Amarakosha - नानार्थवर्गः
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3.3.1.1 - नानार्थाः केऽपि कान्तादि वर्गेष्वेवात्र कीर्तिताः
3.3.1.2 - भूरि प्रयोगा ये येषु पर्यायेष्वपि तेषु ते
जनः. (1) - लोक (पुं)
3.3.2.1 - आकाशे त्रिदिवे नाको लोकस्तु भुवने जने
पद्यम्. (1) - श्लोक (पुं)
कीर्तिः. (1) - श्लोक (पुं)
बाणः. (1) - सायक (पुं)
खड्गः. (1) - सायक (पुं)
3.3.2.2 - पद्ये यशसि च श्लोकः शरे खड्गे च सायकः
वरुणः. (1) - जम्बुक (पुं)
चिपिटः. (1) - पृथुक (पुं)
3.3.3.1 - जम्बुकौ क्रोष्टुवरुणौ पृथुकौ चिपिटार्भकौ
दर्शनम्. (1) - आलोक (पुं)
द्योतः. (1) - आलोक (पुं)
भेरी. (1) - आनक (पुं)
3.3.3.2 - आलोकौ दर्शनद्योतौ भेरीपटगहमानकौ
अङ्गः. (1) - अङ्क (पुं)
अपवादः. (1) - कलङ्क (पुं)
3.3.4.1 - उत्सङ्गचिह्नयोरङ्कः कलङ्कोऽङ्कापवादयोः
नागः. (1) - तक्षक (पुं)
तक्षः. (1) - तक्षक (पुं)
स्फटिकम्. (1) - अर्क (पुं)
3.3.4.2 - तक्षको नागवर्द्धक्योरर्कः स्फटिकसूर्ययोः
ब्रह्मा. (1) - क (पुं)
सूर्यः. (1) - क (पुं)
वायुः. (1) - क (पुं)
जलम्. (1) - कम् (नपुं)
शिरः. (1) - कम् (नपुं)
3.3.5.1 - मारुते वेधसि ब्रघ्ने पुंसि कः कं शिरोऽम्बुनोः
तुच्छधान्यम्. (1) - पुलाक (पुं)
सङ्क्षेपः. (1) - पुलाक (पुं)
भक्तसिक्तकान्नावयवः. (1) - पुलाक (पुं)
3.3.5.2 - स्यात्पुलाकस्तुच्छधान्ये संक्षेपे भक्तसिक्थके
करिणः पुच्छमूलोपान्तः. (1) - पेचक (पुं)
3.3.6.1 - उलूके करिणः पुच्छमूलोपान्ते च पेचकः
कमण्डलुः. (1) - करक (पुं)
3.3.6.2 - कमण्डलौ च करकः सुगते च विनायकः
हस्तपरिमाणः. (1) - किष्कु (पुं)
वितस्तपरिमाणः. (1) - किष्कु (पुं)
3.3.7.1 - किष्कुर्हस्ते वितस्तौ च शूककीटे च वृश्चिकः
प्रतिकूलम्. (1) - प्रतीक (पुं)
एकदेशः. (1) - प्रतीक (पुं)
3.3.7.2 - प्रतिकूले प्रतीकस्त्रिष्वेकदेशे तु पुंस्ययम्
चिरायता. (1) - भूतिक (नपुं)
कुम्भी. (1) - भूतिक (नपुं)
तृणविशेषः. (1) - भूतिक (नपुं)
3.3.8.1 - स्याद्भूतिकं तु भूनिम्बे कत्तृणे भूस्तृणेऽपि च
ज्योत्स्निका. (1) - कोशातकी (स्त्री)
घोषः. (1) - कोशातकी (स्त्री)
3.3.8.2 - ज्योत्स्निकायां च घोषे च कोशातक्यथ कट्फले
कुम्भी. (1) - सोमवल्क (पुं)
3.3.9.1 - सिते च खदिरे सोमवल्कः स्यादथ सिह्लके
तिलकल्कम्. (1) - पिण्याक (पुं-नपुं)
सिह्लकम्. (1) - पिण्याक (पुं-नपुं)
हिङ्गुवृक्षनिर्यासः. (1) - बाह्लीक (नपुं)
3.3.9.2 - तिलकल्के च पिण्याको बाह्लीकं रामठेऽपि च
इन्द्रः. (1) - कौशिक (पुं)
सर्पग्राहिः. (1) - कौशिक (पुं)
3.3.10.1 - महेन्द्र गुग्गुलूलूकव्यालग्राहिषु कौशिकः
रोगः. (1) - आतङ्क (पुं)
विपत्. (1) - आतङ्क (पुं)
शङ्का. (1) - आतङ्क (पुं)
स्वल्पम्. (1) - क्षुल्लक (वि)
3.3.10.2 - रुक्तापशङ्कास्वातङ्कः स्वल्पेऽपि क्षुल्लकस्त्रिषु
अश्वखुरम्. (1) - वर्तक (पुं)
3.3.11.1 - जैवातृकः शशाङ्केऽपि खुरेऽप्यश्वस्य वर्तकः
व्याघ्रः. (1) - पुण्डरीक (पुं)
यवः. (1) - दीपक (पुं)
3.3.11.2 - व्याघ्रेऽपि पुण्डरीको ना यवान्यामपि दीपकः
वानरः. (1) - शालावृक (पुं)
जम्भूकः. (1) - शालावृक (पुं)
शुनकः. (1) - शालावृक (पुं)
सुवर्णम्. (1) - गैरिक (नपुं)
3.3.12.1 - शालावृकाः कपिक्रोष्टुश्वानः स्वर्णेऽपि गैरिकम्
दुःखम्. (1) - व्यलीक (नपुं)
असत्यवचनम्. (1) - अलीक (नपुं)
अप्रियम्. (1) - अलीक (नपुं)
3.3.12.2 - पीडार्थेऽपि व्यलीकं स्यादलीकं त्वप्रियेऽनृते
स्वभावः. (1) - अनूक (नपुं)
वंशः. (1) - अनूक (नपुं)
खण्डमात्रम्. (1) - शल्क (नपुं)
वृक्षत्वक्. (1) - शल्क (नपुं)
3.3.13.1 - शीलान्वयावनूके द्वे शल्के शकलवल्कले
3.3.13.2 - साष्टे शते सुवर्णानां हेम्न्युरोभूषणे पले
साष्टशतसुवर्णम्. (1) - निष्क (पुं-नपुं)
हेम्न्युरोभूषणम्. (1) - निष्क (पुं-नपुं)
कर्षचतुष्टयम्. (1) - निष्क (पुं-नपुं)
दीनार नामकनाण्यविशेषः. (1) - निष्क (पुं-नपुं)
कपटः. (1) - कल्क (पुं-नपुं)
पापम्. (1) - कल्क (पुं-नपुं)
मलम्. (1) - कल्क (पुं-नपुं)
3.3.14.1 - दीनारेऽपि च निष्कोऽस्त्री कल्कोऽस्त्री शमलैनसोः
शूलम्. (1) - पिनाक (पुं-नपुं)
3.3.14.2 - दम्भेऽप्यथ पिनाकोऽस्त्री शूलशङ्करधन्वनोः
मेघपङ्क्तिः. (1) - कालिका (स्त्री)
3.3.15.1 - धेनुका तु करेण्वां च मेघजाले च कालिका
यातना. (1) - कारिका (स्त्री)
कृत्यम्. (1) - कारिका (स्त्री)
करिहस्तः. (1) - कर्णिका (स्त्री)
अङ्गुली. (1) - कर्णिका (स्त्री)
पद्मबीजः. (1) - कर्णिका (स्त्री)
3.3.15.2 - कारिका यातनावृत्त्योः कर्णिका कर्णभूषणे
3.3.16.1 - करिहस्तेऽङ्गुलौ पद्मबीजकोश्यां त्रिषूत्तरे
मुख्यः. (2) - वृन्दारक (वि), एक (वि)
रूपिः. (1) - वृन्दारक (वि)
अन्यः. (1) - एक (वि)
केवलः. (1) - एक (वि)
3.3.16.2 - वृन्दारकौ रूपिमुख्यावेके मुख्यान्यकेवलाः
दाम्भिकः. (1) - कौक्कुटिक (वि)
अदूरेरितेक्षणम्. (1) - कौक्कुटिक (वि)
3.3.17.1 - स्याद्दाम्भिकः कौक्कुटिको यश्चादूरेरितेक्षणः
कार्याक्षमः. (1) - ललाटिक (वि)
प्रभोर्भावदर्शिः. (1) - ललाटिक (वि)
3.3.17.2 - ललाटिकः प्रभोर्भालदर्शी कार्याक्षमश्च यः
चक्रम्. (1) - कटक (पुं-नपुं)
मेखलाख्यपर्वतमध्यभागः. (1) - कटक (पुं-नपुं)
3.3.17.3 - भूभृन्नितम्बवलयचक्रेषु कटकोऽस्त्रियाम्
क्षुद्रशत्रुः. (1) - कण्टक (पुं)
सूच्यग्रम्. (1) - कण्टक (पुं)
रोमाञ्चः. (1) - कण्टक (पुं)
3.3.17.4 - सूच्यग्रे क्षुद्रशत्रौ च रोमहर्षे च कण्टकः
मध्यरत्नम्. (1) - नायक (वि)
3.3.17.5 - पाकौ पक्तिशिशू मध्यरत्ने नेतरि नायकः
व्याघ्रः. (1) - लुब्धक (पुं)
3.3.17.6 - पर्यङ्कः स्यात्परिकरे स्याद्व्याघ्रेऽपि च लुब्धकः
समूहः. (1) - पेटक (वि)
संस्कारादिकर्तुर्गुरुः. (1) - देशिक (पुं)
देश्यः. (1) - देशिक (पुं)
3.3.17.7 - पेटकस्त्रिषु वृन्देऽपि गुरौ देश्ये च देशिकः
ग्रामः. (1) - खेटक (नपुं)
फलकः. (1) - खेटक (नपुं)
धीवरः. (1) - जालिक (पुं)
3.3.17.8 - खेटकौ ग्रामफलकौ धीवरेऽपिच जालिकः
पुष्परेणुः. (1) - किञ्जल्क (पुं)
स्त्रीधनम्. (1) - शुल्क (पुं-नपुं)
3.3.17.9 - पुष्परेणौ च किञ्जल्कः शुल्कोऽस्त्री स्त्रीधनेऽपि च
महातरङ्गः. (1) - उत्कलिका (स्त्री)
भावम्. (1) - वार्धक (नपुं)
समूहः. (1) - वार्धक (नपुं)
3.3.17.10 - स्यात्कल्लोलेऽप्युत्कलिका वार्धकं भाववृन्दयोः
हस्तिनी. (1) - गणिका (स्त्री)
बालः. (1) - दारक (नपुं)
भेदकः. (1) - दारक (नपुं)
3.3.17.11 - करिण्यां चापि गणिका दारकौ बालभेदकौ
अचक्षुष्कः. (1) - एडमूक (वि)
अश्मदारणम्. (1) - टङ्क (पुं-नपुं)
मदः. (1) - टङ्क (पुं-नपुं)
3.3.17.12 - अन्धेऽप्यनेडमूकः स्याट्टङ्कौ दर्पाश्मदारणौ
मृद्भाण्डम्. (1) - मन्थ (पुं)
उष्ट्रिका. (1) - मन्थ (पुं)
रसदर्वकम्. (1) - खजक (पुं)
3.3.17.13 - मृद्भाण्डेऽप्युष्ट्रिका मन्थे खजको रसदर्वके
अग्निज्वाला. (1) - मयूख (पुं)
बाणः. (1) - शिलीमुख (पुं)
भ्रमरः. (1) - शिलीमुख (पुं)
3.3.18.1 - मयूखस्त्विट्करज्वालास्वलिबाणौ शिलीमुखौ
ललाटास्थिः. (1) - शङ्ख (पुं-नपुं)
सामान्यनिधिः. (1) - शङ्ख (पुं-नपुं)
चक्षुरादीन्द्रियम्. (1) - ख (नपुं)
3.3.18.2 - शङ्खो निधौ ललटास्थ्निकम्बौ न स्त्रीन्द्रियेऽपि खम्
किरणः. (1) - शिखा (स्त्री)
पर्वतः. (2) - नग (पुं), अग (पुं)
वृक्षः. (2) - नग (पुं), अग (पुं)
3.3.19.1 - धृणिज्वाले अपि शिखे शैलवृक्षौ नगावगौ
सूर्यः. (1) - खग (पुं)
3.3.19.2 - आशुगौ वायुविशिखौ शरार्कविहगाः खगाः
पक्षी. (1) - पतङ्ग (पुं)
सूर्यः. (1) - पतङ्ग (पुं)
समूहः. (1) - पूग (पुं)
3.3.20.1 - पतङ्गौ पक्षिसूर्यौ च पूगः क्रमुकवृन्दयोः
पशुः. (1) - मृग (पुं)
अविच्छेदेन जलादिप्रवृत्तिः. (1) - वेग (पुं)
वेगः. (1) - वेग (पुं)
3.3.20.2 - पशवोऽपि मृगा वेगः प्रवाहजवयोरपि
पुष्परेणुः. (1) - पराग (पुं)
स्नानीयादि गन्धद्रव्यम्. (1) - पराग (पुं)
रजः. (1) - पराग (पुं)
3.3.21.1 - परागः कौसुमे रेणौ स्नानीयादौ रजस्यपि
नागाः. (1) - गज (पुं)
हस्तिः. (1) - गज (पुं)
ललाटकृततिलकम्. (1) - अपाङ्ग (पुं)
3.3.21.2 - गजेऽपि नागमातङ्गावपाङ्गस्तिलकेऽपि च
स्वभावः. (1) - सर्ग (पुं)
निर्मोक्षः. (1) - सर्ग (पुं)
निश्चयः. (1) - सर्ग (पुं)
अध्यायभेदः. (1) - सर्ग (पुं)
सृष्टिः. (1) - सर्ग (पुं)
3.3.22.1 - सर्गः स्वभावनिर्मोक्षनिश्चयाध्यायसृष्टिषु
सन्नहनम्. (1) - योग (पुं)
उपायः. (1) - योग (पुं)
ध्यानम्. (1) - योग (पुं)
सङ्गतिः. (1) - योग (पुं)
युक्तिः. (1) - योग (पुं)
3.3.22.2 - योगः सन्नहनोपायध्यानसङ्गतियुक्तिषु
आनन्दः. (1) - भोग (पुं)
सर्पः. (1) - भोग (पुं)
स्त्र्यादिभृतिः. (1) - भोग (पुं)
3.3.23.1 - भोगः सुखे स्त्र्यादिभृतावहेश्च फणकाययोः
चातकपक्षी. (1) - सारङ्ग (पुं)
हरिणः. (1) - सारङ्ग (पुं)
शबलम्. (1) - सारङ्ग (वि)
3.3.23.2 - चातके हरिणे पुंसि सारङ्गः शबले त्रिषु
शापवचनम्. (1) - अभिषङ्ग (पुं)
पराजयः. (1) - अभिषङ्ग (पुं)
3.3.24.1 - कपौ च प्लवगः शापे त्वभिषङ्गः पराभवे
कृतादियुगाः. (1) - युग (नपुं)
यानाद्यङ्गः. (1) - युग (पुं)
3.3.24.2 - यानाद्यङ्गे युगः पुंसि युगं युग्मे कृतादिषु
3.3.25.1 - स्वर्गेषुपशुवाग्वज्रदिङ्नेत्रधृणिभूजले
बाणः. (1) - गो (स्त्री-पुं)
इन्द्रस्य वज्रायुधम्. (1) - गो (स्त्री-पुं)
जलम्. (1) - गो (स्त्री-पुं)
किरणः. (1) - गो (स्त्री-पुं)
नेत्रम्. (1) - गो (स्त्री-पुं)
पशुः. (1) - गो (स्त्री-पुं)
स्वर्गः. (1) - गो (स्त्री-पुं)
वचनम्. (1) - गो (स्त्री-पुं)
दिक्. (1) - गो (स्त्री-पुं)
चिह्नम्. (1) - लिङ्ग (नपुं)
पुरुषलिङ्गः. (1) - लिङ्ग (नपुं)
3.3.25.2 - लक्ष्यदृष्ट्या स्त्रियां पुंसि गौर्लिङ्गं चिह्नशेफसोः
पर्वतसमभूभागः. (1) - शृङ्ग (नपुं)
प्राधान्यम्. (1) - शृङ्ग (नपुं)
गुह्यदेशः. (1) - वराङ्ग (नपुं)
शिरः. (1) - वराङ्ग (नपुं)
3.3.26.1 - शृङ्गं प्राधान्यसान्वोश्च वराङ्गं मूर्धगुह्ययोः
कीर्तिः. (1) - भग (नपुं)
माहात्म्यम्. (1) - भग (नपुं)
स्पृहा. (1) - भग (नपुं)
वीर्यम्. (1) - भग (नपुं)
धनसमृद्धिः. (1) - भग (नपुं)
यत्नः. (1) - भग (नपुं)
3.3.26.2 - भगं श्रीकाममाहात्म्यवीर्ययत्नार्ककीर्तिषु
परिघातः. (1) - परिघ (पुं)
अम्भसां रयः. (1) - ओघ (पुं)
3.3.27.1 - परिघः परिघातेऽस्त्रेऽप्योघो वृन्देऽम्भसां रये
मूल्यम्. (1) - अर्घ (पुं)
पूजाविधिः. (1) - अर्घ (पुं)
दुःखम्. (1) - अघ (नपुं)
व्यसनम्. (1) - अघ (नपुं)
3.3.27.2 - मूल्ये पूजाविधावर्घोऽहोदुःखव्यसनेष्वघम्
अल्पम्. (1) - लघु (वि)
यथेप्सितम्. (1) - लघु (वि)
मृद्भेदः. (1) - काच (पुं)
दृग्रुजः. (1) - काच (पुं)
3.3.28.1 - त्रिष्विष्टेऽल्पे लघुः काचाः शिक्यभृद्भेददृग्रुजः
व्यतिक्रमः. (1) - प्रपञ्च (पुं)
विस्तरः. (1) - प्रपञ्च (पुं)
शुद्धामात्यः. (1) - शुचि (पुं)
शुक्लवर्णयुक्तः. (1) - शुचि (वि)
शुद्धिः. (1) - शुचि (वि)
3.3.28.2 - विपर्यासे विस्तरे च प्रपञ्चः पावके शुचिः
3.3.29.1 - मास्यमात्ये चाप्युपधे पुंसि मेध्ये सिते त्रिषु
अत्यासक्तिः. (1) - रुचि (स्त्री)
किरणः. (1) - रुचि (स्त्री)
स्पृहा. (1) - रुचि (स्त्री)
3.3.29.2 - अभिष्वङ्गे स्पृहायां च गभस्तौ च रुचिः स्त्रियाम्
भल्लूकः. (1) - अच्छ (पुं)
प्रसन्नः. (1) - अच्छ (पुं)
हारः. (1) - गुच्छ (पुं)
विकासोन्मुखपुष्पम्. (1) - गुच्छ (पुं)
3.3.29.3 - प्रसन्ने भल्लुकेऽप्यच्छो गुच्छः स्तबकहारयोः
अञ्चलः. (1) - कच्छ (पुं)
परिधानम्. (1) - कच्छ (पुं)
3.3.29.4 - परिधानाञ्चले कच्छो जलप्रान्ते त्रिलिङ्गकः
गरुडः. (1) - अहिभुज (पुं)
मयूरः. (1) - अहिभुज (पुं)
दन्तः. (1) - द्विज (पुं)
ब्राह्मणः. (1) - द्विज (पुं)
पक्षिसर्पाद्याः. (1) - द्विज (पुं)
3.3.30.1 - केकि तार्क्ष्यावहिभुजौ दन्तविप्राण्डजा द्विजाः
शिवः. (1) - अज (पुं)
विष्णुः. (1) - अज (पुं)
गवां स्थानम्. (1) - व्रज (पुं)
मार्गः. (1) - व्रज (पुं)
3.3.30.2 - अजा विष्णुहरच्छागा गोष्ठाध्वनिवहा व्रजाः
दन्तः. (1) - कुञ्ज (पुं-नपुं)
3.3.31.1 - धर्मराजौ जिनयमौ कुञ्जो दन्तेऽपि न स्त्रियाम्
क्षेत्रम्. (1) - वलज (नपुं)
पुरमार्गः. (1) - वलज (नपुं)
वल्गुदर्शना. (1) - वलजा (स्त्री)
3.3.31.2 - वलजे क्षेत्रपूर्द्वारे वलजा वल्गुदर्शना
समक्ष्मांशः. (1) - आजि (स्त्री)
जनः. (1) - प्रजा (स्त्री)
सन्ततिः. (1) - प्रजा (स्त्री)
3.3.32.1 - समे क्ष्मांशे रणेऽप्याजिः प्रजा स्यात्सन्ततौ जने
शङ्खः. (1) - अब्ज (पुं)
आत्मीयम्. (1) - निज (वि)
नित्यम्. (1) - निज (वि)
3.3.32.2 - अब्जौ शङ्खशशाङ्कौ च स्वके नित्ये निजं त्रिषु
पुरुषः. (1) - क्षेत्रज्ञ (पुं)
कुशलः. (1) - क्षेत्रज्ञ (वि)
3.3.33.1 - पुंस्यात्मनि प्रवीणे च क्षेत्रज्ञो वाच्यलिङ्गकः
बुद्धिः. (1) - संज्ञा (स्त्री)
गायत्रीच्छन्दः. (1) - संज्ञा (स्त्री)
हस्तादिनार्थसूचना. (1) - संज्ञा (स्त्री)
नाम. (1) - संज्ञा (स्त्री)
सूर्यपत्नी. (1) - संज्ञा (स्त्री)
3.3.33.2 - संज्ञा स्याच्चेतना नाम हस्ताद्यैश्चार्थसूचना
गजगण्डः. (1) - करट (पुं)
3.3.34.1 - काकेभगण्डौ करटौ गजगण्डकटी कटौ
शिवः. (1) - शिपिविष्ट (पुं)
खलः. (1) - शिपिविष्ट (पुं)
दुश्चर्मः. (1) - शिपिविष्ट (पुं)
3.3.34.2 - शिपिविष्टस्तु खलतौ दुश्चर्मणि महेश्वरे
देवशिल्पिः. (1) - त्वष्टृ (पुं)
3.3.35.1 - देवशिल्पिन्यपि त्वष्टा दिष्टं दैवेऽपि न द्वयोः
अकार्यम्. (1) - कटु (नपुं)
कटुरसः. (1) - कटु (पुं)
मत्सरः. (1) - कटु (वि)
तीक्ष्णम्. (1) - कटु (वि)
3.3.35.2 - रसे कटुः कट्वकार्ये त्रिषु मत्सरतीक्ष्णयोः
क्षेमम्. (1) - रिष्ट (नपुं)
अशुभम्. (2) - रिष्ट (नपुं), अरिष्ट (नपुं)
अभावः. (1) - रिष्ट (नपुं)
शुभम्. (1) - अरिष्ट (नपुं)
3.3.36.1 - रिष्टं क्षेमाशुभाभावेष्वरिष्टे तु शुभाशुभे
3.3.36.2 - मायानिश्चलयन्त्रेषु कैतवानृतराशिषु
माया. (1) - कूट (पुं-नपुं)
निश्चलवस्तु. (1) - कूट (पुं-नपुं)
राशिः. (1) - कूट (पुं-नपुं)
कपटः. (1) - कूट (पुं-नपुं)
असत्यवचनम्. (1) - कूट (पुं-नपुं)
यन्त्रम्. (1) - कूट (पुं-नपुं)
अयोघनम्. (1) - कूट (पुं-नपुं)
सीराङ्गः. (1) - कूट (पुं-नपुं)
3.3.37.1 - अयोघने शैलशृङ्गे सीराङ्गे कूटमस्त्रियाम्
अल्पम्. (1) - त्रुटि (स्त्री)
समयः. (1) - त्रुटि (स्त्री)
संशयः. (1) - त्रुटि (स्त्री)
3.3.37.2 - सूक्ष्मैलायां त्रुटिः स्त्री स्यात्कालेऽल्पे संशयेऽपि सा
अत्युत्कर्षः. (1) - कोटी (स्त्री)
आश्रयः. (1) - कोटी (स्त्री)
मूलम्. (1) - जटा (स्त्री)
3.3.38.1 - आर्त्युत्कर्षाश्रयः कोट्यो मूले लग्नकचे जटा
फलम्. (1) - व्युष्टि (स्त्री)
समृद्धिः. (1) - व्युष्टि (स्त्री)
ज्ञानम्. (1) - दृष्टि (स्त्री)
वीक्षणम्. (1) - दृष्टि (स्त्री)
3.3.38.2 - व्युष्टिः फले समृद्धौ च दृष्टिर्ज्ञानेऽक्ष्णि दर्शने
इच्छा. (1) - इष्टि (स्त्री)
यज्ञः. (1) - इष्टि (स्त्री)
बहूनि. (1) - सृष्टि (वि)
निश्चितम्. (1) - सृष्टि (वि)
3.3.39.1 - इष्टिर्यागेच्छयोः सृष्टं निश्चिते बहुनि त्रिषु
दुष्प्रवेशः. (1) - कष्ट (वि)
3.3.39.2 - कष्टे तु कृच्छ्रगहने दक्षामन्दागदेषु तु
अमन्दः. (1) - पटु (वि)
औषधम्. (1) - पटु (वि)
शिवः. (1) - नीलकण्ठ (पुं)
3.3.40.1 - पटुर्द्वौ वाच्यलिङ्गौ च नीलकण्ठः शिवेऽपि च
अन्तर्जठरम्. (1) - कोष्ठ (पुं)
अन्तर्गृहम्. (1) - कोष्ठ (पुं)
कुसूलः. (1) - कोष्ठ (पुं)
3.3.40.2 - पुंसि कोष्ठोऽन्तर्जठरं कुसूलोऽन्तर्गृहं तथा
अन्त्यम्. (1) - निष्ठा (स्त्री)
नाशः. (1) - निष्ठा (स्त्री)
निष्पत्तिः. (1) - निष्ठा (स्त्री)
मर्यादा. (1) - काष्ठा (स्त्री)
उत्कर्षः. (1) - काष्ठा (स्त्री)
3.3.41.1 - निष्ठा निष्पत्तिनाशान्ताः काष्ठोत्कर्षे स्थितौ दिशि
अतिशस्तः. (1) - ज्येष्ठ (वि)
अल्पम्. (1) - कनिष्ठा (वि)
अतियुवा. (1) - कनिष्ठा (वि)
3.3.41.2 - त्रिषु ज्येष्ठोऽतिशस्तेऽपि कनिष्ठोऽतियुवाल्पयोः
लगुडः. (1) - दण्ड (पुं-नपुं)
गोलः. (1) - गुड (पुं)
इक्षुपाकः. (1) - गुड (पुं)
3.3.42.1 - दण्डोऽस्त्री लगुडेऽपि स्याद्गुडो गोलेक्षुपाकयोः
सर्पः. (1) - व्याड (पुं)
मांसात्पशुः. (1) - व्याड (पुं)
भूमिः. (1) - इडा (स्त्री)
गौः. (2) - इडा (स्त्री), इला (स्त्री)
वचनम्. (2) - इडा (स्त्री), इला (स्त्री)
3.3.42.2 - सर्प मांसात्पशू व्याडौ गोभूवाचस्त्विडा इलाः
वंशशलाका. (1) - क्ष्वेडा (स्त्री)
षट् क्षणकालः. (1) - नाडी (स्त्री)
3.3.43.1 - क्ष्वेडा वंशशलाकापि नाडी कालेऽपि षट्क्षणे
अवसरः. (1) - काण्ड (पुं-नपुं)
अधमम्. (1) - काण्ड (पुं-नपुं)
बाणः. (1) - काण्ड (पुं-नपुं)
जलम्. (1) - काण्ड (पुं-नपुं)
वर्गः. (1) - काण्ड (पुं-नपुं)
दण्डः. (1) - काण्ड (पुं-नपुं)
3.3.43.2 - काण्डोऽस्त्री दण्डबाणार्ववर्गावसरवारिषु
अश्वभूषा. (1) - भाण्ड (नपुं)
मूलवणिग्धनम्. (1) - भाण्ड (नपुं)
3.3.44.1 - स्याद्भाण्डमश्वाभरणेऽमत्रे मूलवणिग्धने
भृशप्रतिज्ञा. (1) - बाढ (नपुं)
भृशम्. (1) - प्रगाढ (नपुं)
दुःखम्. (1) - प्रगाढ (नपुं)
3.3.44.2 - भृशप्रतिज्ञयोर्बाढं प्रगाढं भृशकृच्छ्रयोः
शक्तः. (1) - दृढ (वि)
स्थूलम्. (1) - दृढ (वि)
संहतः. (1) - व्यूढ (वि)
विन्यस्तः. (1) - व्यूढ (वि)
3.3.45.1 - शक्तस्थूलौ त्रिषु दृढौ व्यूढौ विन्यस्तसंहतौ
शिशुः. (1) - भ्रूण (पुं)
बलिसुतः. (1) - बाण (पुं)
3.3.45.2 - भ्रूणोऽर्भके स्त्रैणगर्भे बाणो बलिसुते शरे
अतिसूक्ष्मधान्यांशः. (1) - कण (पुं)
सङ्घातः. (1) - गण (पुं)
शिवानुचरः. (1) - गण (पुं)
3.3.46.1 - कणोऽतिसूक्ष्मे धान्यांशे सङ्घाते प्रमथे गणः
भृतिः. (1) - पण (पुं)
धनम्. (1) - पण (पुं)
द्यूतादिषूत्सृष्टः. (1) - पण (पुं)
3.3.46.2 - पणो द्यूतादिषूत्सृष्टे भृतौ मूल्ये धनेऽपि च
रूपरसगन्धादयः. (1) - गुण (पुं)
सत्वरजस्तमाः. (1) - गुण (पुं)
शुक्लनीलादयः. (1) - गुण (पुं)
सन्धिविग्रहादयः. (1) - गुण (पुं)
3.3.47.1 - मौर्व्यां द्रव्याश्रिते सत्वशौर्यसन्ध्यादिके गुणः
निर्व्यापारस्थितिः. (1) - क्षण (पुं)
3.3.47.2 - निर्व्यापारस्थितौ कालविशेषोत्सवयोः क्षणः
शुक्लादयः. (1) - वर्ण (पुं)
स्तुतिः. (1) - वर्ण (पुं)
ब्राह्मणादिवर्णचतुष्टयवाचकः. (1) - वर्ण (पुं)
अक्षरम्. (1) - वर्ण (पुं-नपुं)
3.3.48.1 - वर्णो द्विजादौ शुक्लादौ स्तुतौ वर्णं तु वाक्षरे
3.3.48.2 - अरुणो भास्करेऽपि स्याद्वर्णभेदेऽपि च त्रिषु
काकः. (1) - द्रोण (पुं)
शब्दः. (1) - रण (पुं)
3.3.49.1 - स्थाणुः शर्वेऽप्यथ द्रोणः काकेऽप्याजौ रवे रणः
क्षुरिः. (1) - ग्रामणी (पुं)
श्रेष्ठः. (1) - ग्रामणी (वि)
ग्रामाधिपः. (1) - ग्रामणी (वि)
3.3.49.2 - ग्रामणीर्नापिते पुंसि श्रेष्ठे ग्रामाधिपे त्रिषु
मेषलोमः. (1) - ऊर्णा (स्त्री)
भ्रुवौ अन्तरा आवर्तः. (1) - ऊर्णा (स्त्री)
3.3.50.1 - ऊर्णा मेषादिलोम्नि स्यादावर्ते चान्तरा भ्रुवोः
हरितवलयः. (1) - हरिणी (स्त्री)
हेमप्रतिमा. (1) - हरिणी (स्त्री)
मृगी. (1) - हरिणी (स्त्री)
3.3.50.2 - हरिणी स्यान्मृगी हेमप्रतिमा हरिता च या
स्तम्भः. (1) - स्थूणा (स्त्री)
वेश्मा. (1) - स्थूणा (स्त्री)
3.3.51.1 - त्रिषु पाण्डौ च हरिणः स्थूणा स्तम्भेऽपि वेश्मनः
स्पृहा. (1) - तृष्णा (स्त्री)
पिपासा. (1) - तृष्णा (स्त्री)
जुगुप्सा. (1) - घृणा (स्त्री)
3.3.51.2 - तृष्णे स्पृहापिपासे द्वे जुगुप्साकरुणे घृणे
वणिक्पथः. (1) - विपणि (स्त्री)
पश्चिमदिग्देशकालाः. (1) - वारुणी (स्त्री)
सुरा. (1) - वारुणी (स्त्री)
3.3.52.1 - वणिक्पथे च विपणिः सुरा प्रत्यक्च वारुणी
हस्तिः. (1) - करेणु (पुं)
हस्तिनी. (1) - करेणु (स्त्री)
द्रव्यम्. (1) - द्रविण (नपुं)
बलम्. (1) - द्रविण (नपुं)
3.3.52.2 - करेणुरिभ्यां स्त्री नेभे द्रविणं तु बलं धनम्
रक्षिता. (1) - शरण (नपुं)
गृहम्. (1) - शरण (नपुं)
पद्मम्. (1) - श्रीपर्ण (नपुं)
3.3.53.1 - शरणं गृहरक्षित्रोः श्रीपर्णं कमलेऽपि च
अभिमरः. (1) - तीक्ष्ण (नपुं)
विषम्. (1) - तीक्ष्ण (नपुं)
3.3.53.2 - विषाभिमरलोहेषु तीक्ष्णं क्लीबे खरे त्रिषु
इयत्ता. (1) - प्रमाण (नपुं)
कारणम्. (1) - प्रमाण (नपुं)
मर्यादा. (1) - प्रमाण (नपुं)
प्रमाता. (1) - प्रमाण (नपुं)
शास्त्रम्. (1) - प्रमाण (नपुं)
3.3.54.1 - प्रमाणं हेतुमर्यादाशास्त्रेयत्ताप्रमातृषु
साधकतमम्. (1) - करण (नपुं)
क्षेत्रम्. (1) - करण (नपुं)
देहः. (1) - करण (नपुं)
इन्द्रियम्. (1) - करण (नपुं)
3.3.54.2 - करणं साधकतमं क्षेत्रगात्रेन्द्रियेष्वपि
निष्प्रयाससैन्यगमनम्. (1) - संसरण (नपुं)
प्राण्युत्पादरूपसंसारम्. (1) - संसरण (नपुं)
3.3.55.1 - प्राण्युत्पादे संसरणमसंबाधचमूगतौ
उन्नयनक्रिया. (1) - समुद्गिरण (नपुं)
वान्तान्नः. (1) - समुद्गिरण (नपुं)
3.3.55.2 - घण्टापथेऽथ वान्तान्ने समुद्गिरणमुन्नये
पशुशृङ्गः. (1) - विषाण (वि)
इभदन्तः. (1) - विषाण (वि)
3.3.56.1 - अतस्त्रिषु विषाणं स्यात्पशुशृङ्गेभदन्तयोः
चतुष्पथम्. (1) - प्रवण (पुं)
क्रमनिम्नोर्वी. (1) - प्रवण (वि)
प्रह्वः. (1) - प्रवण (वि)
3.3.56.2 - प्रवणं क्रमनिम्नोर्व्यां प्रह्वे ना तु चतुष्पथे
निचितम्. (1) - सङ्कीर्ण (वि)
अशुद्धः. (1) - सङ्कीर्ण (वि)
शून्यम्. (1) - ईरिण (वि)
ऊषरदेशः. (1) - ईरिण (वि)
3.3.57.1 - सङ्कीर्णौ निचिताशुद्धाविरिणं शून्यमूषरम्
सेतुः. (1) - वरण (पुं)
कचोच्चयः. (1) - वेणी (स्त्री)
नदीभेदः. (1) - वेणी (स्त्री)
3.3.57.2 - सेतौ च वरणो वेणी नदीभेदे कचोच्चये
देवः. (1) - विवस्वत् (पुं)
नदविशेषः. (1) - सरस्वत् (पुं)
3.3.57.3 - देवसूर्यौ विवस्वन्तौ सरस्वन्तौनदार्णवौ
भासः. (1) - शकुन्त (पुं)
3.3.58.1 - पक्षितार्क्ष्यौ गरुत्मन्तौ शकुन्तौ भासपक्षिणौ
उत्पातः. (1) - धूमकेतु (पुं)
अग्निः. (1) - धूमकेतु (पुं)
पर्वतः. (1) - जीमूत (पुं)
3.3.58.2 - अग्न्युत्पातौ धूमकेतू जीमूतौ मेघपर्वतौ
हस्तः. (1) - हस्त (पुं)
नक्षत्रनाम. (1) - हस्त (पुं)
वायुदेवः. (1) - मरुत् (पुं)
3.3.59.1 - हस्तौ तु पाणिनक्षत्रे मरुतौ पवनामरौ
हस्तिपकः. (1) - यन्तृ (पुं)
पोष्टा. (1) - भर्तृ (पुं)
धाता. (1) - भर्तृ (पुं)
3.3.59.2 - यन्ता हस्तिपके सूते भर्ता धातरि पोष्टरि
नौका. (1) - पोत (पुं)
3.3.60.1 - यानपात्रे शिशौ पोतः प्रेतः प्राण्यन्तरे मृते
ग्रहभेदः. (1) - केतु (पुं)
पताका. (1) - केतु (पुं)
राजा. (1) - सुत (पुं)
3.3.60.2 - ग्रहभेदे ध्वजे केतुः पार्थिवे तनये सुतः
कारुभेदः. (1) - स्थपति (पुं)
पर्वतः. (1) - भूभृत् (पुं)
राजा. (1) - भूभृत् (पुं)
3.3.61.1 - स्थपतिः कारुभेदेऽपि भूभृद्भूमिधरे नृपे
राजा. (1) - मूर्धाभिषिक्त (पुं)
आर्तवम्. (1) - ऋतु (पुं)
3.3.61.2 - मूर्धाभिषिक्तो भूपेऽपि ऋतुः स्त्री कुसुमेऽपि च
विष्णुः. (2) - अजित (पुं), अव्यक्त (पुं)
तक्षः. (1) - सूत (पुं)
3.3.62.1 - विष्णावप्यजिताव्यक्तौ सूतस्त्वष्टरि सारथौ
विद्वान्. (1) - व्यक्त (वि)
शास्त्रम्. (1) - दृष्टान्त (पुं)
निदर्शनम्. (1) - दृष्टान्त (पुं)
3.3.62.2 - व्यक्तः प्राज्ञेऽपि दृष्टान्तावुभौ शास्त्रनिदर्शने
द्वारपालकः. (1) - क्षन्त्रृ (पुं)
3.3.63.1 - क्षत्ता स्यात्सारथौ द्वाःस्थे क्षत्रियायां च शूद्रजे
भेदः. (1) - वृत्तान्त (पुं)
कार्त्स्न्यम्. (1) - वृत्तान्त (पुं)
प्रकरणम्. (1) - वृत्तान्त (पुं)
3.3.63.2 - वृत्तान्तः स्यात्प्रकरणे प्रकारे कार्त्स्न्यवार्तयोः
जननिवासस्थानम्. (1) - आनर्त (पुं)
नृत्यस्थानम्. (1) - आनर्त (पुं)
युद्धम्. (1) - आनर्त (पुं)
3.3.64.1 - आनर्तः समरे नृत्यस्थाननीवृद्विशेषयोः
सिद्धान्तः. (1) - कृतान्त (पुं)
अकुशलकर्मम्. (1) - कृतान्त (पुं)
प्राक्तनशुभाशुभकर्मः. (1) - कृतान्त (पुं)
3.3.64.2 - कृतान्तो यमसिद्धान्तदैवाकुशलकर्मसु
3.3.65.1 - श्लेष्मादि रसरक्तादि महाभूतानि तद्गुणाः
श्लेष्मादिः. (1) - धातु (पुं)
रसरक्तादिः. (1) - धातु (पुं)
महाभूताः. (1) - धातु (पुं)
महाभूतगुणाः. (1) - धातु (पुं)
इन्द्रियम्. (1) - धातु (पुं)
अश्मविकृतिः. (1) - धातु (पुं)
शब्दयोनिः. (1) - धातु (पुं)
3.3.65.2 - इन्द्रियाण्यश्मविकृतिः शब्दयोनिश्च धातवः
कक्षान्तरम्. (1) - शुद्धान्त (पुं)
नृपस्यासर्वगोचरप्रदेशः. (1) - शुद्धान्त (पुं)
3.3.66.1 - कक्षान्तरेऽपि शुद्धान्तो नृपस्यासर्वगोचरे
काठिन्यम्. (1) - मूर्ति (स्त्री)
कासूः. (1) - शक्ति (स्त्री)
3.3.66.2 - कासूसामर्थ्ययोः शक्तिर्मूर्तिः काठिन्यकाययोः
विशालता. (1) - व्रतति (स्त्री)
रात्रिः. (1) - वसति (स्त्री)
वेश्मा. (1) - वसति (स्त्री)
3.3.67.1 - विस्तारवल्लयोर्व्रततिर्वसती रात्रिवेश्मनोः
अपचयः. (1) - अपचिति (स्त्री)
दानम्. (1) - साति (स्त्री)
3.3.67.2 - क्षयार्चयोरपचितिः सातिर्दानावसानयोः
धनुष्कोटिः. (1) - अर्ति (स्त्री)
दुःखम्. (1) - अर्ति (स्त्री)
जननम्. (1) - जाति (स्त्री)
सामान्यम्. (1) - जाति (स्त्री)
3.3.68.1 - आर्तिः पीडा धनुष्कोट्योर्जातिः सामान्यजन्मनोः
डिम्बः. (1) - ईति (स्त्री)
प्रवासः. (1) - ईति (स्त्री)
प्रचारः. (1) - रीति (स्त्री)
स्यन्दः. (1) - रीति (स्त्री)
3.3.68.2 - प्रचारस्यन्दयो रीतिर्डिम्बप्रवासयोः
उदयः. (1) - प्राप्ति (स्त्री)
अधिकफलम्. (1) - प्राप्ति (स्त्री)
अग्निः. (1) - त्रेता (स्त्री)
त्रेतायुगम्. (1) - त्रेता (स्त्री)
3.3.69.1 - उदयेऽधिगमे प्राप्तिस्त्रेता त्वग्नित्रये युगे
वीणाभेदः. (1) - महती (स्त्री)
धनसमृद्धिः. (1) - भूति (स्त्री)
3.3.69.2 - वीणाभेदेऽपि महती भूतिर्भस्मनि सम्पदि
नगरम्. (1) - भोगवती (स्त्री)
नदी. (1) - भोगवती (स्त्री)
नागाः. (1) - भोगवती (स्त्री)
3.3.70.1 - नदी नगर्योर्नागानां भोगवत्यथ सङ्गरे
सङ्गम्. (1) - समिति (स्त्री)
सङ्गरम्. (1) - समिति (स्त्री)
अपचयः. (1) - क्षिति (स्त्री)
वासः. (1) - क्षिति (स्त्री)
3.3.70.2 - सङ्गे सभायां समितिः क्षयवासावपि क्षिती
आयुधम्. (1) - हेति (स्त्री)
रवेरर्चिः. (1) - हेति (स्त्री)
3.3.71.1 - रवेरर्चिश्च शस्त्रं च वह्निज्वाला च हेतयः
जगतीच्छन्दः. (1) - जगती (स्त्री)
3.3.71.2 - जगती जगति च्छन्दोविशेषेऽपि क्षितावपि
पङ्क्तिच्छन्दः. (1) - पङ्क्ति (स्त्री)
दशमम्. (1) - पङ्क्ति (स्त्री)
प्रभावः. (1) - आयति (स्त्री)
3.3.72.1 - पङ्क्तिश्छन्दोऽपि दशमं स्यात्प्रभावेऽपि चायतिः
गतिः. (1) - पत्ति (स्त्री)
3.3.72.2 - पत्तिर्गतौ च मूले तु पक्षतिः पक्षभेदयोः
पुरुषलिङ्गः. (1) - प्रकृति (स्त्री)
स्त्रीयोनिः. (1) - प्रकृति (स्त्री)
कैशिक्याद्याः. (1) - वृत्ति (स्त्री)
3.3.73.1 - प्रकृतिर्योनिलिङ्गे च कैशिक्याद्याश्च वृत्तयः
वालुका. (1) - सिकता (स्त्री-बहु)
श्रवः. (1) - श्रुति (स्त्री)
वेदः. (1) - श्रुति (स्त्री)
3.3.73.2 - सिकताः स्युर्वालुकापि वेदे श्रवसि च श्रुतिः
जनितात्यर्थानुरागा. (1) - वनिता (स्त्री)
3.3.74.1 - वनिता जनितात्यर्थानुरागायां च योषिति
क्षितिव्युदासः. (1) - गुप्ति (स्त्री)
धारणम्. (1) - धृति (स्त्री)
धैर्यम्. (1) - धृति (स्त्री)
3.3.74.2 - गुप्तिः क्षितिव्युदासेऽपि धृतिर्धारणधैर्ययोः
बृहतीच्छन्दः. (1) - बृहती (स्त्री)
महती. (1) - बृहती (स्त्री)
3.3.75.1 - बृहती क्षुद्रवार्ताकी छन्दोभेदे महत्यपि
हस्तिनी. (1) - वासिता (स्त्री)
स्त्री. (1) - वासिता (स्त्री)
लोकप्रवादः. (1) - वार्ता (स्त्री)
3.3.75.2 - वासिता स्त्री करिण्योश्च वार्ता वृत्तौ जनश्रुतौ
निःसारम्. (1) - वार्त (नपुं)
अरोगः. (1) - वार्त (वि)
जलम्. (1) - घृत (नपुं)
3.3.76.1 - वार्तं फल्गुन्यरोगे च त्रिष्वप्सु च घृतामृते
रूप्यकम्. (1) - कलधौत (नपुं)
सुवर्णम्. (1) - कलधौत (नपुं)
कारणम्. (1) - निमित्त (नपुं)
चिह्नम्. (1) - निमित्त (नपुं)
3.3.76.2 - कलधौतं रूप्यहेम्नोर्निमित्तं हेतुलक्ष्मणोः
अवधृतम्. (1) - श्रुत (नपुं)
शास्त्रम्. (1) - श्रुत (नपुं)
कृतयुगम्. (1) - कृत (नपुं)
पर्याप्तिः. (1) - कृत (नपुं)
3.3.77.1 - श्रुतं शास्त्रावधृतयोर्युगपर्याप्तयोः कृतम्
महाभीतिः. (1) - अत्याहित (नपुं)
जीवानपेक्षिः. (1) - अत्याहित (नपुं)
3.3.77.2 - अत्याहितं महाभीतिः कर्म जीवानपेक्षि च
आवृतम्. (1) - भूत (नपुं)
अतीतः. (1) - भूत (नपुं)
भूमिः. (1) - भूत (नपुं)
प्राणी. (1) - भूत (नपुं)
युक्तम्. (1) - भूत (नपुं)
3.3.78.1 - युक्ते क्ष्मादावृते भूतं प्राण्यतीते समे त्रिषु
चरित्रम्. (1) - वृत्त (नपुं)
पद्यम्. (1) - वृत्त (नपुं)
अतीतः. (1) - वृत्त (वि)
दृढम्. (1) - वृत्त (वि)
3.3.78.2 - वृत्तं पद्ये चरित्रे त्रिष्वतीते दृढनिस्तले
राज्यम्. (1) - महत् (नपुं)
जनवादः. (1) - अवगीत (नपुं)
गर्हितम्. (1) - अवगीत (वि)
3.3.79.1 - महद्राज्यं चावगीतं जन्ये स्याद्गर्हिते त्रिषु
रूप्यकम्. (2) - श्वेत (नपुं), रजत (नपुं)
सुवर्णम्. (1) - रजत (नपुं)
शुक्लवर्णयुक्तः. (1) - रजत (वि)
3.3.79.2 - श्वेतं रूप्येऽपि रजतं हेम्नि रूप्ये सिते त्रिषु
चरम्. (1) - जगत् (वि)
नील्यादिरागिः. (1) - रक्त (वि)
3.3.80.1 - त्रिष्वितो जगदिङ्गेऽपि रक्तं नील्यादि रागि च
शुक्लवर्णयुक्तः. (1) - अवदात (वि)
पीतवर्णः. (1) - अवदात (वि)
शुद्धम्. (1) - अवदात (वि)
3.3.80.2 - अवदातः सिते पीते शुद्धे बद्धार्जुनौ सितौ
कृत्रिमम्. (1) - संस्कृत (वि)
लक्षणोपेतम्. (1) - संस्कृत (वि)
अतिसंस्कृतम्. (1) - अभिनीत (वि)
मर्षिः. (1) - अभिनीत (वि)
युक्तम्. (1) - अभिनीत (वि)
3.3.81.1 - युक्तेऽतिसंस्कृतेऽमर्षिण्यभिनीतोऽथ संस्कृतम्
अनवधिः. (1) - अनन्त (वि)
3.3.81.2 - कृत्रिमे लक्षणोपेतेऽप्यनन्तोऽनवधावपि
प्रमुदितः. (1) - प्रतीत (वि)
कुलजः. (1) - अभिजात (वि)
बुधः. (1) - अभिजात (वि)
3.3.82.1 - ख्याते हृष्टे प्रतीतोऽभिजातस्तु कुलजे बुधे
पवित्रः. (1) - विविक्ति (वि)
विजनः. (1) - विविक्ति (वि)
मूर्खः. (1) - मूर्छित (वि)
सोच्छ्रयः. (1) - मूर्छित (वि)
3.3.82.2 - विविक्तौ पूतविजनौ मूर्छितौ मूढसोच्छ्रयौ
शुल्कवर्णः. (1) - शिति (वि)
कृष्णवर्णः. (1) - शिति (वि)
अम्लरसः. (1) - शुक्त (वि)
परुषम्. (1) - शुक्त (वि)
3.3.83.1 - द्वौ चाम्लपरुषौ शुक्तौ शिती धवलमेचकौ
अभ्यर्हितम्. (1) - सत् (वि)
प्रशस्तम्. (1) - सत् (वि)
विद्यमानम्. (1) - सत् (वि)
साधुः. (1) - सत् (वि)
सत्यम्. (1) - सत् (वि)
3.3.83.2 - सत्ये साधौ विद्यमाने प्रशस्तेऽभ्यर्हिते च सत्
अरात्यभियुक्ते अग्रतः कृतः. (1) - पुरस्कृत (वि)
पूजितः. (1) - पुरस्कृत (वि)
3.3.84.1 - पुरस्कृतः पूजितेऽरात्यभियुक्तेऽग्रतः कृते
आश्रयः. (1) - निवात (वि)
अवातः. (1) - निवात (वि)
शस्त्राभेद्यः. (1) - निवात (वि)
वर्मः. (1) - निवात (वि)
3.3.84.2 - निवातावाश्रयावातौ शस्त्राभेद्यं च वर्म यत्
जातः. (1) - उच्छ्रित (वि)
प्रवृद्धम्. (1) - उच्छ्रित (वि)
उन्नद्धः. (1) - उच्छ्रित (वि)
प्रोद्यतः. (1) - उत्थित (वि)
उत्पन्नः. (1) - उत्थित (वि)
वृद्धिमत्. (1) - उत्थित (वि)
3.3.85.1 - जातोन्नद्धप्रवृद्धाः स्युरुच्छ्रिता उत्थितास्त्वमी
अर्चितः. (1) - आदृत (वि)
सादरः. (1) - आदृत (वि)
3.3.85.2 - वृद्धिमत्प्रोद्यतोत्पन्ना आदृतौ सादरार्चितौ
अभिधेयः. (1) - अर्थ (पुं)
निवृत्तिः. (1) - अर्थ (पुं)
प्रयोजनम्. (1) - अर्थ (पुं)
वस्तु. (1) - अर्थ (पुं)
3.3.86.1 - अर्थोऽभिधेयरैवस्तुप्रयोजननिवृत्तिषु
आगमः. (1) - तीर्थ (नपुं)
कूपसमीपरचितजलाधारः. (1) - तीर्थ (नपुं)
ऋषिजुष्टजलम्. (1) - तीर्थ (नपुं)
संस्कारादिकर्तुर्गुरुः. (1) - तीर्थ (नपुं)
3.3.86.2 - निपानागमयोस्तीर्थमृषिजुष्टे जले गुरौ
अन्योन्यसम्बद्धार्थः. (1) - समर्थ (वि)
हितम्. (1) - समर्थ (वि)
शक्तिस्थः. (1) - समर्थ (वि)
3.3.87.1 - समर्थस्त्रिषु शक्तिस्थे सम्बद्धार्थे हितेऽपि च
क्षीणरागः. (1) - दशमीस्थ (पुं)
वृद्धः. (1) - दशमीस्थ (पुं)
मार्गः. (1) - वीथी (स्त्री)
3.3.87.2 - दशमीस्थौ क्षीणरागवृद्धौ वीथी पदव्यपि
सभा. (1) - आस्था (स्त्री)
यत्नः. (1) - आस्था (स्त्री)
मानः. (1) - प्रस्थ (पुं-नपुं)
3.3.88.1 - आस्थानी यत्नयोरास्था प्रस्थोऽस्त्री सानुमानयोः
शास्त्रम्. (1) - ग्रन्थ (पुं)
द्रव्यम्. (1) - ग्रन्थ (पुं)
आधारः. (1) - संस्था (स्त्री)
स्थितिः. (1) - संस्था (स्त्री)
मृतिः. (1) - संस्था (स्त्री)
3.3.88.2 - शास्त्रद्रविणयोर्ग्रन्थः संस्थाधारे स्थितौ मृतौ
अभिप्रायः. (1) - छन्द (पुं)
वशः. (1) - छन्द (पुं)
मेघः. (1) - अब्द (पुं)
वत्सरः. (1) - अब्द (पुं)
3.3.88.3 - अभिप्रायवशौ छन्दावब्दौ जीमूतवत्सरौ
अज्ञः. (1) - अपवाद (पुं)
निन्दा. (1) - अपवाद (पुं)
पुत्रः. (1) - दायाद (पुं)
सगोत्रः. (1) - दायाद (पुं)
3.3.89.1 - अपवादौ तु निन्दाज्ञे दायादौ सुतबान्धवौ
किरणः. (1) - पाद (पुं)
तुर्यांशः. (1) - पाद (पुं)
अग्निः. (1) - तमोनुद् (पुं)
चन्द्रः. (1) - तमोनुद् (पुं)
सूर्यः. (1) - तमोनुद् (पुं)
3.3.89.2 - पादा रश्म्यङ्घ्रितुर्यांशाश्चन्द्राग्न्यर्कास्तमोनुदः
जनवादः. (1) - निर्वाद (पुं)
नूतनतृणम्. (1) - शाद (पुं)
3.3.90.1 - निर्वादो जनवादेऽपि शादो जम्बालशष्पयोः
सरवरोदनम्. (1) - आक्रन्द (पुं)
त्राता. (1) - आक्रन्द (पुं)
दारुणरणम्. (1) - आक्रन्द (पुं)
3.3.90.2 - आरावे रुदिते त्रातर्याक्रन्दो दारुणे रणे
अनुसरणम्. (1) - प्रसाद (पुं)
व्यञ्जनम्. (1) - सूद (वि)
3.3.91.1 - स्यात्प्रसादोऽनुरागेऽपि सूदः स्याद्व्यञ्जनेऽपि च
गोपालः. (1) - गोविन्द (पुं)
आनन्दः. (1) - आमोद (पुं)
मदः. (1) - आमोद (पुं)
3.3.91.2 - गोष्ठाध्यक्षेऽपि गोविन्दो हर्षेऽप्यामोदवन्मदः
प्राधान्यम्. (1) - ककुद (पुं-नपुं)
राजचिह्नम्. (1) - ककुद (पुं-नपुं)
वृषाङ्गम्. (1) - ककुद (पुं-नपुं)
3.3.92.1 - प्राधान्ये राजलिङ्गे च वृषाङ्गे ककुदोऽस्त्रियाम्
ज्ञानम्. (1) - संविद् (स्त्री)
क्रियाकारः. (1) - संविद् (स्त्री)
सम्भाषणम्. (1) - संविद् (स्त्री)
युद्धम्. (1) - संविद् (स्त्री)
3.3.92.2 - स्त्री संविज्ज्ञानसंभाषाक्रियाकाराजिनामसु
धर्मः. (1) - उपनिषद् (स्त्री)
रहस्यम्. (1) - उपनिषद् (स्त्री)
वत्सरः. (1) - शरद् (स्त्री)
3.3.93.1 - धर्मे रहस्युपनिषत्स्यादृतौ वत्सरे शरत्
वस्तु. (1) - पद (नपुं)
चरणः. (1) - पद (नपुं)
चिह्नम्. (1) - पद (नपुं)
स्थानम्. (1) - पद (नपुं)
त्राणनम्. (1) - पद (नपुं)
व्यवसितिः. (1) - पद (नपुं)
3.3.93.2 - पदं व्यवसितत्राणस्थानलक्ष्माङ्घ्रिवस्तुषु
मानः. (1) - गोष्पद (नपुं)
सेवितः. (1) - गोष्पद (नपुं)
कृत्यम्. (1) - आस्पद (नपुं)
प्रतिष्ठा. (1) - आस्पद (नपुं)
3.3.94.1 - गोष्पदं सेविते माने प्रतिष्ठाकृत्यमास्पदम्
मधुरम्. (1) - स्वादु (वि)
यथेप्सितम्. (1) - स्वादु (वि)
अतीक्ष्णः. (1) - मृदु (वि)
3.3.94.2 - त्रिष्विष्टमधुरौ स्वादू मृदू चातीक्ष्णकोमलौ
अल्पम्. (1) - मन्द (वि)
अपटुः. (1) - मन्द (वि)
मूर्खः. (1) - मन्द (वि)
निर्भाग्यः. (1) - मन्द (वि)
प्रत्यग्रः. (1) - शारद (वि)
अप्रतिभः. (1) - शारद (वि)
3.3.95.1 - मूढाल्पापटुनिर्भाग्या मन्दाः स्युर्द्वौ तु शारदौ
विद्वान्. (1) - विशारद (वि)
सुप्रगल्भः. (1) - विशारद (वि)
3.3.95.2 - प्रत्यग्राप्रतिभौ विद्वत्सुप्रगल्भौ विशारदौ
व्यामः. (1) - न्यग्रोध (पुं)
देहः. (1) - उत्सेध (पुं)
उन्नतिः. (1) - उत्सेध (पुं)
3.3.96.1 - व्यामो वटश्च न्यग्रोधावुत्सेधः काय उन्नतिः
पर्याहारः. (2) - विवध (पुं), वीवध (पुं)
मार्गः. (2) - विवध (पुं), वीवध (पुं)
3.3.96.2 - पर्याहारश्च मार्गश्च विवधौ वीवधौ च तौ
यज्ञियतरोः शाखा. (1) - परिधि (पुं)
उपसूर्यकः. (1) - परिधि (पुं)
3.3.97.1 - परिधिर्यज्ञियतरोः शाखायामुपसूर्यके
अधिष्ठानम्. (1) - आधि (पुं)
बन्धकः. (1) - आधि (पुं)
व्यसनम्. (1) - आधि (पुं)
3.3.97.2 - बन्धकं व्यसनं चेतः पीडाधिष्ठानमाधयः
मनोनिग्रहः. (1) - समाधि (पुं)
समर्थनम्. (1) - समाधि (पुं)
धान्यादिसञ्चयः. (1) - समाधि (पुं)
3.3.98.1 - स्युः समर्थननीवाकनियमाश्च समाधयः
मुख्यानुयायिः. (1) - अनुबन्ध (पुं)
प्रकृतस्यानुवर्तनम्. (1) - अनुबन्ध (पुं)
प्रकृतिप्रत्ययादिविनश्वरः. (1) - अनुबन्ध (पुं)
शिशुः. (1) - अनुबन्ध (पुं)
दोषोत्पादः. (1) - अनुबन्ध (पुं)
3.3.98.2 - दोषोत्पादेऽनुबन्धः स्यात्प्रकृतस्यादिविनश्वरे
3.3.99.1 - मुख्यानुयायिनि शिशौ प्रकृतस्यानुवर्तने
परिच्छेदः. (1) - अवधि (पुं)
बिलम्. (1) - अवधि (पुं)
3.3.99.2 - विधुर्विष्णौ चन्द्रमसि परिच्छेदे बिलेऽवधिः
विधानम्. (1) - विधि (पुं)
प्रार्थना. (1) - प्रणिधि (पुं)
3.3.100.1 - विधिर्विधाने दैवेऽपि प्रणिधिः प्रार्थने चरे
विद्वान्. (1) - वृद्धि (पुं)
समुदायः. (1) - स्कन्ध (पुं)
3.3.100.2 - बुधवृद्धौ पण्डितेऽपि स्कन्धः समुदयेऽपि च
नदी. (1) - सिन्धु (स्त्री)
नदविशेषः. (1) - सिन्धु (पुं)
देशः. (1) - सिन्धु (पुं)
3.3.101.1 - देशे नदविशेषेऽब्धौ सिन्धुर्ना सरिति स्त्रियाम्
विधिः. (1) - विधा (स्त्री)
भेदः. (1) - विधा (स्त्री)
रम्यम्. (1) - साधु (वि)
3.3.101.2 - विधा विधौ प्रकारे च साधू रम्येऽपि च त्रिषु
पत्नी. (1) - वधू (स्त्री)
लेपः. (1) - सुधा (स्त्री)
सीहुण्डः. (1) - सुधा (स्त्री)
3.3.102.1 - वधूर्जाया स्नुषा स्त्री च सुधा लेपोऽमृतं स्नुही
प्रतिज्ञा. (1) - सन्धा (स्त्री)
मर्यादा. (1) - सन्धा (स्त्री)
सम्प्रत्ययः. (1) - श्रद्धा (स्त्री)
स्पृहा. (1) - श्रद्धा (स्त्री)
3.3.102.2 - सन्धा प्रतिज्ञा मर्यादा श्रद्धासम्प्रत्ययः स्पृहा
सुरा. (1) - मधु (पुं)
पुष्पमधुः. (1) - मधु (पुं)
अन्धकारः. (1) - अन्ध (नपुं)
3.3.103.1 - मधु मद्ये पुष्परसे क्षौद्रेऽप्यन्धं तमस्यपि
पण्डितम्मन्यः. (1) - समुन्नद्ध (वि)
गर्वितः. (1) - समुन्नद्ध (वि)
3.3.103.2 - अतस्त्रिषु समुन्नद्धौ पण्डितम्मन्यगर्वितौ
ब्राह्मणाधिक्षेपः. (1) - ब्रह्मबन्धु (वि)
ब्राह्मणनिर्देशः. (1) - ब्रह्मबन्धु (वि)
3.3.104.1 - ब्रह्मबन्धुरधिक्षेपे निर्देशेऽथावलम्बितः
अवलम्बितः. (1) - अवष्टब्ध (वि)
अविदूरम्. (1) - अवष्टब्ध (वि)
प्रसिद्धः. (1) - प्रसिद्ध (वि)
भूषितः. (1) - प्रसिद्ध (वि)
3.3.104.2 - अविदूरोऽप्यवष्टब्धः प्रसिद्धौ ख्यातभूषितौ
3.3.105.1 - सूर्यवह्नी चित्रभानू भानू रश्मिदिवाकरौ
धाता. (1) - भूतात्मन् (पुं)
देहः. (1) - भूतात्मन् (पुं)
मूर्खः. (1) - पृथग्जन (पुं)
3.3.105.2 - भूतात्मानौ धातृदेहौ मूर्खनीचौ पृथग्जनौ
3.3.106.1 - ग्रावाणौ शैलपाषाणौ पत्रिणौ शरपक्षिणौ
वृक्षः. (1) - शिखरिन् (पुं)
अग्निः. (1) - शिखिन् (पुं)
3.3.106.2 - तरुशैलौ शिखरिणौ शिखिनौ वह्निबर्हिणौ
स्पृहा. (1) - प्रतियत्न (पुं)
उपग्रहः. (1) - प्रतियत्न (पुं)
सारथिः. (1) - सादिन् (पुं)
3.3.107.1 - प्रतियत्नावुभौ लिप्सोपग्रहावथ सादिनौ
बाणः. (1) - वाजिन् (पुं)
3.3.107.2 - द्वौ सारथिहयारोहौ वाजिनोऽश्वेषु पक्षिणः
जन्मभूमिः. (1) - अभिजन (पुं)
किरणः. (1) - हायन (पुं)
वर्षम्. (1) - हायन (पुं)
व्रीहिभेदः. (1) - हायन (पुं)
3.3.108.1 - कुलेऽप्यभिजनो जन्मभूम्यामप्यथ हायनाः
चन्द्रः. (1) - विरोचन (पुं)
अग्निः. (1) - विरोचन (पुं)
3.3.108.2 - वर्षार्चिर्व्रीहिभेदाश्च चन्द्राग्न्यर्का विरोचनाः
केशः. (1) - वृजिन (पुं)
देवशिल्पिः. (1) - विश्वकर्मन् (पुं)
सूर्यः. (1) - विश्वकर्मन् (पुं)
3.3.109.1 - क्लेशेऽपि वृजिनो विश्वकर्मार्कसुरशिल्पिनोः
ब्रह्मा. (1) - आत्मन् (पुं)
बुद्धिः. (1) - आत्मन् (पुं)
स्वभावः. (1) - आत्मन् (पुं)
देहः. (1) - आत्मन् (पुं)
धृतिः. (1) - आत्मन् (पुं)
यत्नः. (1) - आत्मन् (पुं)
3.3.109.2 - आत्मायत्नो धृतिर्बुद्धिः स्वभावो ब्रह्म वर्ष्म च
इन्द्रः. (1) - घनाघन (पुं)
मत्तगजः. (1) - घनाघन (पुं)
वर्षुकाब्दः. (1) - घनाघन (पुं)
3.3.110.1 - शक्रो घातुकमत्तेभो वर्षुकाब्दो घनाघनः
अर्थादिदर्पाज्ञानम्. (1) - अभिमान (पुं)
हिंसा. (1) - अभिमान (पुं)
प्रणयम्. (1) - अभिमान (पुं)
3.3.110.2 - अभिमानोऽर्थादिदर्पे ज्ञाने प्रणयहिंसयोः
कठिनगुणः. (1) - घन (पुं)
कठिनम्. (1) - घन (वि)
निरन्तरम्. (1) - घन (वि)
3.3.111.1 - घनो मेघे मूर्तिगुणे त्रिषु मूर्ते निरन्तरे
अधिपतिः. (1) - इन (पुं)
चन्द्रः. (1) - राजन् (पुं)
क्षत्रियः. (1) - राजन् (पुं)
राजा. (1) - राजन् (पुं)
3.3.111.2 - इनः सूर्ये प्रभौ राजा मृगाङ्के क्षत्रिये नृपे
नर्तकी. (1) - वाणिनी (स्त्री)
दूती. (1) - वाणिनी (स्त्री)
नदी. (1) - वाहिनी (स्त्री)
3.3.112.1 - वाणिन्यौ नर्तकीदूत्यौ स्रवन्त्यामपि वाहिनी
इन्द्रस्य वज्रायुधम्. (1) - ह्लादिनी (स्त्री)
तडित्. (1) - ह्लादिनी (स्त्री)
वन्दा. (1) - कामिनी (स्त्री)
3.3.112.2 - ह्लादिन्यौ वज्रतडितौ वन्दायामपि कामिनी
चर्मः. (1) - तनु (स्त्री)
अधोजिह्विका. (1) - सूना (स्त्री)
3.3.113.1 - त्वग्देहयोरपि तनुः सूनाधो जिह्विकापि च
विशालता. (1) - वितान (पुं-नपुं)
यज्ञः. (1) - वितान (पुं-नपुं)
तुच्छम्. (1) - वितान (वि)
मदः. (1) - वितान (वि)
3.3.113.2 - क्रतुविस्तारयोरस्त्री वितानं त्रिषु तुच्छके
कृत्यम्. (1) - केतन (नपुं)
पताका. (1) - केतन (नपुं)
उपनिमन्त्रणम्. (1) - केतन (नपुं)
3.3.114.1 - मन्देऽथ केतनं कृत्ये केतावुपनिमन्त्रणे
ब्राह्मणः. (1) - ब्रह्मन् (नपुं)
प्रजापतिः. (1) - ब्रह्मन् (नपुं)
वेदतत्त्वम्. (1) - ब्रह्मन् (नपुं)
तपः. (1) - ब्रह्मन् (नपुं)
3.3.114.2 - वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म ब्रह्मा विप्रः प्रजापतिः
हिंसा. (1) - गन्धन (नपुं)
सूचना. (1) - गन्धन (नपुं)
उत्साहनम्. (1) - गन्धन (नपुं)
3.3.115.1 - उत्साहने च हिंसायां सूचने चापि गन्धनम्
आप्यायनः. (1) - आतञ्चन (नपुं)
प्रतीवापः. (1) - आतञ्चन (नपुं)
वेगः. (1) - आतञ्चन (नपुं)
3.3.115.2 - आतञ्चनं प्रतीवापजवनाप्यायनार्थकम्
चिह्नम्. (1) - व्यञ्जन (नपुं)
दाढिका. (1) - व्यञ्जन (नपुं)
दध्यादिव्यञ्जनम्. (1) - व्यञ्जन (नपुं)
अवयवविशेषः. (1) - व्यञ्जन (नपुं)
3.3.116.1 - व्यञ्जनं लाञ्छनं श्मश्रु निष्ठानावयवेष्वपि
लोकवादः. (1) - कौलीन (नपुं)
पश्वहिपक्षिनाम्युद्धम्. (1) - कौलीन (नपुं)
3.3.116.2 - स्यात्कौलीनं लोकवादे युद्धे पश्वहि पक्षिणाम्
निःसरणम्. (1) - उद्यान (नपुं)
प्रयोजनम्. (1) - उद्यान (नपुं)
3.3.117.1 - स्यादुद्यानं निःसरणे वनभेदे प्रयोजने
अवकाशः. (1) - स्थान (नपुं)
स्थितिः. (1) - स्थान (नपुं)
क्रीडा. (1) - देवन (नपुं)
3.3.117.2 - अवकाशे स्थितौ स्थानं क्रीडादावपि देवनम्
पौरुषम्. (1) - उत्थान (नपुं)
सन्निविष्टोद्गमः. (1) - उत्थान (नपुं)
तन्त्रम्. (1) - उत्थान (नपुं)
3.3.118.1 - उत्थानं पौरुषे तन्त्रे सन्निविष्टोद्गमेऽपि च
प्रतिरोधः. (1) - व्युत्थान (नपुं)
विरोधाचरणम्. (1) - व्युत्थान (नपुं)
3.3.118.2 - व्युत्थानं प्रतिरोधे च विरोधाचरणेऽपि च
3.3.119.1 - मारणे मृतसंस्कारे गतौ द्रव्येऽर्थदापने
अनुव्रज्या. (1) - साधन (नपुं)
गतिः. (1) - साधन (नपुं)
मारणम्. (1) - साधन (नपुं)
मृतसंस्कारः. (1) - साधन (नपुं)
निर्वर्तनम्. (1) - साधन (नपुं)
उपकरणम्. (1) - साधन (नपुं)
उपपादनम्. (1) - साधन (नपुं)
द्रव्यम्. (1) - साधन (नपुं)
3.3.119.2 - निर्वर्तनोपकरणानुव्रज्यासु च साधनम्
न्यासार्पणम्. (1) - निर्यातन (नपुं)
वैरशोधनम्. (1) - निर्यातन (नपुं)
दानम्. (1) - निर्यातन (नपुं)
3.3.120.1 - निर्यातनं वैरशुद्धौ दाने न्यासार्पणेऽपि च
भ्रंशः. (1) - व्यसन (नपुं)
कामजदोषः. (1) - व्यसन (नपुं)
कोपजदोषः. (1) - व्यसन (नपुं)
विपत्. (1) - व्यसन (नपुं)
3.3.120.2 - व्यसनं विपदि भ्रंशे दोषे कामजकोपजे
अक्षिलोमन्. (1) - पक्ष्मन् (नपुं)
पुष्परेणुः. (1) - पक्ष्मन् (नपुं)
तन्त्वाद्यंशे़प्यणीयसी. (1) - पक्ष्मन् (नपुं)
3.3.121.1 - पक्ष्माक्षिलोम्नि किञ्जल्के तन्त्वाद्यम्शेऽप्यणीयसि
तिथिभेदः. (1) - पर्वन् (नपुं)
त्रिंशत् कलाः. (1) - पर्वन् (नपुं)
नेत्रच्छदः. (1) - वर्त्मन् (नपुं)
3.3.121.2 - तिथिभेदे क्षणे पर्व वर्त्म नेत्रच्छदेऽध्वनि
अकार्यम्. (1) - कौपीन (नपुं)
गुह्यम्. (1) - कौपीन (नपुं)
रतम्. (1) - मैथुन (नपुं)
सङ्गतिः. (1) - मैथुन (नपुं)
3.3.122.1 - अकार्यगुह्ये कौपीनं मैथुनं सङ्गतौ रते
परमात्मा. (1) - प्रधान (नपुं)
बुद्धिः. (2) - प्रधान (नपुं), प्रज्ञान (नपुं)
चिह्नम्. (1) - प्रज्ञान (नपुं)
3.3.122.2 - प्रधानं परमात्मा धीः प्रज्ञानं बुद्धिचिह्नयोः
फलम्. (1) - प्रसून (नपुं)
वंशः. (1) - निधन (नपुं)
नाशः. (1) - निधन (नपुं)
3.3.123.1 - प्रसूनं पुष्पफलयोर्निधनं कुलनाशयोः
आह्वानम्. (1) - क्रन्दन (नपुं)
रोदनम्. (1) - क्रन्दन (नपुं)
प्रमाणः. (1) - वर्ष्मन् (नपुं)
3.3.123.2 - क्रन्दने रोदनाह्वाने वर्ष्म देहप्रमाणयोः
गृहम्. (1) - धामन् (नपुं)
किरणः. (1) - धामन् (नपुं)
प्रभावः. (1) - धामन् (नपुं)
देहः. (1) - धामन् (नपुं)
3.3.124.1 - गृहदेहत्विट्प्रभावा धामान्यथ चतुष्पथे
चतुष्पथम्. (1) - संस्थान (नपुं)
सन्निवेशः. (1) - संस्थान (नपुं)
प्रधानम्. (1) - लक्ष्मन् (नपुं)
3.3.124.2 - सन्निवेशे च संस्थानं लक्ष्म चिह्नप्रधानयोः
सम्पिधानम्. (1) - आच्छादन (नपुं)
3.3.125.1 - आच्छादने संपिधानमपवारणमित्युभे
अवाप्तिः. (1) - आराधन (नपुं)
साधनम्. (1) - आराधन (नपुं)
तोषणम्. (1) - आराधन (नपुं)
3.3.125.2 - आराधनं साधने स्यादवाप्तौ तोषणेऽपि च
अध्यासनम्. (1) - अधिष्ठान (नपुं)
चक्रम्. (1) - अधिष्ठान (नपुं)
मूलनगरादन्यनगरम्. (1) - अधिष्ठान (नपुं)
प्रभावः. (1) - अधिष्ठान (नपुं)
3.3.126.1 - अधिष्ठानं चक्रपुरप्रभावाध्यासनेष्वपि
स्वजातिश्रेष्ठः. (1) - रत्न (नपुं)
3.3.126.2 - रत्नं स्वजातिश्रेष्ठेऽपि वने सलिलकानने
विरलम्. (1) - तलिन (वि)
स्तोकम्. (1) - तलिन (वि)
3.3.127.1 - तलिनं विरले स्तोके वाच्यलिङ्गं तथोत्तरे
एकः. (1) - समान (वि)
समः. (1) - समान (वि)
सत्. (1) - समान (वि)
खलः. (1) - पिशुन (वि)
सूचकः. (1) - पिशुन (वि)
3.3.127.2 - समानाः सत्समैकेस्युः पिशुनौ खलसूचकौ
ऊनः. (2) - हीन (वि), न्यून (वि)
गर्ह्यः. (2) - हीन (वि), न्यून (वि)
वेगिः. (1) - तरस्विन् (वि)
शूरः. (1) - तरस्विन् (वि)
3.3.128.1 - हीनन्यूनावूनगर्ह्यौ वेगिशूरौ तरस्विनौ
अभिग्रस्तः. (1) - अभिपन्न (वि)
अपराधः. (1) - अभिपन्न (वि)
व्यापद्गतः. (1) - अभिपन्न (वि)
3.3.128.2 - अभिपन्नोऽपराद्धोऽभिग्रस्तव्यापद्गतावपि
भूषणम्. (1) - कलाप (पुं)
मयूरपिच्छः. (1) - कलाप (पुं)
शराधारः. (1) - कलाप (पुं)
संहतः. (1) - कलाप (पुं)
3.3.129.1 - कलापो भूषणे बर्हे तूणीरे संहतावपि
परिच्छदः. (1) - परीवाप (पुं)
पर्युप्तिः. (1) - परीवाप (पुं)
सलिलस्थितिः. (1) - परीवाप (पुं)
3.3.129.2 - परिच्छदे परीवापः पर्युप्तौ सलिलस्थितौ
गोपालः. (1) - गोप (पुं)
विष्णुः. (1) - वृषाकपि (पुं)
शिवः. (1) - वृषाकपि (पुं)
3.3.130.1 - गोधुग्गोष्ठपती गोपौ हरविष्णू वृषाकपी
अश्रुः. (1) - बाष्प (पुं)
उष्मा. (1) - बाष्प (पुं)
सिद्धान्नम्. (1) - कशिपु (पुं-नपुं)
वस्त्रम्. (1) - कशिपु (पुं-नपुं)
3.3.130.2 - बाष्पमूष्माश्रु कशिपु त्वन्नमाच्छादनं द्वयम्
हर्म्याद्युपरिगृहम्. (1) - तल्प (पुं-नपुं)
पत्नी. (1) - तल्प (पुं-नपुं)
शय्या. (1) - तल्प (पुं-नपुं)
तरुमूलम्. (1) - विटप (पुं-नपुं)
3.3.131.1 - तल्पं शय्याट्टदारेषु स्तम्बेऽपि विटपोऽस्त्रियाम्
बुधः. (3) - प्राप्तरूप (वि), स्वरूप (वि), अभिरूप (वि)
मनोरमम्. (3) - प्राप्तरूप (वि), स्वरूप (वि), अभिरूप (वि)
3.3.131.2 - प्राप्तरूपस्वरूपाभिरूपा बुधमनोज्ञयोः
कच्छपी. (1) - कच्छपी (स्त्री)
वीणाभेदः. (1) - कच्छपी (स्त्री)
3.3.132.1 - भेद्यलिङ्गा अमी कूर्मी वीणाभेदश्च कच्छपी
3.3.132.2 - रवर्णे पुंसि रेफः स्यात्कुत्सिते वाच्यलिङ्गकः
मृगरोमोत्थपटः. (1) - कुतप (पुं)
3.3.132.3 - कुतपो मृगरोमोत्थपटे चाह्नोऽष्टमेंऽशके
अन्तराभवसत्वः. (1) - गन्धर्व (पुं)
3.3.133.1 - अन्तराभवसत्वेऽश्वे गन्धर्वो दिव्यगायने
करवलयः. (1) - कम्बु (पुं)
सर्पः. (1) - द्विजिह्व (पुं)
सूचकः. (1) - द्विजिह्व (पुं)
3.3.133.2 - कम्बुर्ना वलये शङ्खे द्विजिह्वौ सर्पसूचकौ
3.3.134.1 - पूर्वोऽन्यलिङ्गः प्रागाह पुम्बहुत्वेऽपि पूर्वजान्
घटः. (1) - कुम्भ (वि)
मूर्खः. (1) - डिम्भ (पुं)
3.3.134.2 - कुम्भौ घटेभमूर्धांशौ डिम्भौ तु शिशुबालिशौ
जडीभावः. (1) - स्तम्भ (पुं)
स्तम्भः. (1) - स्तम्भ (पुं)
ब्रह्मा. (1) - शम्भु (पुं)
3.3.135.1 - स्तम्भौ स्थूणाजडीभावौ शम्भू ब्रह्मत्रिलोचनौ
शिशुः. (1) - गर्भ (पुं)
जठरम्. (1) - गर्भ (पुं)
प्रणयम्. (1) - विस्रम्भ (पुं)
3.3.135.2 - कुक्षिभ्रूणार्भका गर्भा विस्रम्भः प्रणयेऽपि च
अक्षः. (1) - दुन्दुभि (स्त्री)
3.3.136.1 - स्याद्भेर्यां दुन्दुभिः पुंसि स्यादक्षे दुन्दुभिः स्त्रियाम्
कमण्डलुः. (1) - कुसुम्भ (पुं)
3.3.136.2 - स्यान्महारजते क्लीबं कुसुम्भं करके पुमान्
क्षत्रियः. (1) - नाभि (पुं)
गौः. (1) - सुरभि (स्त्री)
3.3.137.1 - क्षत्रियेऽपि च नाभिर्ना सुरभिर्गवि च स्त्रियाम्
सभ्यम्. (1) - सभा (स्त्री)
अधिकारी. (1) - वल्लभ (वि)
3.3.137.2 - सभा संसदि सभ्ये च त्रिष्वध्यक्षेऽपि वल्लभः
प्रग्रहः. (1) - रश्मि (पुं)
वानरः. (1) - प्लवङ्गम (पुं)
मण्डूकः. (1) - प्लवङ्गम (पुं)
3.3.138.1 - किरणप्रग्रहौ रश्मी कपिभेकौ प्लवङ्गमौ
इच्छा. (1) - काम (पुं)
उद्योगः. (1) - पराक्रम (पुं)
शक्तिः. (1) - पराक्रम (पुं)
3.3.138.2 - इच्छामनोभवौ कामौ शक्त्युद्योगौ पराक्रमौ
आचारः. (1) - धर्म (पुं)
नीतिः. (1) - धर्म (पुं)
पुण्यम्. (1) - धर्म (पुं)
सोमयाजिः. (1) - धर्म (पुं)
स्वभावः. (1) - धर्म (पुं)
यमः. (1) - धर्म (पुं)
3.3.139.1 - धर्माः पुण्ययमन्यायस्वभावाचारसोमपाः
उपधा. (1) - उपक्रम (पुं)
उपायपूर्वारम्भः. (1) - उपक्रम (पुं)
3.3.139.2 - उपायपूर्व आरम्भ उपधा चाप्युपक्रमः
मूलनगरादन्यनगरम्. (1) - निगम (पुं)
वणिक्पथः. (1) - निगम (पुं)
वेदः. (1) - निगम (पुं)
3.3.140.1 - वणिक्पथः पुरं वेदो निगमो नागरो वणिक्
नागरः. (1) - नैगम (पुं)
कृष्णवर्णः. (1) - राम (वि)
मनोरमम्. (1) - राम (वि)
शुक्लवर्णयुक्तः. (1) - राम (वि)
3.3.140.2 - नैगमौ द्वौ बले रामो नीलचारुसिते त्रिषु
ग्रामशब्दादिः. (1) - ग्राम (पुं)
समूहः. (1) - ग्राम (पुं)
क्रान्तिः. (1) - विक्रम (पुं)
3.3.141.1 - शब्दादिपूर्वो वृन्देऽपि ग्रामः क्रान्तौ च विक्रमः
स्तुतिः. (1) - स्तोम (पुं)
यज्ञः. (1) - स्तोम (पुं)
अलसः. (1) - जिह्म (पुं)
कुटिलः. (1) - जिह्म (पुं)
3.3.141.2 - स्तोमः स्तोत्रेऽध्वरे वृन्दे जिह्मास्तु कुटिलेऽलसे
धर्मः. (1) - उष्ण (पुं)
चेष्टा. (1) - उष्ण (पुं)
अलङ्कारः. (1) - उष्ण (पुं)
अतस्मित्तज्ज्ञानम्. (1) - विभ्रम (पुं)
3.3.142.1 - उष्णोऽपि घर्मचेष्टालङ्कारे भ्रान्तौ च विभ्रमः
गुल्मरोगः. (1) - गुल्म (पुं)
तरुमूलम्. (1) - गुल्म (पुं)
भगिनी. (1) - जामि (स्त्री)
दोषवारणकृतकुलरक्षास्त्री. (1) - जामि (स्त्री)
3.3.142.2 - गुल्मारुक्स्तम्बसेनाश्च जामिः स्वसृकुलस्त्रियोः
क्षमा. (1) - क्षमा (स्त्री)
हितम्. (1) - क्षम (वि)
सक्तम्. (1) - क्षम (वि)
युक्तम्. (1) - क्षम (वि)
3.3.143.1 - क्षितिक्षान्त्योः क्षमायुक्ते क्षमं शक्ते हिते त्रिषु
हरितवर्णः. (1) - श्याम (वि)
रात्रिः. (1) - श्यामा (स्त्री)
3.3.143.2 - त्रिषु श्यामौ हरित्कृष्णौ श्यामा स्याच्छारिवा निशा
पुच्छम्. (1) - ललाम (नपुं)
पुण्ड्रम्. (1) - ललाम (नपुं)
अश्वभूषा. (1) - ललाम (नपुं)
प्राधान्यम्. (1) - ललाम (नपुं)
पताका. (1) - ललाम (नपुं)
3.3.144.1 - ललामं पुच्छपुण्ड्राश्वभूषाप्राधान्यकेतुषु
अध्यात्मम्. (1) - सूक्ष्म (नपुं)
प्रधानम्. (1) - प्रथम (वि)
3.3.144.2 - सूक्ष्ममध्यात्ममप्याद्ये प्रधाने प्रथमस्त्रिषु
प्रतिकूलम्. (1) - वाम (वि)
सुन्दरम्. (1) - वाम (वि)
न्यूनम्. (1) - अधम (वि)
3.3.145.1 - वामौ वल्गुप्रतीपौ द्वावधमौ न्यूनकुत्सितौ
जीर्णम्. (1) - यातयाम (वि)
परिभुक्तम्. (1) - यातयाम (वि)
3.3.145.2 - जीर्णं च परिभुक्तं च यातयाममिदं द्वयम्
अश्वः. (1) - तार्क्ष्य (पुं)
गृहम्. (1) - क्षय (पुं)
3.3.146.1 - तुरङ्गगरुडौ तार्क्ष्यौ निलयापचयौ क्षयौ
पत्युः कनिष्ठभ्राता. (1) - श्वशुर्य (पुं)
पत्नीभ्राता. (1) - श्वशुर्य (पुं)
भ्रातृपुत्रः. (1) - भ्रातृव्य (पुं)
शत्रुः. (1) - भ्रातृव्य (पुं)
3.3.146.2 - श्वशुर्यौ देवरश्यालौ भ्रातृव्यौ भ्रातृजद्विषौ
रसदब्दः. (1) - पर्जन्य (पुं)
इन्द्रः. (1) - पर्जन्य (पुं)
स्वामिः. (1) - अर्य (पुं)
3.3.147.1 - पर्जन्यौ रसदब्देन्द्रौ स्यादर्यः स्वामिवैश्ययोः
पुष्य-नक्षत्रम्. (1) - तिष्य (पुं)
कलियुगम्. (1) - तिष्य (पुं)
अवसरः. (1) - पर्याय (पुं)
3.3.147.2 - तिष्यः पुष्ये कलियुगे पर्यायोऽवसरे क्रमे
अधीनः. (1) - प्रत्यय (पुं)
ज्ञानम्. (1) - प्रत्यय (पुं)
कारणम्. (1) - प्रत्यय (पुं)
रन्ध्रम्. (1) - प्रत्यय (पुं)
शब्दः. (1) - प्रत्यय (पुं)
शपथः. (1) - प्रत्यय (पुं)
विश्वासः. (1) - प्रत्यय (पुं)
3.3.148.1 - प्रत्ययोऽधीनशपथज्ञानविश्वासहेतुषु
दीर्घद्वेषः. (1) - अनुशय (पुं)
पश्चात्तापः. (1) - अनुशय (पुं)
3.3.148.2 - रन्ध्रे शब्देऽथानुशयो दीर्घद्वेषानुतापयोः
असाकल्यम्. (1) - स्थूलोच्चय (पुं)
गजानां मध्ये गतः. (1) - स्थूलोच्चय (पुं)
3.3.149.1 - स्थूलोच्चयस्त्वसाकल्ये नागानां मध्यमे गते
आचारः. (1) - समय (पुं)
कालः. (1) - समय (पुं)
सम्भाषणम्. (1) - समय (पुं)
शपथः. (1) - समय (पुं)
सिद्धान्तः. (1) - समय (पुं)
3.3.149.2 - समयाः शपथाचारकालसिद्धान्तसंविदः
अशुभम्. (1) - अनय (पुं)
प्राक्तनशुभाशुभकर्मः. (1) - अनय (पुं)
विपत्. (1) - अनय (पुं)
व्यसनम्. (1) - अनय (पुं)
3.3.150.1 - व्यसनान्यशुभं दैवं विपदित्यनयास्त्रयः
अतिक्रमः. (1) - अत्यय (पुं)
दण्डः. (1) - अत्यय (पुं)
दोषः. (1) - अत्यय (पुं)
दुःखम्. (1) - अत्यय (पुं)
3.3.150.2 - अत्ययोऽतिक्रमे कृच्छ्रेदोषे दण्डेऽप्यथापदि
आयतिः. (1) - सम्पराय (पुं)
विपत्. (1) - सम्पराय (पुं)
युद्धम्. (1) - सम्पराय (पुं)
पत्युर्वा पत्न्याः वा पिता. (1) - पूज्य (पुं)
3.3.151.1 - युद्धायत्योः संपरायः पूज्यस्तु श्वशुरेऽपि च
पश्चादवस्थायिबलम्. (1) - सन्नय (पुं)
समूहः. (1) - सन्नय (पुं)
3.3.151.2 - पस्चादवस्थायि बलं समवायश्च सन्नयौ
सन्निवेशः. (1) - संस्त्याय (पुं)
समूहः. (1) - संस्त्याय (पुं)
स्नेहः. (1) - प्रणय (पुं)
विश्रम्भः. (1) - प्रणय (पुं)
याचनम्. (1) - प्रणय (पुं)
3.3.152.1 - सङ्घाते सन्निवेशे च संस्त्यायः प्रणयास्त्वमी
विरोधः. (1) - समुच्छ्रय (पुं)
3.3.152.2 - विस्रम्भयाञ्चाप्रेमाणो विरोधेऽपि समुच्छ्रयः
शब्दादीन्द्रियम्. (1) - विषय (पुं)
यस्य यत् ज्ञातः तत्. (1) - विषय (पुं)
3.3.153.1 - विषयो यस्य यो ज्ञातस्तत्र शब्दादिकेष्वपि
निर्यासः. (1) - कषाय (पुं-नपुं)
सभा. (1) - प्रतिश्रय (पुं)
3.3.153.2 - निर्यासेऽपि कषायोऽस्त्री सभायां च प्रतिश्रयः
भूम्नि. (1) - प्राय (पुं)
अन्तगमनम्. (1) - प्राय (पुं)
कोपः. (1) - मन्यु (पुं)
दैन्यम्. (1) - मन्यु (पुं)
यज्ञः. (1) - मन्यु (पुं)
3.3.154.1 - प्रायो भूम्न्यन्तगमने मन्युर्दैन्ये क्रतौ युधि
रहस्यम्. (1) - गुह्य (नपुं)
भगशिश्नः. (1) - गुह्य (नपुं)
शपथः. (1) - सत्य (वि)
तथ्यम्. (1) - सत्य (वि)
3.3.154.2 - रहस्योपस्थयोर्गुह्यं सत्यं शपथतथ्ययोः
बलम्. (1) - वीर्य (नपुं)
प्रभावः. (1) - वीर्य (नपुं)
शुभम्. (1) - द्रव्य (नपुं)
गुणाश्रयम्. (1) - द्रव्य (नपुं)
3.3.155.1 - वीर्यं बले प्रभावे च द्रव्यं भव्ये गुणाश्रये
अग्निः. (1) - धिष्ण्य (वि)
गृहम्. (1) - धिष्ण्य (वि)
नक्षत्रम्. (1) - धिष्ण्य (वि)
स्थानम्. (1) - धिष्ण्य (वि)
पुण्यपापकर्मम्. (1) - भाग्य (नपुं)
3.3.155.2 - धिष्ण्यं स्थाने गृहे भेऽग्नौ भाग्यं कर्मशुभाशुभम्
कशेरुः. (1) - गाङ्गेय (नपुं)
दन्तिका. (1) - विशल्या (स्त्री)
3.3.156.1 - कशेरुहेम्नोर्गाङ्गेयं विशल्या दन्तिकापि च
लक्ष्मी. (1) - वृषाकपायी (स्त्री)
पार्वती. (1) - वृषाकपायी (स्त्री)
नाम. (1) - अभिख्या (स्त्री)
शोभा. (1) - अभिख्या (स्त्री)
3.3.156.2 - वृषाकपायी श्रीगौर्योरभिख्या नामशोभयोः
3.3.157.1 - आरम्भो निष्कृतिः शिक्षा पूजनं संप्रधारणम्
आरम्भः. (1) - क्रिया (स्त्री)
चेष्टा. (1) - क्रिया (स्त्री)
निष्कृतिः. (1) - क्रिया (स्त्री)
शिक्षा. (1) - क्रिया (स्त्री)
पूजनम्. (1) - क्रिया (स्त्री)
सम्प्रधारणम्. (1) - क्रिया (स्त्री)
उपायः. (1) - क्रिया (स्त्री)
कर्मम्. (1) - क्रिया (स्त्री)
रोगनिवारणः. (1) - क्रिया (स्त्री)
3.3.157.2 - उपायः कर्म चेष्टा च चिकित्सा च नवक्रियाः
अनातपः. (1) - छाया (स्त्री)
प्रतिमा. (1) - छाया (स्त्री)
शोभा. (1) - छाया (स्त्री)
सूर्यपत्नी. (1) - छाया (स्त्री)
3.3.158.1 - छाया सूर्यप्रिया कान्तिः प्रतिबिम्बमनातपः
हर्म्यादेः प्रकोष्ठम्. (1) - कक्ष्या (स्त्री)
स्त्रीकटीभूषणम्. (1) - कक्ष्या (स्त्री)
3.3.158.2 - कक्ष्या प्रकोष्ठे हर्म्यादेः काञ्च्यां मध्येभबन्धने
क्रिया. (1) - कृत्या (स्त्री)
देवता. (1) - कृत्या (स्त्री)
धनादिभिः भेद्यम्. (1) - कृत्या (वि)
3.3.159.1 - कृत्या क्रियादेवतयोस्त्रिषु भेद्ये धनादिभिः
जनवादः. (1) - जन्य (वि)
अधमम्. (1) - जघन्य (वि)
3.3.159.2 - जन्यं स्याज्जनवादेऽपि जघन्योऽन्त्येऽधमेऽपि च
गर्ह्यः. (1) - वक्तव्य (वि)
अधीनः. (1) - वक्तव्य (वि)
सज्जः. (1) - कल्य (नपुं)
3.3.160.1 - गृह्याधीनौ च वक्तव्यौ कल्यौ सज्जनिरामयौ
अर्थादनपेतः. (1) - अर्थ्य (वि)
आत्मवान्. (1) - अर्थ्य (वि)
मनोरमम्. (1) - पुण्य (वि)
3.3.160.2 - आत्मवाननपेतोऽर्थादर्थ्यौ पुण्यं तु चार्वपि
प्रशस्तम्. (1) - रूप्य (नपुं)
रूप्यकम्. (1) - रूप्य (नपुं)
वल्गुवाक्. (1) - वदान्य (वि)
3.3.161.1 - रूप्यं प्रशस्तरूपेऽपि वदान्यो वल्गुवागपि
न्याय्यम्. (1) - मध्य (वि)
सोमदैवतम्. (1) - सौम्य (वि)
सुन्दरम्. (1) - सौम्य (वि)
3.3.161.2 - न्याय्येऽपि मध्यं सौम्यं तु सुन्दरे सोमदैवते
अवसरः. (1) - वार (पुं)
प्रस्तरम्. (1) - संस्तर (पुं)
यज्ञः. (1) - संस्तर (पुं)
3.3.162.1 - निवहावसरौ वारौ संस्तरौ प्रस्तराध्वरौ
द्वापरयुगम्. (1) - द्वापर (पुं)
संशयः. (1) - द्वापर (पुं)
3.3.162.2 - गुरू गीर्पतिपित्राद्यौ द्वापरौ युगसंशयौ
भेदः. (1) - प्रकार (पुं)
सादृश्यम्. (1) - प्रकार (पुं)
आकृतिः. (1) - आकार (पुं)
3.3.163.1 - प्रकारौ भेदसादृश्ये आकाराविङ्गिताकृती
बाणः. (1) - किंशारु (पुं)
पर्वतः. (1) - मरु (पुं)
3.3.163.2 - किंशारू सस्यशूकेषु मरू धन्वधराधरौ
वृक्षः. (1) - अद्रि (पुं)
सूर्यः. (1) - अद्रि (पुं)
स्त्रीस्तनम्. (1) - पयोधर (पुं)
मेघः. (1) - पयोधर (पुं)
3.3.164.1 - अद्रयो द्रुमशैलार्काः स्त्रीस्तनाब्दौ पयोधरौ
अन्धकारः. (1) - वृत्र (पुं)
शत्रुः. (1) - वृत्र (पुं)
वृत्रासुरः. (1) - वृत्र (पुं)
हस्तः. (1) - कर (पुं)
3.3.164.2 - ध्वान्तारिदानवा वृत्रा बलिहस्तांशवः कराः
भङ्गः. (1) - प्रदर (पुं)
बाणः. (1) - प्रदर (पुं)
नारीरोगः. (1) - प्रदर (पुं)
केशः. (1) - अस्र (पुं)
3.3.165.1 - प्रदरा भङ्गनारीरुक्बाणा अस्राः कचा अपि
अजातशृङ्गगौः. (1) - तूवर (पुं)
कालेप्यश्मश्रुः पुरुषः. (1) - तूवर (पुं)
3.3.165.2 - अजातशृङ्गो गौः कालेऽप्यश्मश्रुर्ना च तूवरौ
सुवर्णम्. (1) - रै (पुं)
पर्यङ्कः. (1) - परिकर (पुं)
परिवारः. (1) - परिकर (पुं)
3.3.166.1 - स्वर्णेऽपि राः परिकरः पर्यङ्कपरिवारयोः
मुक्ताशुद्धिः. (1) - तार (पुं)
वायुः. (1) - शार (पुं)
नानावर्णाः. (1) - शार (वि)
3.3.166.2 - मुक्ताशुद्धौ च तारः स्याच्छारो वायौ स तु त्रिषु
क्रियाकारः. (1) - सङ्गर (पुं)
प्रतिज्ञा. (1) - सङ्गर (पुं)
विपत्. (1) - सङ्गर (पुं)
युद्धम्. (1) - सङ्गर (पुं)
3.3.167.1 - कर्बुरेऽथ प्रतिज्ञाजिसंविदापत्सु सङ्गरः
वेदभेदः. (1) - मन्त्र (पुं)
गुप्तिवादः. (1) - मन्त्र (पुं)
3.3.167.2 - वेदभेदे गुप्तवादे मन्त्रो मित्रो रवावपि
बाणः. (1) - स्वरु (पुं)
यज्ञः. (1) - स्वरु (पुं)
यूपखण्डः. (1) - स्वरु (पुं)
गुह्यम्. (1) - अवस्कर (पुं)
3.3.168.1 - मखेषु यूपखण्डेऽपि स्वरुर्गुह्येऽप्यवस्करः
हस्तिगर्जनम्. (1) - आडम्बर (पुं)
3.3.168.2 - आडम्बरस्तूर्यरवे गजेन्द्राणां च गर्जिते
चोरकर्मः. (1) - अभिहार (पुं)
कलहाह्वानम्. (1) - अभिहार (पुं)
सन्नहनम्. (1) - अभिहार (पुं)
3.3.169.1 - अभिहारोऽभियोगे च चौर्ये सन्नहनेऽपि च
खड्गपिधानम्. (1) - परीवार (पुं)
परिच्छदः. (1) - परीवार (पुं)
परिजनः. (1) - परीवार (पुं)
3.3.169.2 - स्याज्जङ्गमे परीवारः खड्गकोषे परिच्छदे
पीठाद्यासनम्. (1) - विष्टर (पुं)
वृक्षः. (1) - विष्टर (पुं)
दर्भमुष्टिः. (1) - विष्टर (पुं)
3.3.170.1 - विष्टरो विटपी दर्भमुष्टिः पीठाद्यमासनम्
द्वारस्था योषित्. (1) - प्रतीहारी (स्त्री)
3.3.170.2 - द्वारि द्वाः स्थे प्रतीहारः प्रतीहार्यप्यनन्तरे
विपुलनकुलः. (1) - बभ्रु (पुं)
विष्णुः. (1) - बभ्रु (पुं)
कपिलवर्णः. (1) - बभ्रु (वि)
3.3.171.1 - विपुले नकुले विष्णौ बभ्रुर्ना पिङ्गले त्रिषु
बलम्. (1) - सार (पुं)
स्थिरांशः. (1) - सार (पुं)
न्याय्यम्. (1) - सार (नपुं)
वरः. (1) - सार (वि)
3.3.171.2 - सारो बले स्थिरांशे च न्याय्ये क्लीबं वरे त्रिषु
द्यूतकृत्. (1) - दुरोदर (पुं)
द्यूते लाप्यमानः. (1) - दुरोदर (पुं)
द्यूतक्रीडनम्. (1) - दुरोदर (नपुं)
3.3.172.1 - दुरोदरो द्यूतकारे पणे द्यूते दुरोदरम्
महावनम्. (1) - कान्तार (पुं-नपुं)
3.3.172.2 - महारण्ये दुर्गपथे कान्तारं पुन्नपुंसकम्
अन्यशुभद्वेषः. (1) - मत्सर (पुं)
अन्यशुभद्वेषबुद्धिः. (1) - मत्सर (वि)
कृपणः. (1) - मत्सर (वि)
3.3.173.1 - मत्सरोऽन्यशुभद्वेषे तद्वत्कृपणयोस्त्रिषु
देवाद्वृतः. (1) - वर (पुं)
मनाक्प्रियः. (1) - वर (नपुं)
श्रेष्ठः. (1) - वर (वि)
3.3.173.2 - देवाद्वृते वरः श्रेष्ठे त्रिषु क्लीबं मनाक्प्रिये
घटः. (1) - करीर (पुं)
वंशाङ्कुरः. (1) - करीर (पुं-नपुं)
3.3.174.1 - वंशाङ्कुरे करीरोऽस्त्री तरुभेदे घटे च ना
चमूजघनः. (1) - प्रतिसर (पुं)
हस्तसूत्रम्. (1) - प्रतिसर (पुं-नपुं)
3.3.174.2 - ना चमूजघने हस्तसूत्रे प्रतिसरोऽस्त्रियाम्
3.3.175.1 - यमानिलेन्द्रचन्द्रार्कविष्णुसिंहांशुवाजिषु
विष्णुः. (1) - हरि (पुं)
सूर्यः. (1) - हरि (पुं)
चन्द्रः. (1) - हरि (पुं)
वायुः. (1) - हरि (पुं)
यमः. (1) - हरि (पुं)
इन्द्रः. (1) - हरि (पुं)
किरणः. (1) - हरि (पुं)
अश्वः. (1) - हरि (पुं)
शुकः. (1) - हरि (पुं)
वानरः. (1) - हरि (पुं)
मण्डूकः. (1) - हरि (पुं)
कपिलवर्णः. (1) - हरि (वि)
3.3.175.2 - शुकाहिकपिभेकेषु हरिर्ना कपिले त्रिषु
कर्परांशः. (1) - शर्करा (स्त्री)
गतिः. (1) - यात्रा (स्त्री)
यापनम्. (1) - यात्रा (स्त्री)
3.3.176.1 - शर्करा कर्परांशेऽपि यात्रा स्याद्यापने गतौ
भूमिः. (1) - इरा (स्त्री)
वचनम्. (1) - इरा (स्त्री)
जलम्. (1) - इरा (स्त्री)
निद्रा. (1) - तन्द्रा (स्त्री)
अत्यन्तश्रमादिना सर्वेन्द्रियासामर्थ्यः. (1) - तन्द्रा (स्त्री)
3.3.176.2 - इरा भूवाक्सुराप्सुस्यात्तन्द्रा निद्राप्रमीलयोः
उपमाता. (1) - धात्री (स्त्री)
आमलकी. (1) - धात्री (स्त्री)
3.3.177.1 - धात्री स्यादुपमातापि क्षितिरप्यामलक्यपि
मधुमक्षिका. (1) - क्षुद्रा (स्त्री)
नटी. (1) - क्षुद्रा (स्त्री)
वेश्या. (1) - क्षुद्रा (स्त्री)
व्यङ्गा. (1) - क्षुद्रा (स्त्री)
3.3.177.2 - क्षुद्रा व्यङ्गा नटी वेश्या सरघा कण्टकारिका
अल्पम्. (2) - क्षुद्र (वि), मात्रा (स्त्री)
अधमम्. (1) - क्षुद्र (वि)
परद्रोहकारी. (1) - क्षुद्र (वि)
परिमाणः. (1) - मात्रा (स्त्री)
परिवारः. (1) - मात्रा (स्त्री)
3.3.178.1 - त्रिषु क्रूरेऽधमेऽल्पेऽपि क्षुद्रं मात्रा परिच्छदे
कार्त्स्न्यम्. (1) - मात्र (नपुं)
अवधारणम्. (1) - मात्र (नपुं)
3.3.178.2 - अल्पे च परिमाणे सा मात्रं कार्त्स्न्येऽवधारणे
आलेख्यम्. (1) - चित्र (नपुं)
कटिः. (1) - कलत्र (नपुं)
पत्नी. (1) - कलत्र (नपुं)
3.3.179.1 - आलेख्याश्चर्ययोश्चित्रं कलत्रं श्रोणिभार्ययोः
योग्यः. (1) - पात्र (नपुं)
3.3.179.2 - योग्यभाजनयोः पात्रं पत्रं वाहनपक्षयोः
आज्ञा. (1) - शास्त्र (नपुं)
ग्रन्थम्. (1) - शास्त्र (नपुं)
लोहः. (1) - शस्त्र (नपुं)
3.3.180.1 - निदेशग्रन्थयोः शास्त्रं शस्त्रमायुधलोहयोः
वस्त्रम्. (1) - नेत्र (नपुं)
तरुमूलम्. (1) - नेत्र (नपुं)
पत्नी. (1) - क्षेत्र (नपुं)
देहः. (1) - क्षेत्र (नपुं)
3.3.180.2 - स्याज्जटांशुकयोर्नेत्रं क्षेत्रं पत्नीशरीरयोः
वराहमुखाग्रस्थसृङ्गः. (1) - पोत्र (नपुं)
हलम्. (1) - पोत्र (नपुं)
नाम. (1) - गोत्र (पुं)
3.3.181.1 - मुखाग्रे क्रोडहलयोः पोत्रं गोत्रं तु नाम्नि च
आच्छादनम्. (1) - सत्र (नपुं)
यज्ञः. (1) - सत्र (नपुं)
सदादानम्. (1) - सत्र (नपुं)
वनम्. (1) - सत्र (नपुं)
3.3.181.2 - सत्रमाच्छादने यज्ञे सदादाने वनेऽपि च
विषयः. (1) - अजिर (नपुं)
देहः. (1) - अजिर (नपुं)
वस्त्रम्. (1) - अम्बर (नपुं)
3.3.182.1 - अजिरं विषये कायेऽप्यम्बरं व्योम्नि वाससि
स्वभूमिः. (1) - चक्र (नपुं)
मोक्षः. (1) - अक्षर (नपुं)
3.3.182.2 - चक्रं राष्ट्रेऽप्यक्षरं तु मोक्षेऽपि क्षीरमप्सु च
सुवर्णम्. (2) - भूरि (पुं), चन्द्र (पुं)
3.3.183.1 - स्वर्णेऽपि भूरिचन्द्रौ द्वौ द्वारमात्रेऽपि गोपुरम्
कपटः. (1) - गह्वर (नपुं)
समीपः. (1) - उपह्वर (नपुं)
विजनः. (1) - उपह्वर (नपुं)
3.3.183.2 - गुहादम्भौ गह्वरे द्वे रहोऽन्तिकमुपह्वरे
पुरोभागः. (1) - अग्र (नपुं)
अधिकम्. (1) - अग्र (नपुं)
उपरि. (1) - अग्र (नपुं)
गृहम्. (1) - पुर (नपुं)
नगरम्. (1) - पुर (नपुं)
3.3.184.1 - पुरोऽधिकमुपर्यग्राण्यगारे नगरे पुरम्
नगरम्. (1) - मन्दिर (नपुं)
विषयः. (1) - राष्ट्र (पुं-नपुं)
उपद्रवम्. (1) - राष्ट्र (पुं-नपुं)
3.3.184.2 - मन्दिरं चाथ राष्ट्रोऽस्त्री विषये स्यादुपद्रवे
बिलम्. (1) - दर (पुं-नपुं)
हीरकः. (1) - वज्र (पुं-नपुं)
3.3.185.1 - दरोऽस्त्रियां भये श्वभ्रे वज्रोऽस्त्री हीरके पवौ
परिच्छदः. (1) - तन्त्र (नपुं)
प्रधानम्. (1) - तन्त्र (नपुं)
सिद्धान्तः. (1) - तन्त्र (नपुं)
सूत्रवायः. (1) - तन्त्र (नपुं)
3.3.185.2 - तन्त्रं प्रधाने सिद्धान्ते सूत्रवाये परिच्छदे
चामरम्. (1) - औशीर (पुं)
दण्डः. (1) - औशीर (पुं)
आसनम्. (1) - औशीर (नपुं)
शय्या. (1) - औशीर (नपुं)
3.3.186.1 - औशीरश्चामरे दण्डेऽप्यौशीरं शयनासने
खड्गफलम्. (1) - पुष्कर (नपुं)
शुण्डाग्रभागः. (1) - पुष्कर (नपुं)
वाद्यभाण्डमुखम्. (1) - पुष्कर (नपुं)
तीर्थविशेषः. (1) - पुष्कर (नपुं)
3.3.186.2 - पुष्करं करिहस्ताग्रे वाद्यभाण्डमुखे जले
3.3.187.1 - व्योम्नि खड्गफले पद्मे तीर्थौषधिविशेषयोः
अवकाशः. (1) - अन्तर (नपुं)
अवधिः. (1) - अन्तर (नपुं)
अवसरः. (1) - अन्तर (नपुं)
अन्तर्धानम्. (1) - अन्तर (नपुं)
अन्तरात्मा. (1) - अन्तर (नपुं)
आत्मीयम्. (1) - अन्तर (नपुं)
बहिः. (1) - अन्तर (नपुं)
बिलम्. (1) - अन्तर (नपुं)
भेदः. (1) - अन्तर (नपुं)
परिधानम्. (1) - अन्तर (नपुं)
तादर्थ्यम्. (1) - अन्तर (नपुं)
विना. (1) - अन्तर (नपुं)
मध्यम्. (1) - अन्तर (नपुं)
3.3.187.2 - अन्तरमवकाशावधिपरिधानान्तर्धिभेदतादर्थ्ये
3.3.188.1 - छिद्रात्मीयविनाबहिरवसरमध्येऽन्तरात्मनि च
मुस्ता. (1) - पिठर (नपुं)
राजकशेरुः. (1) - नागर (नपुं)
3.3.188.2 - मुस्तेऽपि पिठरं राजकशेरुण्यपि नागरम्
घनान्धकारः. (1) - शार्वर (वि)
परद्रोहकारी. (1) - शार्वर (वि)
3.3.189.1 - शार्वरं त्वन्धतमसे घातुके भेद्यलिङ्गकम्
ईषद्रक्तवर्णः. (1) - गौर (वि)
व्रणकारिः. (1) - अरुष्कर (वि)
3.3.189.2 - गौरोऽरुणे सिते पीते व्रणकार्यप्यरुष्करः
कठिनम्. (1) - जठर (पुं-नपुं)
अधस्तात्. (1) - अधर (वि)
3.3.190.1 - जठरः कठिनेऽपि स्यादधस्तादपि चाधरः
अनाकुलः. (1) - एकाग्र (वि)
व्यासक्तः. (1) - व्यग्र (वि)
आकुलः. (1) - व्यग्र (वि)
3.3.190.2 - अनाकुलेऽपि चैकाग्रो व्यग्रो व्यासक्त आकुले
श्रेष्ठः. (2) - उत्तर (वि), अनुत्तर (वि)
उपरि. (1) - उत्तर (वि)
उत्तरदिक्. (1) - उत्तर (वि)
अश्रेष्ठः. (1) - अनुत्तर (वि)
अधः. (1) - अनुत्तर (वि)
पूर्वदिक्. (1) - अनुत्तर (वि)
3.3.191.1 - उपर्युदीच्यश्रेष्ठेष्वप्युत्तरः स्यादनुत्तरः
अन्यः. (1) - पर (पुं)
उत्तमः. (1) - पर (पुं)
दूरम्. (1) - पर (पुं)
3.3.191.2 - एषां विपर्यये श्रेष्ठे दूरानात्मोत्तमाः पराः
मधुरम्. (1) - मधुर (वि)
प्रियम्. (1) - मधुर (वि)
3.3.192.1 - स्वादुप्रियौ च मधुरौ क्रूरौ कठिननिर्दयौ
महत्. (1) - उदार (वि)
धाता. (1) - उदार (वि)
अन्यः. (1) - इतर (पुं)
नीचः. (1) - इतर (पुं)
3.3.192.2 - उदारो दातृमहतोरितरस्त्वन्यनीचयोः
अलसः. (1) - स्वैर (वि)
स्वच्छन्दः. (1) - स्वैर (वि)
उद्दीप्तम्. (1) - शुभ्र (वि)
3.3.193.1 - मन्दस्वच्छन्दयोः स्वैरः शुभ्रमुद्दीप्तशुक्लयोः
किरीटम्. (1) - मौलि (वि)
संयतकेशः. (1) - मौलि (वि)
शिरोमध्यस्थचूडा. (1) - मौलि (वि)
3.3.193.2 - चूडा किरीटं केशाश्च संयता मौलयस्त्रयः
हस्तिः. (1) - पीलु (पुं)
बाणः. (1) - पीलु (पुं)
पुष्पम्. (1) - पीलु (पुं)
3.3.194.1 - द्रुमप्रभेदमातङ्गकाण्डपुष्पाणि पीलवः
कलियुगम्. (1) - कलि (पुं)
3.3.194.2 - कृतान्तानेहसोः कालश्चतुर्थेऽपि युगे कलिः
हरिणः. (1) - कमल (पुं)
प्रावारः. (1) - कम्बल (पुं)
3.3.195.1 - स्यात्कुरङ्गेऽपि कमलः प्रावारेऽपि च कम्बलः
उपहारः. (1) - बलि (पुं)
प्राण्यङ्गजम्. (1) - बलि (स्त्री)
3.3.195.2 - करोपहारयोः पुंसि बलिः प्राण्यङ्गजे स्त्रियाम्
काकः. (1) - बल (पुं)
स्थौल्यम्. (1) - बल (नपुं)
3.3.196.1 - स्थौल्यसामर्थ्यसैन्येषु बलं ना काकसीरिणोः
वातिः. (1) - वातूल (पुं)
वातासहः. (1) - वातूल (वि)
3.3.196.2 - वातूलः पुंसि वात्यायामपि वातासहे त्रिषु
वक्राशयः. (1) - व्याल (वि)
सर्पः. (1) - व्याल (पुं)
3.3.197.1 - भेद्यलिङ्गः शठे व्यालः पुंसि श्वापदसर्पयोः
पापम्. (1) - मल (पुं-नपुं)
पुराणकिट्टम्. (1) - मल (पुं-नपुं)
रोगः. (1) - शूल (पुं-नपुं)
शूलम्. (1) - शूल (पुं-नपुं)
3.3.197.2 - मलोऽस्त्री पापविट्किट्टान्यस्त्री शूलं रुगायुधम्
शङ्कुः. (1) - कील (स्त्री-पुं)
अस्रिः. (1) - पालि (स्त्री)
अङ्कः. (1) - पालि (स्त्री)
पङ्क्तिः. (1) - पालि (स्त्री)
3.3.198.1 - शङ्कावपि द्वयोः कीलः पालिस्त्र्यश्र्यङ्कपङ्क्तिषु
कलाकौशल्यादिकर्मः. (1) - कला (स्त्री)
सखी. (1) - आली (स्त्री)
पङ्क्तिः. (1) - आली (स्त्री)
3.3.198.2 - कला शिल्पे कालभेदेप्याली सख्यावली अपि
अब्ध्यम्बुविकृतिः. (1) - वेला (स्त्री)
मर्यादा. (1) - वेला (स्त्री)
समयः. (1) - वेला (स्त्री)
3.3.199.1 - अब्ध्यम्बुविकृतौ वेला कालमर्यादयोरपि
कृत्तिका. (1) - बहुला (स्त्री)
गौः. (1) - बहुला (स्त्री)
अग्निः. (1) - बहुल (वि)
कृष्णवर्णः. (1) - बहुल (वि)
3.3.199.2 - बहुलाः कृत्तिका गावो बहुलोऽग्नौ शितौ त्रिषु
विलासम्. (1) - लीला (स्त्री)
क्रिया. (1) - लीला (स्त्री)
शर्करा. (1) - उपला (स्त्री)
3.3.200.1 - लीला विलासक्रिययोरुपला शर्करापि च
रक्तम्. (1) - कीलाल (नपुं)
आकाशः. (1) - कीलाल (नपुं)
आद्यः. (1) - मूल (नपुं)
मूलानक्षत्रम्. (1) - मूल (नपुं)
शिफा. (1) - मूल (नपुं)
3.3.200.2 - शोणितेऽम्भसि कीलालं मूलमाद्ये शिफाभयोः
समूहः. (1) - जाल (नपुं)
जालकम्. (1) - जाल (नपुं)
नूतनकलिका. (1) - जाल (नपुं)
3.3.201.1 - जालं समूह आनायगवाक्षक्षारकेष्वपि
स्वभावः. (1) - शील (नपुं)
सद्वृत्तम्. (1) - शील (नपुं)
सस्यहेतुकृतम्. (1) - फल (नपुं)
3.3.201.2 - शीलं स्वभावे सद्वृत्ते सस्ये हेतुकृते फलम्
नेत्ररुक्. (1) - पटल (नपुं)
समूहः. (1) - पटल (स्त्री-नपुं)
3.3.202.1 - छदिर्नेत्ररुजोः क्लीबं समूहे पटलं न ना
अधः. (1) - तल (नपुं)
स्वरूपः. (1) - तल (नपुं)
मांसम्. (1) - पल (नपुं)
3.3.202.2 - अधस्स्वरूपयोरस्त्री तलं स्याच्चामिषे पलम्
बडवाग्निः. (1) - पाताल (नपुं)
अधमम्. (1) - चेल (वि)
3.3.203.1 - और्वानलेऽपि पातालं चेलं वस्त्रेऽधमे त्रिषु
शङ्कुभिः कीर्णश्वभ्रम्. (1) - कुकूल (नपुं)
तुषानलः. (1) - कुकूल (पुं)
3.3.203.2 - कुकूलं शङ्कुभिः कीर्णे श्वभ्रे ना तु तुषानले
निश्चितम्. (1) - केवल (नपुं)
एकः. (1) - केवल (वि)
समग्रम्. (1) - केवल (वि)
3.3.204.1 - निर्णीते केवलमिति त्रिलिङ्गं त्वेककृत्स्नयोः
क्षेमम्. (1) - कुशल (नपुं)
पर्याप्तिः. (1) - कुशल (नपुं)
पुण्यम्. (1) - कुशल (नपुं)
शिक्षितः. (1) - कुशल (वि)
3.3.204.2 - पर्याप्तिक्षेमपुण्येषु कुशलं शिक्षिते त्रिषु
नूतनाङ्कुरः. (1) - प्रवाल (पुं-नपुं)
जडम्. (1) - स्थूल (वि)
3.3.205.1 - प्रवालमङ्कुरेऽप्यस्त्री त्रिषु स्थूलं जडेऽपि च
दन्तुरः. (1) - कराल (वि)
उन्नतः. (1) - कराल (वि)
चारपुरुषः. (1) - पेशल (वि)
3.3.205.2 - करालो दन्तुरे तुङ्गे चारौ दक्षे च पेशलः
मूर्खः. (1) - बाल (पुं)
शिशुः. (1) - बाल (पुं)
सतृष्णः. (1) - लोल (वि)
3.3.206.1 - मूर्खेऽर्भकेऽपि बालः स्याल्लोलश्चलसतृष्णयोः
बलभद्रः. (1) - कुल (नपुं)
गृहम्. (1) - कुल (नपुं)
कुबेरः. (1) - एककुण्डल (वि)
3.3.206.2 - कुलं गृहेऽपि तालाङ्के कुबेरे चैककुण्डलः
अवमानितम्. (1) - हेला (स्त्री)
सूर्यः. (1) - हेलि (पुं)
युद्धम्. (1) - हिलि (पुं)
3.3.206.3 - स्त्रीभावावज्ञयोर्हेला हेलिः सूर्ये रणे हिलिः
राजा. (1) - हाल (पुं)
सुरा. (1) - हाल (पुं)
शकलः. (1) - दल (नपुं)
3.3.206.4 - हालः स्यान्नृपतौ मद्ये शकलच्छदयोर्दलम्
चित्रोपकरणशलाका. (1) - तूलि (स्त्री)
शय्या. (1) - तूलि (स्त्री)
तूलम्. (1) - तूलि (स्त्री)
3.3.206.5 - तूलिश्चित्रोपकरणशलाकातूलशय्ययोः
शब्दः. (1) - तुमुल (नपुं)
व्याकुलम्. (1) - तुमुल (नपुं)
कर्णपाली. (1) - शष्कुली (स्त्री)
3.3.206.6 - तुमुलं व्याकुले शब्दे शष्कुली कर्णपाल्यपि
वनम्. (2) - दव (पुं), दाव (पुं)
जननम्. (1) - भव (पुं)
3.3.206.7 - दवदावौ वनारण्यवह्नी जन्महरौ भवौ
मन्त्री. (1) - सचिव (पुं)
सहायकः. (1) - सचिव (पुं)
वृक्षः. (1) - धव (पुं)
पुरुषः. (1) - धव (पुं)
3.3.207.1 - मन्त्री सहायः सचिवौ पतिशाखिनरा धवाः
पर्वतः. (1) - अवि (स्त्री)
मेषः. (1) - अवि (स्त्री)
सूर्यः. (1) - अवि (स्त्री)
आज्ञा. (1) - हव (पुं)
यज्ञः. (1) - हव (पुं)
3.3.207.2 - अवयः शैलमेषार्का आज्ञाह्वानाध्वरा हवाः
सत्ता. (1) - भाव (पुं)
स्वभावः. (1) - भाव (पुं)
अभिप्रायः. (1) - भाव (पुं)
चेष्टा. (1) - भाव (पुं)
आत्मा. (1) - भाव (पुं)
जननम्. (1) - भाव (पुं)
3.3.208.1 - भावः सत्तास्वभावाभिप्रायचेष्टात्मजन्मसु
फलम्. (1) - प्रसव (पुं)
पुष्पम्. (1) - प्रसव (पुं)
उत्पादः. (1) - प्रसव (पुं)
3.3.208.2 - स्यादुत्पादे फले पुष्पे प्रसवो गर्भमोचने
अपह्नवः. (1) - निह्नव (पुं)
अविश्वासः. (1) - निह्नव (पुं)
कपटः. (1) - निह्नव (पुं)
3.3.209.1 - अविश्वासेऽपह्नवेऽपि निकृतावपि निह्नवः
इच्छाप्रसवः"". (1) - उत्सव (पुं)
कोपः. (1) - उत्सव (पुं)
उत्सेकः. (1) - उत्सव (पुं)
3.3.209.2 - उत्सेकामर्षयोरिच्छाप्रसरे मह उत्सवः
प्रभावः. (1) - अनुभाव (पुं)
सताम्मतिनिश्चयः. (1) - अनुभाव (पुं)
3.3.210.1 - अनुभावः प्रभावे च सतां च मतिनिश्चये
आद्योपलब्धिः. (1) - प्रभव (पुं)
जन्महेतुः. (1) - प्रभव (पुं)
स्थानम्. (1) - प्रभव (पुं)
3.3.210.2 - स्याज्जन्महेतुः प्रभवः स्थानं चाद्योपलब्धये
शूद्रायां विप्रतनयः. (1) - पारशव (पुं)
आयुधम्. (1) - पारशव (पुं)
3.3.211.1 - शूद्रायां विप्रतनये शस्त्रे पारशवो मतः
भभेदः. (1) - ध्रुव (पुं)
निश्चितम्. (1) - ध्रुव (नपुं)
शाश्वतम्. (1) - ध्रुव (वि)
3.3.211.2 - ध्रुवो भभेदे क्लीबे तु निश्चिते शाश्वते त्रिषु
आत्मा. (1) - स्व (पुं)
धनम्. (1) - स्व (पुं-नपुं)
आत्मीयम्. (1) - स्व (वि)
3.3.212.1 - स्वो ज्ञातावात्मनि स्वं त्रिष्वात्मीये स्वोऽस्त्रियां धने
स्त्रीकटीवस्त्रबन्धः. (1) - नीवी (स्त्री)
3.3.212.2 - स्त्रीकटीवस्त्रबन्धेऽपि नीवी परिपणेऽपि च
युद्धम्. (1) - द्वन्द्व (नपुं)
युग्मम्. (1) - द्वन्द्व (नपुं)
3.3.213.1 - शिवा गौरीफेरवयोर्द्वन्द्वं कलहयुग्मयोः
शरीरवायुः. (1) - सत्त्व (नपुं)
वस्तु. (1) - सत्त्व (नपुं)
व्यवसायः. (1) - सत्त्व (नपुं)
जन्तुः. (1) - सत्त्व (पुं-नपुं)
3.3.213.2 - द्रव्यासु व्यवसायेऽपि सत्त्वमस्त्री तु जन्तुषु
अविक्रमः. (1) - क्लीब (वि)
3.3.214.1 - क्लीबं नपुंसकं षण्डे वाच्यलिङ्गमविक्रमे
मनुष्यः. (1) - विश् (पुं)
अभिमरः. (1) - स्पश (पुं)
3.3.214.2 - द्वौ विशौ वैश्यमनुजौ द्वौ चराभिमरौ स्पशौ
समूहः. (1) - राशि (पुं)
मेषादयः. (1) - राशि (पुं)
3.3.215.1 - द्वौ राशी पुञ्जमेषाद्यौ द्वौ वंशौ कुलमस्करौ
प्रकाशः. (1) - वीकाश (पुं)
विजनः. (1) - वीकाश (पुं)
भृतिः. (1) - निर्वेश (पुं)
अनुभवः. (1) - निर्वेश (पुं)
3.3.215.2 - रहः प्रकाशौ वीकाशौ निर्वेशो भृतिभोगयोः
कृपणः. (1) - कीनाश (पुं)
कृषीवलः. (1) - कीनाश (पुं)
यमः. (1) - कीनाश (पुं)
3.3.216.1 - कृतान्ते पुंसि कीनाशः क्षुद्रकर्षकयोस्त्रिषु
लक्ष्यम्. (1) - अपदेश (पुं)
निमित्तम्. (1) - अपदेश (पुं)
व्याजम्. (1) - अपदेश (पुं)
जलम्. (1) - कुश (नपुं)
3.3.216.2 - पदे लक्ष्ये निमित्तेऽपदेशः स्यात्कुशमप्सु च
अनेकविधा अवस्था. (1) - दशा (स्त्री)
आयता तृष्णा. (1) - आशा (स्त्री)
3.3.217.1 - दशावस्थानेकविधाप्याशा तृष्णापि चायता
स्त्री. (1) - वशा (स्त्री)
ज्ञानम्. (1) - दृश् (स्त्री)
ज्ञानशीलः. (1) - दृश् (वि)
3.3.217.2 - वशा स्त्री करिणी च स्यात्दृग्ज्ञाने ज्ञातरि त्रिषु
अमसृणः. (1) - कर्कश (पुं)
कठिनम्. (1) - कर्कश (पुं)
साहसिकः. (1) - कर्कश (पुं)
3.3.218.1 - स्यात्कर्कशः साहसिकः कठोरामसृणावपि
अतिप्रसिद्धः. (1) - प्रकाश (पुं)
शिशुः. (1) - बालिश (पुं)
3.3.218.2 - प्रकाशोऽतिप्रसिद्धेऽपि शिशावज्ञे च बालिशः
नूतनकलिका. (1) - कोश (पुं-नपुं)
खड्गपिधानम्. (1) - कोश (पुं-नपुं)
भण्डारम्. (1) - कोश (पुं-नपुं)
दिव्यम्. (1) - कोश (पुं-नपुं)
3.3.219.1 - कोशोऽस्त्री कुड्मले खड्गपिधानेऽर्थौघदिव्ययोः
अपचयः. (1) - नाश (पुं)
तिरोधानम्. (1) - नाश (पुं)
प्रियः. (1) - जीवितेश (पुं)
यमः. (1) - जीवितेश (पुं)
3.3.219.2 - नाशः क्षये तिरोधाने जीवितेशः प्रिये यमे
परद्रोहकारी. (1) - निस्त्रिंश (पुं)
सूर्यः. (1) - अंशु (पुं)
कराः. (1) - अंशु (पुं)
3.3.219.3 - नृशंसखड्गौ निस्त्रिंशावंशुः सूर्येंशवः कराः
आख्याशालिः. (1) - आशु (नपुं)
बन्धनम्. (1) - पाश (पुं)
आयुधम्. (1) - पाश (पुं)
3.3.219.4 - आश्वाख्या शालिशीघ्रार्थे पाशो बन्धनशस्त्रयोः
देवः. (1) - अनिमिष (पुं)
मत्स्यः. (1) - अनिमिष (पुं)
मनुष्यः. (1) - पुरुष (पुं)
3.3.219.5 - सुरमत्स्यावनिमिषौ पुरुषावात्ममानवौ
मत्स्यात्खगः. (1) - ध्वाङ्क्ष (पुं)
तृणम्. (1) - कक्ष (पुं)
शाखादिभिर्विस्तृतवल्ली. (1) - कक्ष (पुं)
3.3.220.1 - काकमत्स्यात्खगौ ध्वाङ्क्षौ कक्षौ च तृणवीरुधौ
प्रग्रहः. (1) - अभीषु (पुं)
किरणः. (1) - अभीषु (पुं)
मर्दनम्. (1) - प्रैष (पुं)
प्रेषणम्. (1) - प्रैष (पुं)
3.3.220.2 - अभीषुः प्रग्रहे रश्मौ प्रैषः प्रेषणमर्दने
सहायः. (1) - पक्ष (पुं)
शिरोवेष्टनम्. (1) - उष्णीष (पुं)
किरीटम्. (1) - उष्णीष (पुं)
3.3.221.1 - पक्षः सहायेऽप्युष्णीषः शिरोवेष्टकिरीटयोः
मूषकः. (1) - वृष (पुं)
श्रेष्ठः. (1) - वृष (पुं)
सुकृतः. (1) - वृष (पुं)
शुक्रलः. (1) - वृष (पुं)
3.3.221.2 - शुक्रले मूषिके श्रेष्ठे सुकृते वृषभे वृषः
नूतनकलिका. (1) - कोष (पुं-नपुं)
खड्गपिधानम्. (1) - कोष (पुं-नपुं)
भण्डारम्. (1) - कोष (पुं-नपुं)
दिव्यम्. (1) - कोष (पुं-नपुं)
3.3.222.1 - कोषोऽस्त्री कुड्मले खड्गपिधानेऽर्थौघदिव्ययोः
चक्रम्. (1) - अक्ष (पुं)
इन्द्रियम्. (1) - अक्ष (पुं)
व्यवहारः. (1) - अक्ष (पुं)
अक्षः. (1) - आकर्ष (पुं)
शारीणामाधारपट्टः. (1) - आकर्ष (पुं)
द्यूतक्रीडनम्. (1) - आकर्ष (पुं)
3.3.222.2 - द्यूतेऽक्षे शारिफलकेऽप्याकर्षोऽथाक्षमिन्द्रिये
3.3.223.1 - ना द्यूताङ्गे कर्षचक्रे व्यवहारे कलिद्रुमे
करीषाग्निः. (1) - कर्षु (पुं)
वार्ता. (1) - कर्षु (पुं)
कुल्याभिधायिनी. (1) - कर्षू (स्त्री)
3.3.223.2 - कर्षूर्वार्त्ता करीषाग्निः कर्षूः कुल्याभिधायिनी
जलम्. (1) - विष (नपुं)
3.3.224.1 - पुम्भावे तत्क्रियायां च पौरुषं विषमप्सु च
उपादानम्. (1) - आमिष (पुं-नपुं)
अपराधः. (1) - किल्बिष (नपुं)
3.3.224.2 - उपादानेऽप्यामिषं स्यादपराधेऽपि किल्बिषम्
लोकधात्वंशः. (1) - वर्ष (पुं-नपुं)
वत्सरः. (1) - वर्ष (पुं-नपुं)
3.3.225.1 - स्याद्वृष्टौ लोकधात्वंशे वत्सरे वर्षमस्त्रियाम्
नृत्येक्षणम्. (1) - प्रेक्षा (स्त्री)
भृतिः. (1) - भिक्षा (स्त्री)
सेवा. (1) - भिक्षा (स्त्री)
याचनम्. (1) - भिक्षा (स्त्री)
3.3.225.2 - प्रेक्षा नृत्येक्षणं प्रज्ञा भिक्षा सेवार्थना भृतिः
शोभा. (1) - त्विष् (स्त्री)
कार्त्स्न्यम्. (1) - न्यक्ष (वि)
अधमम्. (1) - न्यक्ष (वि)
3.3.226.1 - त्विट् शोभापि त्रिषु परे न्यक्षं कार्त्स्न्यनिकृष्टयोः
प्रत्यक्षः. (1) - अध्यक्ष (वि)
अप्रेमः. (1) - रूक्ष (वि)
अचिक्कणः. (1) - रूक्ष (वि)
3.3.226.2 - प्रत्यक्षेऽधिकृतेऽध्यक्षो रूक्षस्त्वप्रेम्ण्यचिक्कणे
व्याजम्. (1) - लक्ष (नपुं)
लक्षसङ्ख्या. (1) - लक्ष (नपुं)
शब्दः. (1) - घोष (पुं)
गवां स्थानम्. (1) - घोष (पुं)
3.3.226.3 - व्याजसंख्याशरव्येषु लक्षं घोषौ रवव्रजौ
भित्तिः. (1) - कपिशीर्ष (नपुं)
शृङ्गः. (1) - कपिशीर्ष (नपुं)
चषकः. (1) - अनुतर्ष (पुं)
सुरा. (1) - अनुतर्ष (पुं)
3.3.226.4 - कपिशीर्षं भित्तिशृङ्गेऽनुतर्षश्चषकः सुरा
वातादयः. (1) - दोष (पुं)
रात्रिः. (1) - दोषा (अव्य)
कुक्कुटः. (1) - दक्ष (वि)
3.3.226.5 - दोषो वातादिके दोषा रात्रौ दक्षोऽपि कुक्कुटे
शुण्डाग्रभागः. (1) - गण्डूष (पुं)
मुखे जलपूरणम्. (1) - गण्डूष (स्त्री-पुं)
3.3.226.6 - शुण्डाग्रभागे गण्डूषो द्वयोश्च मुखपूरणे
3.3.227.1 - रविश्वेतच्छदौ हंसौ सूर्यवह्नी विभावसू
सद्योजातवृषभवत्सः. (1) - वत्स (पुं)
वर्षम्. (1) - वत्स (पुं)
चातकपक्षी. (1) - दिवौकस् (पुं)
3.3.227.2 - वत्सौ तर्णकवर्षौ द्वौ सारङ्गाश्च दिवौकसः
गुणः. (1) - रस (पुं)
रागः. (1) - रस (पुं)
शृङ्गारादिः. (1) - रस (पुं)
विषम्. (1) - रस (पुं)
वीर्यम्. (1) - रस (पुं)
द्रवः. (1) - रस (पुं)
3.3.228.1 - शृङ्गारादौ विषे वीर्ये गुणे रागे द्रवे रसः
कर्णाभरणम्. (2) - उत्तंस (पुं), अवतंस (पुं)
शिखास्थमाल्यम्. (2) - उत्तंस (पुं), अवतंस (पुं)
3.3.228.2 - पुंस्युत्तंसावतंसौ द्वौ कर्णपूरेऽपि शेखरे
अग्निः. (1) - वसु (पुं)
किरणः. (1) - वसु (पुं)
देवेष्वेकः. (1) - वसु (पुं)
धनम्. (1) - वसु (नपुं)
रत्नम्. (1) - वसु (नपुं)
3.3.229.1 - देवभेदेऽनले रश्मौ वसू रत्ने धने वसु
विष्णुः. (1) - वेधस् (पुं)
हिताशंसा. (1) - आशिस् (स्त्री)
3.3.229.2 - विष्णौ च वेधाः स्त्री त्वाशीर्हिताशंसाहिदंष्ट्रयोः
प्रार्थना. (1) - लालसा (स्त्री)
औत्सुक्यम्. (1) - लालसा (स्त्री)
चौर्यादिपरोपद्रवकर्मः. (1) - हिंसा (स्त्री)
3.3.230.1 - लालसे प्रार्थनौत्सुक्ये हिंसा चौर्यादिकर्म च
अश्वा. (1) - प्रसू (स्त्री)
आकाशः. (2) - रोदस् (नपुं), रोदसी (स्त्री)
भूमिः. (2) - रोदस् (नपुं), रोदसी (स्त्री)
3.3.230.2 - प्रसूरश्वापि भूद्यावौ रोदस्यौ रोदसी च ते
शोभा. (1) - अर्चिस् (स्त्री-नपुं)
नक्षत्रम्. (1) - ज्योतिस् (नपुं)
दृष्टिः. (1) - ज्योतिस् (नपुं)
द्योतः. (1) - ज्योतिस् (नपुं)
3.3.231.1 - ज्वालाभासौ न पुंस्यर्चिर्ज्योतिर्भद्योतदृष्टिषु
पापम्. (1) - आगस् (नपुं)
पक्षी. (1) - वयस् (नपुं)
बाल्यादिः. (1) - वयस् (नपुं)
3.3.231.2 - पापापराधयोरागः खगबाल्यादिनोर्वयः
प्रभा. (2) - वर्च (पुं), महस् (नपुं)
पुरीषम्. (1) - वर्च (पुं)
उत्सवः. (1) - महस् (नपुं)
3.3.232.1 - तेजः पुरीषयोर्वर्चो महस्तूत्सवतेजसोः
राहुः. (1) - तमस् (नपुं)
3.3.232.2 - रजो गुणे च स्त्रीपुष्पे राहौ ध्वान्ते गुणे तमः
पद्यम्. (1) - छन्दस् (नपुं)
स्पृहा. (1) - छन्दस् (नपुं)
कृच्छ्रादिकर्मः. (1) - तपस् (नपुं)
3.3.233.1 - छन्दः पद्येऽभिलाषे च तपः कृच्छ्रादिकर्म च
बलम्. (1) - सहस् (नपुं)
मार्गः. (1) - सहस् (पुं)
श्रावणमासः. (1) - नभस् (पुं)
3.3.233.2 - सहो बलं सहा मार्गो नभः खं श्रावणो नभाः
गृहम्. (1) - ओकस् (नपुं)
आश्रयः. (1) - ओकास् (पुं)
3.3.234.1 - ओकः सद्माश्रयश्चौकाः पय: क्षीरं पयोम्बु च
प्रभा. (1) - ओजस् (नपुं)
बलम्. (1) - ओजस् (नपुं)
इन्द्रियम्. (1) - स्रोतस् (नपुं)
निम्नगारयः. (1) - स्रोतस् (नपुं)
3.3.234.2 - ओजो दीप्तौ बले स्रोत इन्द्रिये निम्नगारये
प्रभा. (1) - तेजस् (नपुं)
बलम्. (1) - तेजस् (नपुं)
प्रभावः. (1) - तेजस् (नपुं)
3.3.235.1 - तेजः प्रभावे दीप्तौ च बले शुक्रेऽप्यतस्त्रिषु
विदत्. (1) - विद्वस् (वि)
हिंसाशीलः. (1) - बीभत्स (वि)
3.3.235.2 - विद्वान्विदंश्च बीभत्सो हिंस्रोऽप्यतिशयेत्वमी
अतिशयेन वृद्धः. (1) - ज्यायस् (वि)
अतिशयेन प्रशस्तः. (1) - ज्यायस् (वि)
अत्यन्तम् युवा. (1) - कनीयस् (वि)
अत्यन्तम् अल्पः. (1) - कनीयस् (वि)
3.3.236.1 - वृद्धप्रशंसयोर्ज्यायान्कनीयांस्तु युवाल्पयोः
अत्यन्तम् ऊरुः. (1) - वरीयस् (वि)
अत्यन्तम् वरः. (1) - वरीयस् (वि)
अत्यन्तम् साधुः. (1) - साधीयस् (वि)
अत्यन्तम् बाढः. (1) - साधीयस् (वि)
3.3.236.2 - वरीयांस्तूरुवरयोः साधीयान्साधुबाढयोः
दलम्. (1) - बर्ह (पुं-नपुं)
निर्बन्धः. (1) - ग्रह (पुं)
अर्कादयः. (1) - ग्रह (पुं)
3.3.237.1 - दलेऽपि बर्हं निर्बन्धोपरागार्कादयो ग्रहाः
क्वाथरसः. (1) - निर्यूह (पुं)
नागदन्तकम्. (1) - निर्यूह (पुं)
शिखास्थमाल्यम्. (1) - निर्यूह (पुं)
द्वारम्. (1) - निर्यूह (पुं)
3.3.237.2 - द्वार्यापीडे क्वाथरसे निर्यूहो नागदन्तके
तुलासूत्रम्. (2) - प्रग्राह (पुं), प्रग्रह (पुं)
प्रग्रहः. (2) - प्रग्राह (पुं), प्रग्रह (पुं)
3.3.238.1 - तुलासूत्रेऽश्वादिरश्मौ प्रग्राहः प्रग्रहोऽपि च
पत्नी. (1) - परिग्रह (पुं)
परिजनः. (1) - परिग्रह (पुं)
आदानम्. (1) - परिग्रह (पुं)
मूलधनम्. (1) - परिग्रह (पुं)
शापवचनम्. (1) - परिग्रह (पुं)
3.3.238.2 - पत्नीपरिजनादानमूलशापाः परिग्रहाः
पत्नी. (1) - गृह (पुं-बहु)
वरस्त्रियाः श्रोणी. (1) - आरोह (पुं)
3.3.239.1 - दारेषु च गृहाः श्रोण्यामप्यारोहो वरस्त्रियाः
वृत्रासुरः. (1) - अहि (पुं)
अग्निः. (1) - तमोपह (पुं)
चन्द्रः. (1) - तमोपह (पुं)
सूर्यः. (1) - तमोपह (पुं)
3.3.239.2 - व्यूहो वृन्देऽप्यहिर्वृत्रेऽप्यग्नीन्द्वर्कास्तमोपहाः
परिवारः. (1) - परिबर्ह (पुं)
नृपार्हाः. (1) - परिबर्ह (पुं)
3.3.240.1 - परिच्छदे नृपार्हेऽर्थे परिबर्होऽव्ययाः परे
ईषदर्थः. (1) - आङ् (अव्य)
सर्वतोव्याप्तिः. (1) - आङ् (अव्य)
सीमार्थः. (1) - आङ् (अव्य)
धातुयोगजार्थः. (1) - आङ् (अव्य)
3.3.240.2 - आङीषदर्थेऽभिव्याप्तौ सीमार्थे धातुयोगजे
प्रगृह्यः. (1) - आ (अव्य)
स्मृतिः. (1) - आ (अव्य)
वाक्यम्. (1) - आ (अव्य)
कोपः. (1) - आस्तु (अव्य)
दुःखम्. (1) - आस्तु (अव्य)
3.3.241.1 - आ प्रगृह्यस्स्मृतौ वाक्येऽप्यास्तु स्यात्कोपपीडयोः
ईषदर्थः. (1) - कु (स्त्री)
जुगुप्सा. (1) - कु (स्त्री)
पापम्. (1) - कु (स्त्री)
निर्भर्त्सनम्. (1) - धिक् (अव्य)
निन्दा. (1) - धिक् (अव्य)
3.3.241.2 - पापकुत्सेषदर्थे कु धिङ्निर्भत्सननिन्दयोः
अन्वाचयः. (1) - च (अव्य)
इतरेतरः. (1) - च (अव्य)
समाहारः. (1) - च (अव्य)
समुच्चयः. (1) - च (अव्य)
3.3.242.1 - चान्वाचयसमाहारेतरेतरसमुच्चये
आशीः. (1) - स्वस्ति (अव्य)
क्षेमम्. (1) - स्वस्ति (अव्य)
पुण्यादिः. (1) - स्वस्ति (अव्य)
प्रकर्षः. (1) - अति (अव्य)
लङ्घनम्. (1) - अति (अव्य)
3.3.242.2 - स्वस्त्याशीः क्षेमपुण्यादौ प्रकर्षे लङ्घनेऽप्यति
प्रश्नः. (1) - स्वित् (अव्य)
वितर्कः. (1) - स्वित् (अव्य)
भेदः. (1) - तु (अव्य)
अवधारणम्. (1) - तु (अव्य)
3.3.243.1 - स्वित्प्रश्ने च वितर्के च तु स्याद्भेदेऽवधारणे
सह. (1) - सकृत् (अव्य)
एकवारम्. (1) - सकृत् (अव्य)
दूरम्. (1) - आरात् (अव्य)
समीपः. (1) - आरात् (अव्य)
3.3.243.2 - सकृत्सहैकवारे चाप्याराद्दूरसमीपयोः
चरमम्. (1) - पश्चात् (अव्य)
पश्चिमदिक्. (1) - पश्चात् (अव्य)
प्रश्नः. (1) - उत (अव्य)
समुच्चयः. (1) - उत (अव्य)
विकल्पः. (1) - उत (अव्य)
3.3.244.1 - प्रतीच्यां चरमे पश्चादुताप्यर्थविकल्पयोः
पुनः. (1) - शश्वत् (अव्य)
सहार्थः. (1) - शश्वत् (अव्य)
प्रत्यक्षः. (1) - साक्षात् (अव्य)
तुल्यम्. (1) - साक्षात् (अव्य)
3.3.244.2 - पुनस्सहार्थयोः शश्वत्साक्षात्प्रत्यक्षतुल्ययोः
आमन्त्रणम्. (1) - बत (अव्य)
करुणरसः. (1) - बत (अव्य)
सन्तोषम्. (1) - बत (अव्य)
विस्मयः. (1) - बत (अव्य)
दुःखम्. (1) - बत (अव्य)
3.3.245.1 - खेदानुकम्पासन्तोषविस्मयामन्त्रणे बत
आनन्दः. (1) - हन्त (अव्य)
करुणरसः. (1) - हन्त (अव्य)
वाक्यारम्भः. (1) - हन्त (अव्य)
विषादः. (1) - हन्त (अव्य)
3.3.245.2 - हन्त हर्षेऽनुकम्पायां वाक्यारम्भविषादयोः
लक्षणादिः. (1) - प्रति (अव्य)
प्रतिनिधिः. (1) - प्रति (अव्य)
वीप्सा. (1) - प्रति (अव्य)
3.3.246.1 - प्रति प्रतिनिधौ वीप्सालक्षणादौ प्रयोगतः
कारणम्. (1) - इति (अव्य)
प्रकरणम्. (1) - इति (अव्य)
प्रकर्षः. (1) - इति (अव्य)
समापनम्. (1) - इति (अव्य)
3.3.246.2 - इति हेतुप्रकरणप्रकर्षादिसमाप्तिषु
पूर्वदिक्. (1) - पुरस्तात् (अव्य)
प्रथमा. (1) - पुरस्तात् (अव्य)
पुरार्थः. (1) - पुरस्तात् (अव्य)
अग्रे. (1) - पुरस्तात् (अव्य)
3.3.247.1 - प्राच्यां पुरस्तात्प्रथमे पुरार्थेऽग्रत इत्यपि
साकल्यम्. (1) - यावत् तावत् (अव्य)
अवधिः. (1) - यावत् तावत् (अव्य)
मानः. (1) - यावत् तावत् (अव्य)
अवधारणम्. (1) - यावत् तावत् (अव्य)
3.3.247.2 - यावत्तावच्च साकल्येऽवधौ मानेऽवधारणे
अनन्तरम्. (2) - अथो (अव्य), अथ (अव्य)
आरम्भः. (2) - अथो (अव्य), अथ (अव्य)
कार्त्स्न्यम्. (2) - अथो (अव्य), अथ (अव्य)
प्रश्नः. (2) - अथो (अव्य), अथ (अव्य)
शुभम्. (2) - अथो (अव्य), अथ (अव्य)
3.3.248.1 - मङ्गलानन्तरारम्भप्रश्नकार्त्स्न्येष्वथो अथ
अविधिः. (1) - वृथा (अव्य)
अनेकम्. (1) - नाना (अव्य)
उभयार्थः. (1) - नाना (अव्य)
3.3.248.2 - वृथा निरर्थकाविध्योर्नानानेकोभयार्थयोः
प्रश्नः. (1) - नु (अव्य)
विकल्पः. (1) - नु (अव्य)
पश्चात्. (1) - अनु (अव्य)
सादृश्यम्. (1) - अनु (अव्य)
3.3.249.1 - नु पृच्छायां विकल्पे च पश्चात्सादृश्ययोरनु
आमन्त्रणम्. (1) - ननु (अव्य)
अनुज्ञा. (1) - ननु (अव्य)
अनुनयः. (1) - ननु (अव्य)
अवधारणम्. (1) - ननु (अव्य)
प्रश्नः. (1) - ननु (अव्य)
3.3.249.2 - प्रश्नावधारणानुज्ञानुनयामन्त्रणे ननु
गर्हा. (1) - अपि (अव्य)
प्रश्नः. (1) - अपि (अव्य)
शङ्का. (1) - अपि (अव्य)
सम्भावना. (1) - अपि (अव्य)
समुच्चयः. (1) - अपि (अव्य)
3.3.250.1 - गर्हासमुच्चयप्रश्नशङ्कासम्भावनास्वपि
उपमा. (1) - वा (अव्य)
विकल्पः. (1) - वा (अव्य)
अर्धः. (1) - सामि (अव्य)
जुगुप्सितः. (1) - सामि (अव्य)
3.3.250.2 - उपमायां विकल्पे वा सामि त्वर्धे जुगुप्सिते
सह. (1) - अमा (अव्य)
समीपः. (1) - अमा (अव्य)
3.3.251.1 - अमा सह समीपे च कं वारिणि च मूर्धनि
इव. (1) - एवम् (अव्य)
इत्थम्. (1) - एवम् (अव्य)
अर्थनिश्चयः. (1) - नूनम् (अव्य)
तर्कः. (1) - नूनम् (अव्य)
3.3.251.2 - इवेत्थमर्थयोरेवं नूनं तर्केऽर्थनिश्चये
आनन्दः. (1) - जोषम् (अव्य)
तूष्णीमर्थः. (1) - जोषम् (अव्य)
जुगुप्सनम्. (1) - किम् (अव्य)
प्रश्नः. (1) - किम् (अव्य)
3.3.252.1 - तूष्णीमर्थे सुखे जोषं किं पृच्छायां जुगुप्सने
कोपः. (1) - नामन् (अव्य)
कुत्सनम्. (1) - नामन् (अव्य)
प्राकाश्यः. (1) - नामन् (अव्य)
सम्भाव्यः. (1) - नामन् (अव्य)
उपगमः. (1) - नामन् (अव्य)
3.3.252.2 - नाम प्राकाश्यसम्भाव्यक्रोधोपगमकुत्सने
भूषणम्. (1) - अलम् (अव्य)
पर्याप्तिः. (1) - अलम् (अव्य)
शक्तिः. (1) - अलम् (अव्य)
3.3.253.1 - अलं भूषणपर्याप्तिशक्तिवारणवाचकम्
परिप्रश्नः. (1) - हुम् (अव्य)
वितर्कः. (1) - हुम् (अव्य)
मध्यम्. (1) - समया (अव्य)
समीपः. (1) - समया (अव्य)
3.3.253.2 - हुं वितर्के परिप्रश्ने समयान्तिकमध्ययोः
अप्रथमः. (1) - पुनर् (अव्य)
भेदः. (1) - पुनर् (अव्य)
निषेधः. (1) - निर् (अव्य)
निश्चयः. (1) - निर् (अव्य)
3.3.254.1 - पुनरप्रथमे भेदे निर्निश्चयनिषेधयोः
प्रबन्धम्. (1) - पुरा (अव्य)
चिरातीतम्. (1) - पुरा (अव्य)
निकटागामिकम्. (1) - पुरा (अव्य)
3.3.254.2 - स्यात्प्रबन्धे चिरातीते निकटागामिके पुरा
अङ्गीकृतिः. (3) - ऊररी (अव्य), ऊरी (अव्य), उररी (अव्य)
विस्तरः. (3) - ऊररी (अव्य), ऊरी (अव्य), उररी (अव्य)
3.3.255.1 - ऊरर्यूरी चोररी च विस्तारेऽङ्गीकृतौ त्रयम्
परलोकः. (1) - स्वर् (अव्य)
सम्भाव्यः. (1) - किल (अव्य)
वार्ता. (1) - किल (अव्य)
3.3.255.2 - स्वर्गे परे च लोके स्वर्वार्तासम्भाव्ययोः किल
अनुनयः. (1) - खलु (अव्य)
जिज्ञासा. (1) - खलु (अव्य)
निषेधः. (1) - खलु (अव्य)
वाक्यालङ्कारः. (1) - खलु (अव्य)
3.3.256.1 - निषेधवाक्यालङ्कारजिज्ञासानुनये खलु
अभिमुखम्. (1) - अभितस् (अव्य)
साकल्यम्. (1) - अभितस् (अव्य)
शीघ्रम्. (1) - अभितस् (अव्य)
उभयतः. (1) - अभितस् (अव्य)
3.3.256.2 - समीपोभयतश्शीघ्रसाकल्याभिमुखेऽभितः
नाम. (1) - प्रादुस् (अव्य)
प्राकाश्यः. (1) - प्रादुस् (अव्य)
अन्योन्यम्. (1) - मिथः (अव्य)
रहस्यम्. (1) - मिथः (अव्य)
3.3.257.1 - नामप्राकाश्ययोः प्रादुर्मिथोऽन्योन्यं रहस्यपि
अन्तर्धानम्. (1) - तिरस् (अव्य)
अर्तिः. (1) - हा (अव्य)
शुद्धिः. (1) - हा (अव्य)
विषादः. (1) - हा (अव्य)
3.3.257.2 - तिरोऽन्तर्धौ तिर्यगर्थे हा विषादशुगर्तिषु
अद्भुतरसः. (1) - अहह (अव्य)
दुःखम्. (1) - अहह (अव्य)
अवधारणम्. (1) - हि (अव्य)
कारणम्. (1) - हि (अव्य)
3.3.258.1 - अहहेत्यद्भुते खेदे हि हेताववधारणे