Amarakosha - सङ्कीर्णवर्गः

Published on 20 August 2019 09:59 AM





3.2.1.1 - प्रकृतिप्रत्ययार्थाद्यैः सङ्कीर्णे लिङ्गमुन्नयेत्





क्रिया. (2) - कर्मन् (नपुं), क्रिया (स्त्री)

क्रियासातत्यः. (1) - अपरस्पर (वि)

3.2.1.2 - कर्म क्रिया तत्सातत्ये गम्ये स्युरपरस्पराः





साकल्यवचनम्. (1) - पारायण (वि)

आसङ्गवचनम्. (1) - तुरायण (वि)

3.2.2.1 - साकल्यासङ्गवचने पारायणतुरायणे





स्वातन्त्र्यम्. (2) - यदृच्छा (स्त्री), स्वैरिता (स्त्री)

हेतुशून्यास्था. (1) - विलक्षण (नपुं)

3.2.2.2 - यदृच्छा स्वैरिता हेतुशून्या त्वास्था विलक्षणम्





कामक्रोधाद्यभावः. (3) - शमथ (पुं), शम (पुं), शान्ति (स्त्री)

तपःक्लेशसहनम्. (3) - दान्ति (स्त्री), दमथ (पुं), दम (पुं)

3.2.3.1 - शमथस्तु शमः शान्तिर्दान्तिस्तु दमथो दमः





प्रशस्तकर्मः. (2) - अवदान (नपुं), कर्मवृत्त (नपुं)

फलेच्छायुक्तदानम्. (2) - काम्यदान (नपुं), प्रवारण (नपुं)

3.2.3.2 - अवदानं कर्म वृत्तं काम्यदानं प्रवारणम्





वशीकरणम्. (2) - वशक्रिया (स्त्री), संवनन (नपुं)

ओषधीनां मूलैरुच्चाटनकर्मः. (2) - मूलकर्मन् (नपुं), कार्मण (नपुं)

3.2.4.1 - वशक्रिया संवननं मूलकर्म तु कार्मणम्





कम्पनम्. (2) - विधूनन (नपुं), विधुवन (नपुं)

प्रीणनम्. (3) - तर्पण (नपुं), प्रीणन (नपुं), अवन (नपुं)

3.2.4.2 - विधूननं विधुवनं तर्पणं प्रीणनावनम्





वधोद्यतनिवारणम्. (3) - पर्याप्ति (स्त्री), परित्राण (नपुं), हस्तधारण (नपुं)

3.2.5.1 - पर्याप्तिः स्यात्परित्राणं हस्तधारणमित्यपि





सूचीक्रिया. (3) - सेवन (नपुं), सीवन (नपुं), स्यूति (स्त्री)

द्विधाभावः. (3) - विदर (पुं), स्फुटन (नपुं), भिद् (स्त्री)

3.2.5.2 - सेवनं सीवनं स्यूतिर्विदरः स्फुटनं भिदा





शापवचनम्. (2) - आक्रोशन (नपुं), अभीषङ्ग (पुं)

अनुभवः. (2) - संवेद (पुं), वेदना (स्त्री-नपुं)

3.2.6.1 - आक्रोशनमभीषङ्गः संवेदो वेदना न ना





सर्वतोव्याप्तिः. (2) - सम्मूर्च्छन (नपुं), अभिव्याप्ति (स्त्री)

याचनम्. (4) - याञ्चा (स्त्री), भिक्षा (स्त्री), अर्थना (स्त्री), अर्दना (स्त्री)

3.2.6.2 - सम्मूर्च्छनमभिव्याप्तिर्याञ्चा भिक्षार्थनार्दना





कर्तनम्. (2) - वर्धन (नपुं), छेदन (नपुं)

आलिङ्गनकुशलप्रश्नादिनानन्दनम्. (2) - आनन्दन (नपुं), सभाजन (नपुं)

3.2.7.1 - वर्धनं छेदनेऽथ द्वे आनन्दनसभाजने





आलिङ्गनकुशलप्रश्नादिनानन्दनम्. (1) - आप्रच्छन्न (नपुं)

गुरुपरम्परागतसदुपदेशः. (2) - आम्नाय (पुं), सम्प्रदाय (पुं)

अपचयः. (2) - क्षय (पुं), क्षिया (स्त्री)

3.2.7.2 - आप्रच्छन्नमथाम्नायः सम्प्रदायः क्षये क्षिया





ग्राहणम्. (2) - ग्रह (पुं), ग्राह (पुं)

इच्छा. (2) - वश (पुं), कान्त (वि)

रक्षणम्. (2) - रक्ष्ण (पुं), त्राण (नपुं)

शब्दकरणम्. (2) - रण (पुं), क्वण (पुं)

3.2.8.1 - ग्रहे ग्राहो वशः कान्तौ रक्ष्णस्त्राणे रणः क्वणे





वेधनम्. (2) - व्यध (पुं), वेध (पुं)

पचनम्. (2) - पचा (स्त्री), पाक (पुं)

आह्वानम्. (2) - हव (पुं), हूति (स्त्री)

वेष्टनसम्भक्तिः. (2) - वर (पुं), वृत्ति (स्त्री)

3.2.8.2 - व्यधो वेधे पचा पाके हवो हूतौ वरो वृत्तौ





दाहः. (2) - ओष (पुं), प्लोष (पुं)

नीतिः. (2) - नय (पुं), नाय (पुं)

जीर्णत्वम्. (2) - ज्यानि (स्त्री), जीर्ण (पुं)

भ्रमणम्. (2) - भ्रम (पुं), भ्रमि (स्त्री)

3.2.9.1 - ओषः प्लोषे नयो नाये ज्यानिर्जीर्णौ भ्रमो भ्रमौ





वृद्धिः. (2) - स्फाति (स्त्री), वृद्धि (स्त्री)

कीर्तिः. (2) - प्रथा (स्त्री), ख्याति (स्त्री)

स्पर्शनम्. (2) - स्पृष्टि (स्त्री), पृक्ति (स्त्री)

प्रस्रवणम्. (2) - स्नव (पुं), स्रव (पुं)

3.2.9.2 - स्फातिर्वृद्धौ प्रथाख्यातौ स्पृष्टिः पृक्तौ स्नवः स्रवे





धनसम्पत्तिः. (2) - विधा (स्त्री), समृद्धि (स्त्री)

स्फुरणम्. (2) - स्फुरण (नपुं), स्फुरणा (स्त्री)

प्रमाज्ञानम्. (2) - प्रमिति (स्त्री), प्रमा (स्त्री)

3.2.10.1 - विधा समृद्धौ स्फुरणे स्फुरणा प्रमितौ प्रमा





प्रसवनम्. (2) - प्रसूति (स्त्री), प्रसव (पुं)

क्षरणम्. (2) - श्च्योत (पुं), प्राधार (पुं)

ग्लानिः. (2) - क्लमथ (पुं), क्लम (पुं)

3.2.10.2 - प्रसूतिः प्रसवे श्च्योते प्राधारः क्लमथः क्लमे





उत्कर्षः. (2) - उत्कर्ष (पुं), अतिशय (पुं)

सन्धानम्. (2) - सन्धि (पुं), श्लेष (पुं)

आश्रयः. (2) - विषय (पुं), आश्रय (पुं)

3.2.11.1 - उत्कर्षोऽतिशये सन्धिः श्लेषे विषय आश्रये





प्रेरणम्. (2) - क्षिपा (स्त्री), क्षेपण (नपुं)

गिलनम्. (2) - गीर्णि (स्त्री), गिरि (स्त्री)

भाराद्युद्यमनम्. (2) - गुरण (नपुं), उद्यम (पुं)

3.2.11.2 - क्षिपायां क्षेपणं गीर्णिर्गिरौ गुरणमुद्यमे





उन्नयनम्. (2) - उन्नाय (पुं), उन्नय (पुं)

सेवा. (2) - श्राय (पुं), श्रयण (नपुं)

विजयः. (2) - जयन (नपुं), जय (पुं)

3.2.12.1 - उन्नाय उन्नये श्रायः श्रयणे जयने जयः





गदनम्. (2) - निगाद (पुं), निगद (पुं)

आनन्दः. (2) - माद (पुं), मद (पुं)

उद्वेजनम्. (2) - उद्वेग (पुं), उद्भ्रम (पुं)

3.2.12.2 - निगादो निगदे मादो मद उद्वेग उद्भ्रमे





कुङ्कुमादिमर्दनम्. (2) - विमर्दन (नपुं), परिमल (पुं)

अङ्गीकारः. (2) - अभ्युपपत्ति (स्त्री), अनुग्रह (पुं)

3.2.13.1 - विमर्दनं परिमलोऽभ्युपपत्तिरनुग्रहः





निरोधः. (2) - निग्रह (पुं), निरोध (पुं)

कलहाह्वानम्. (2) - अभियोग (पुं), अभिग्रह (पुं)

3.2.13.2 - निग्रहस्तद्विरुद्धः स्यादभियोगस्त्वभिग्रहः





मुष्टिबन्धनम्. (2) - मुष्टिबन्ध (पुं), सङ्ग्राह (पुं)

धाडकलुण्ठनादिः. (3) - डिम्ब (पुं), डमर (पुं), विप्लव (पुं)

3.2.14.1 - मुष्टिबन्धस्तु संग्राहो डिम्बे डमरविप्लवौ





बन्धनम्. (3) - बन्धन (नपुं), प्रसिति (स्त्री), चार (पुं)

सन्तप्तः. (3) - स्पर्श (पुं), स्प्रष्टृ (पुं), उपतप्तृ (पुं)

3.2.14.2 - बन्धनं प्रसितिश्चारः स्पर्शः स्प्रष्टोपतप्तरि





अपकारः. (2) - निकार (पुं), विप्रकार (पुं)

अभिप्रायानुरूपचेष्टा. (3) - आकार (पुं), इङ्ग (वि), इङ्गित (नपुं)

3.2.15.1 - निकारो विप्रकारः स्यादाकारस्त्विङ्ग इङ्गितम्





प्रकृतेरन्यथाभावः. (4) - परिणाम (पुं), विकार (पुं), विकृति (स्त्री), विक्रिया (स्त्री)

3.2.15.2 - परिणामो विकारे द्वे समे विकृतिविक्रिये





अपहरणम्. (2) - अपहार (पुं), अपचय (पुं)

राशीकरणम्. (2) - समाहार (पुं), समुच्चय (पुं)

3.2.16.1 - अपहारस्त्वपचयः समाहारः समुच्चयः





इन्द्रियाकर्षणम्. (2) - प्रत्याहार (पुं), उपादान (नपुं)

क्रीडार्थसञ्चरणम्. (2) - विहार (पुं), परिक्रम (पुं)

3.2.16.2 - प्रत्याहार उपादानं विहारस्तु परिक्रमः





आभिमुख्येन ग्रहणम्. (2) - अभिहार (पुं), अभिग्रहण (नपुं)

शस्त्रादेर्युक्त्या निःसरणम्. (2) - निहार (पुं), अभ्यवकर्षण (नपुं)

3.2.17.1 - अभिहारोऽभिग्रहणं निहारोऽभ्यवकर्षणम्





सदृशकरणम्. (2) - अनुहार (पुं), अनुकार (पुं)

द्रव्यापगमः. (1) - व्यय (पुं)

3.2.17.2 - अनुहारोऽनुकारः स्यादर्थस्यापगमे व्ययः





अविच्छेदेन जलादिप्रवृत्तिः. (2) - प्रवाह (पुं), प्रवृत्ति (स्त्री)

बहिर्गमनम्. (1) - प्रवह (पुं)

3.2.18.1 - प्रवाहस्तु प्रवृत्तिः स्यात्प्रवहो गमनं बहिः





संयमः. (6) - वियाम (पुं), वियम (पुं), याम (पुं), यम (पुं), संयाम (पुं), संयम (पुं)

3.2.18.2 - वियामो वियमो यामो यमः संयामसंयमौ





मारणादिक्रिया. (2) - हिंसाकर्मन् (नपुं), आभिचार (पुं)

जागरणम्. (2) - जागर्या (स्त्री), जागरा (स्त्री-पुं)

3.2.19.1 - हिंसाकर्माभिचारः स्याज्जागर्या जागरा द्वयोः





विघ्नः. (3) - विघ्न (पुं), अन्तराय (पुं), प्रत्यूह (पुं)

सन्निहिताश्रयः. (2) - उपघ्न (पुं), अन्तिकाश्रय (पुं)

3.2.19.2 - विघ्नोऽन्तरायः प्रत्यूहः स्यादुपघ्नोऽन्तिकाश्रये





उपभोगः. (2) - निर्वेश (पुं), उपभोग (पुं)

परिजनादिना वेष्टनम्. (2) - परिसर्प (पुं), परिक्रिया (स्त्री)

3.2.20.1 - निर्वेश उपभोगः स्यात्परिसर्पः परिक्रिया





विश्लेषः. (2) - विधुर (नपुं), प्रविश्लेष (पुं)

अभिप्रायः. (3) - अभिप्राय (पुं), छन्द (पुं), आशय (पुं)

3.2.20.2 - विधुरं तु प्रविश्लेषेऽभिप्रायश्छन्द आशयः





सङ्क्षेपणम्. (2) - सङ्क्षेपण (नपुं), समसन (नपुं)

विरोधनम्. (2) - पर्यवस्था (स्त्री), विरोधन (नपुं)

3.2.21.1 - संक्षेपणं समसनं पर्यवस्था विरोधनम्





सर्वतो गमनम्. (2) - परिसर्या (स्त्री), परीसार (पुं)

आसनम्. (3) - आस्या (स्त्री), आसना (स्त्री), स्थिति (स्त्री)

3.2.21.2 - परिसर्या परीसारः स्यादास्यात्वासना स्थितिः





विस्तारः. (3) - विस्तार (पुं), विग्रह (पुं), व्यास (पुं)

शब्दविस्तरः. (1) - विस्तर (पुं)

3.2.22.1 - विस्तारो विग्रहो व्यासः स च शब्दस्य विस्तरः





पादमर्दनादिः. (2) - संवाहन (नपुं), मर्दन (नपुं)

तिरोधानम्. (2) - विनाश (पुं), अदर्शन (नपुं)

3.2.22.2 - संवाहनं मर्दनं स्याद्विनाशः स्याददर्शनम्





परिचयः. (2) - संस्तव (पुं), परिचय (पुं)

व्रणादिविसरणम्. (2) - प्रसर (पुं), विसर्पण (नपुं)

3.2.23.1 - संस्तवः स्यात्परिचयः प्रसरस्तु विसर्पणम्





धान्यादिसञ्चयः. (2) - नीवाक (पुं), प्रयाम (पुं)

सन्निधानम्. (2) - सन्निधि (पुं), सन्निकर्षण (नपुं)

3.2.23.2 - नीवाकस्तु प्रयामः स्यात्सन्निधिः सन्निकर्षणम्





छेदनम्. (3) - लव (पुं), अभिलाव (पुं), लवन (नपुं)

धान्यादीनाम् बहुलीकरणम्. (3) - निष्पाव (पुं), पवन (नपुं), पव (पुं)

3.2.24.1 - लवोऽभिलावो लवने निष्पावः पवने पवः





अवसरः. (2) - प्रस्ताव (पुं), अवसर (पुं)

सूत्रवेष्टनक्रिया. (2) - त्रसर (पुं), सूत्रवेष्टन (नपुं)

3.2.24.2 - प्रस्तावः स्यादवसरस्त्रसरः सूत्रवेष्टनम्





प्रथमगर्भग्रहणम्. (2) - प्रजन (पुं), उपसर (पुं)

प्रीत्या प्रार्थनम्. (2) - प्रश्रय (पुं), प्रणय (पुं)

3.2.25.1 - प्रजनः स्यादुपसरः प्रश्रयप्रणयौ समौ





बुद्धिसामर्थ्यम्. (2) - धीशक्ति (स्त्री), निष्क्रम (पुं)

दुर्गप्रवेशनक्रिया. (2) - सङ्क्रम (पुं-नपुं), दुर्गसञ्चर (पुं)

3.2.25.2 - धीशक्तिर्निष्क्रमोऽस्त्री तु संक्रमो दुर्गसञ्चरः





कर्मारम्भे प्रथमप्रयोगः. (2) - प्रत्युत्क्रम (पुं), प्रयोगार्थ (पुं)

आरम्भः. (2) - प्रक्रम (पुं), उपक्रम (पुं)

3.2.26.1 - प्रत्युत्क्रमः प्रयोगार्थः प्रक्रमः स्यादुपक्रमः





आरम्भः. (3) - अभ्यादान (नपुं), उद्धात (पुं), आरम्भ (पुं)

त्वरा. (2) - सम्भ्रम (पुं), त्वरा (स्त्री-पुं)

3.2.26.2 - स्यादभ्यादानमुद्धात आरम्भः सम्भ्रमस्त्वरा





रोधः. (2) - प्रतिबन्ध (पुं), प्रविष्टम्भ (पुं)

अधोनयनम्. (2) - अवनाय (पुं), निपातन (नपुं)

3.2.27.1 - प्रतिबन्धः प्रविष्टम्भोऽवनायस्तु निपातनम्





अनुभवः. (2) - उपलम्भ (पुं), अनुभव (पुं)

कुङ्कुमादिलेपनम्. (2) - समालम्भ (पुं), विलेपन (नपुं)

3.2.27.2 - उपलम्भस्त्वनुभवः समालम्भो विलेपनम्





रागिणोर्वियोजनम्. (2) - विप्रलम्भ (पुं), विप्रयोग (पुं)

अतिदानम्. (2) - विलम्भ (पुं), अतिसर्जन (नपुं)

3.2.28.1 - विप्रलम्भो विप्रयोगो विलम्भस्त्वतिसर्जनम्





अतिख्यातिः. (2) - विश्राव (पुं), प्रतिख्याति (स्त्री)

अवेक्षणम्. (2) - अवेक्षा (स्त्री), प्रतिजागर (पुं)

3.2.28.2 - विश्रावस्तु प्रतिख्यातिरवेक्षा प्रतिजागरः





पठनम्. (3) - निपाठ (पुं), निपठ (पुं), पाठ (पुं)

आर्द्रीभावः. (3) - तेम (पुं), स्तेम (पुं), समुन्दन (नपुं)

3.2.29.1 - निपाठनिपठौ पाठे तेमस्तेमौ समुन्दने





क्लेशः. (3) - आदीनव (पुं), आस्रव (पुं), क्लेश (पुं)

सङ्गमम्. (3) - मेलक (पुं), सङ्ग (पुं), सङ्गम (पुं)

3.2.29.2 - आदीनवास्रवौ क्लेशे मेलके सङ्गसङ्गमौ





अन्वेषणम्. (5) - संवीक्षन (नपुं), विचयन (नपुं), मार्गण (नपुं), मृगणा (स्त्री), मृग (पुं)

3.2.30.1 - संवीक्षणं विचयनं मार्गणं मृगणा मृगः





आलिङ्गनम्. (4) - परिरम्भ (पुं), परिष्वङ्ग (पुं), संश्लेष (पुं), उपगूहन (नपुं)

3.2.30.2 - परिरम्भः परिष्वङ्गः संश्लेष उपगूहनम्





वीक्षणम्. (5) - निर्वर्णन (नपुं), निध्यान (नपुं), दर्शन (नपुं), आलोकन (नपुं), ईक्षण (नपुं)

3.2.31.1 - निर्वर्णनं तु निध्यानं दर्शनालोकनेक्षणम्





निराकरणम्. (4) - प्रत्याख्यान (नपुं), निरसन (नपुं), प्रत्यादेश (पुं), निराकृति (पुं)

3.2.31.2 - प्रत्याख्यानं निरसनं प्रत्यादेशो निराकृतिः





पर्यायेण प्रहरकादावुपशायः. (2) - उपशाय (पुं), विशाय (पुं)

3.2.32.1 - उपशायो विशायश्च पर्यायशयनार्थकौ





जुगुप्सनम्. (4) - अर्तन (नपुं), ऋतीया (स्त्री), हृणीया (स्त्री), घृणा (स्त्री)

3.2.32.2 - अर्तनं च ऋतीया च हृणीया च घृणार्थकाः





व्यतिक्रमः. (4) - व्यत्यास (पुं), विपर्यास (पुं), व्यत्यय (पुं), विपर्यय (पुं)

3.2.33.1 - स्याद्व्यत्यासो विपर्यासो व्यत्ययश्च विपर्यये





अतिक्रमः. (4) - पर्यय (पुं), अतिक्रम (पुं), अतिपात (पुं), उपात्यय (पुं)

3.2.33.2 - पर्ययोऽतिक्रमस्तस्मिन्नतिपात उपात्ययः





भृत्यादिप्रेषणम्. (1) - प्रतिशासन (नपुं)

3.2.34.1 - प्रेषणं यत्समाहूय तत्र स्यात्प्रतिशासनम्





यज्ञे स्तावकद्विजावस्थानभूमिः. (1) - संस्ताव (पुं)

3.2.34.2 - स संस्तावः क्रतुषु या स्तुतिभूमिर्द्विजन्मनाम्





काष्ठं यत्र काष्ठे निधाय तक्ष्यते सः. (1) - उद्घन (पुं)

3.2.35.1 - निधाय तक्ष्यते यत्र काष्ठे काष्ठं स उद्धनः





तृणादिगुच्छोन्मूलनसाधनम्. (2) - स्तम्बघ्न (पुं), स्तम्बघन (पुं)

3.2.35.2 - स्तम्बघ्नस्तु स्तम्बघनः स्तम्बो येन निहन्यते





भ्रमरसूच्यादिः. (1) - आविध (पुं)

तुल्यारोहपरिणाहवृक्षादिः. (1) - निघ (पुं)

3.2.36.1 - आविधो विध्यते येन तत्र विष्वक्समे निघः





धान्यानामूर्ध्वक्षेपणम्. (2) - उत्कार (पुं), निकार (पुं)

3.2.36.2 - उत्कारश्च निकारश्च द्वौ धान्योत्क्षेपणार्थकौ





निगरणम्. (1) - निगार (पुं)

उद्गरणम्. (1) - उद्गार (पुं)

विक्षवणम्. (1) - विक्षाव (पुं)

उद्ग्रहणम्. (1) - उद्ग्राह (पुं)

3.2.37.1 - निगारोद्गारविक्षावोद्ग्राहास्तु गरणादिषु





उपरमणम्. (4) - आरति (स्त्री), अवरति (स्त्री), विरति (स्त्री), उपराम (पुं)

मुखेन श्लेष्मनिरसनम्. (1) - निष्ठेव (स्त्री-पुं)

3.2.37.2 - आरत्यवरतिविरतय उपरामेऽथ स्त्रियां तु निष्ठेवः





मुखेन श्लेष्मनिरसनम्. (3) - निष्ठ्यूति (स्त्री), निष्ठेवन (नपुं), निष्ठीवन (नपुं)

3.2.38.1 - निष्ठयूतिर्निष्ठेवननिष्ठीवनमित्यभिन्नानि





वेगः. (2) - जवन (नपुं), जूति (स्त्री)

समापनम्. (2) - साति (स्त्री), अवसान (नपुं)

ज्वरणम्. (2) - ज्वर (पुं), जूर्ति (स्त्री)

3.2.38.2 - जवने जूतिः सातिस्त्ववसाने स्यादथ ज्वरे जूर्तिः





पशुप्रेरणम्. (2) - उदज (पुं), पशुप्रेरण (नपुं)

आक्रोशनम्. (1) - अकरणि (स्त्री)

3.2.39.1 - उदजस्तु पशुप्रेरणमकरणिरित्यादयः शापे





औपगवानां समूहः. (1) - औपगवक (नपुं)

3.2.39.2 - गोत्रान्तेभ्यस्तस्य वृन्दमित्यौपगवकादिकम्





अपूपानां समूहः. (1) - आपूपिक (नपुं)

शष्कुलीनां समूहः. (1) - शाष्कुलिक (नपुं)

3.2.40.1 - आपूपिकं शाष्कुलिकमेवमाद्यमचेतसाम्





माणवानां समूहः. (1) - माणव्य (नपुं)

सहायानां समूहः. (1) - सहायता (स्त्री)

3.2.40.2 - माणवानां तु माणव्यं सहायानां सहायता





हलानां समूहः. (1) - हल्या (स्त्री)

ब्राह्मणानां समूहः. (1) - ब्राह्मण्य (नपुं)

वाडवानां समूहः. (1) - वाडव्य (नपुं)

3.2.41.1 - हल्या हलानां ब्राह्मण्यवाडव्ये तु द्विजन्मनाम्





पर्शुकानां समूहः. (1) - पार्श्व (नपुं)

पृष्ठानां समूहः. (1) - पृष्ठ्य (नपुं)

3.2.41.2 - द्वे पर्शुकानां पृष्ठानां पार्श्वं पृष्ठ्यमनुक्रमात्





खलानां समूहः. (2) - खलिनी (स्त्री), खल्या (स्त्री)

माणवानां समूहः. (1) - मानुष्यक (नपुं)

3.2.42.1 - खलानां खलिनी खल्याप्यथ मानुष्यकं नृणाम्





ग्रामाणां समूहः. (1) - ग्रामता (स्त्री)

जनानां समूहः. (1) - जनता (स्त्री)

धूमानां समूहः. (1) - धूम्या (स्त्री)

पाशानां समूहः. (1) - पाश्या (स्त्री)

गलानां समूहः. (1) - गल्या (स्त्री)

3.2.42.2 - ग्रामता जनता धूम्या पाश्या गल्या पृथक्पृथक्





सहस्राणां समूहः. (1) - साहस्र (नपुं)

कारीषाणां समूहः. (1) - कारीष (नपुं)

चर्मणां समूहः. (1) - चार्मण (नपुं)

अथर्वणां समूहः. (1) - आथर्वण (नपुं)

3.2.43.1 - अपि साहस्रकारीषवार्मणाथर्वणादिकम्