राव (पुं), सन्द्राव (पुं), सन्दाव (पुं), विद्रव (पुं), द्रव (पुं)
2.8.111.1 – प्रद्रावोद्द्रावसंद्रावसंदावा विद्रवो द्रवः

पलायनम्. (2) – अपक्रम (पुं), अपयान (नपुं)
पराजयः. (2) – भङ्ग (पुं), पराजय (पुं)
2.8.111.2 – अपक्रमोऽपयानं च रणे भङ्गः पराजयः

निर्जितः. (2) – पराजित (वि), पराभूत (वि)
निलीनः. (2) – नष्ट (वि), तिरोहित (वि)
2.8.112.1 – पराजितपराभूतौ त्रिषु नष्टतिरोहितौ

मारणम्. (4) – प्रमापण (नपुं), निबर्हण (नपुं), निकारण (नपुं), विशारण (नपुं)
2.8.112.2 – प्रमापणं निबर्हणं निकारणं विशारणम्

मारणम्. (4) – प्रवासन (नपुं), परासन (नपुं), निषूदन (नपुं), निहिंसन (नपुं)
2.8.113.1 – प्रवासनं परासनं निषूदनं निहिंसनम्

मारणम्. (4) – निर्वासन (नपुं), संज्ञपन (नपुं), निर्ग्रन्थन (नपुं), अपासन (नपुं)
2.8.113.2 – निर्वासनं संज्ञपनं निर्ग्रन्थनमपासनम्

मारणम्. (4) – निस्तर्हण (नपुं), निहनन (नपुं), क्षणन (नपुं), परिवर्जन (नपुं)
2.8.114.1 – निस्तर्हणं निहननं क्षणनं परिवर्जनम्

मारणम्. (4) – निर्वापण (नपुं), विशसन (नपुं), मारण (नपुं), प्रतिघातन (नपुं)
2.8.114.2 – निर्वापणं विशसनं मारणं प्रतिघातनम्

मारणम्. (4) – उद्वासन (नपुं), प्रमथन (नपुं), क्रथन (नपुं), उज्जासन (नपुं)
2.8.115.1 – उद्वासनप्रमथनक्रथनोज्जासनानि च

मारणम्. (6) – आलम्भ (पुं), पिञ्ज (पुं), विशर (पुं), घात (पुं), उन्माथ (पुं), वध (पुं)
2.8.115.2 – आलम्भपिञ्जविशरघातोन्माथवधा अपि

मरणम्. (5) – पञ्चता (स्त्री), कालधर्म (पुं), दिष्टान्त (पुं), प्रलय (पुं), अत्यय (पुं)
2.8.116.1 – स्यात्पञ्चता कालधर्मो दिष्टान्तः प्रलयोऽत्ययः

मरणम्. (5) – अन्त (पुं), नाश (पुं), मृत्यु (स्त्री-पुं), मरण (नपुं), निधन (पुं-नपुं)
2.8.116.2 – अन्तो नाशो द्वयोर्मृत्युर्मरणं निधनोऽस्त्रियाम्

मृतः. (5) – परासु (वि), प्राप्तपञ्चत्व (वि), परेत (वि), प्रेत (वि), संस्थित (वि)
2.8.117.1 – परासुप्राप्तपञ्चत्वपरेतप्रेतसंस्थिताः

मृतः. (2) – मृत (वि), प्रमीत (वि)
चिता. (3) – चिता (स्त्री), चित्या (स्त्री), चिति (स्त्री)
2.8.117.2 – मृतप्रमीतौ त्रिष्वेते चिता चित्या चितिः स्त्रियाम्

छिन्नशिरसः शरीरम्. (1) – कबन्ध (पुं-नपुं)
2.8.118.1 – कबन्धोऽस्त्री क्रियायुक्तमपमूर्धकलेवरम्

प्रेतभूमिः. (2) – श्मशान (नपुं), पितृवन (नपुं)
मृतशरीरम्. (2) – कुणप (नपुं), शव (पुं-नपुं)
2.8.118.2 – श्मशानं स्यात्पितृवनं कुणपः शवमस्त्रियाम्

बन्दिशाला. (3) – प्रग्रह (पुं), उपग्रह (पुं), वन्दी (स्त्री)
बन्धनगृहम्. (2) – कारा (स्त्री), बन्धनालय (पुं)
2.8.119.1 – प्रग्रहोपग्रहौ बन्द्यां कारा स्यात्बन्धनालये

पञ्चवायवः. (2) – असु (पुं-बहु), प्राण (पुं)
जीवनम्. (2) – जीव (पुं), असुधारण (नपुं)
2.8.119.2 – पूंसि भूम्न्यसवः प्राणाश्चैवं जीवोऽसुधारणम्

जीवावच्छिन्नकालः. (2) – आयुस् (नपुं), जीवितकाल (पुं)
मृतसञ्जीवनौषधः. (2) – जीवातु (पुं), जीवनौषध (नपुं)
2.8.120.1 – आयुर्जीवितकालो ना जीवतुर्जीवनौषधम्