वैश्यः. (6) – ऊरव्य (पुं), ऊरुज (पुं), अर्य (पुं), वैश्य (पुं), भूमिस्पृश् (पुं), विश् (पुं)
2.9.1.1 – ऊरव्या ऊरुजा अर्या वैश्या भूमिस्पृशो विशः

जीवनोपायः. (6) – आजीव (पुं), जीविका (स्त्री), वार्ता (स्त्री), वृत्ति (स्त्री), वर्तन (नपुं), जीवन (नपुं)
2.9.1.2 – आजीवो जीविका वार्ता वृत्तिर्वर्तनजीवने

जीवनोपायमार्गः. (3) – कृषि (स्त्री), पाशुपाल्य (नपुं), वाणिज्य (नपुं)
2.9.2.1 – स्त्रियां कृषिः पाशुपाल्यं वाणिज्यं चेति वृत्तयः

परचित्तानुवर्त्तनम्. (2) – सेवा (स्त्री), श्ववृत्ति (स्त्री)
कर्षणम्. (2) – अनृत (नपुं), कृषि (स्त्री)
खलादिपतितधान्यसङ्ग्रहः. (2) – उञ्छशिल (नपुं), ऋत (नपुं)
2.9.2.2 – सेवा श्ववृत्तिरनृतं कृषिरुञ्छशिलं त्वृतम्

तण्डुलादियाचितः. (1) – मृत (नपुं)
अयाचितः. (1) – अमृत (नपुं)
2.9.3.1 – द्वे याचितायाचितयोर्यथासंख्यं मृतामृते

वाणिज्यम्. (2) – सत्यानृत (नपुं), वणिग्भाव (पुं)
ऋणम्. (2) – ऋण (नपुं), पर्युदञ्चन (नपुं)
2.9.3.2 – सत्यानृतं वणिग्भावः स्यादृणं पर्युदञ्चनम्

ऋणम्. (1) – उद्धार (पुं)
ऋणसम्बन्धिकालान्तरद्रव्येण लोकजीविका. (3) – अर्थप्रयोग (पुं), कुसीद (नपुं), वृद्धिजीविका (स्त्री)
2.9.4.1 – उद्धारोऽर्थप्रयोगस्तु कुसीदं वृद्धिजीविका

याच्ञया प्राप्तम्. (1) – याचितक (नपुं)
परिवर्तनेनाप्तम्. (1) – आपमित्यक (नपुं)
2.9.4.2 – याच्ञयाप्तं याचितकं निमयादापमित्यकम्

ऋणव्यवहारे धनस्वामिः. (1) – उत्तमर्ण (पुं)
ऋणव्यवहारे धनग्राहकः. (1) – अधमर्ण (पुं)
2.9.5.1 – उत्तमर्णाधमर्णौ द्वौ प्रयोक्तृग्राहकौ क्रमात्

ऋणं दत्वा तद्वृत्याजीविपुरुषः. (4) – कुसीदिक (पुं), वार्धूषिक (पुं), वृद्ध्याजीव (पुं), वार्धुषि (पुं)
2.9.5.2 – कुसीदिको वार्धुषिको वृद्ध्याजीवश्च वार्धुषिः

कृषीवलः. (4) – क्षेत्राजीव (पुं), कर्षक (पुं), कृषक (पुं), कृषीवल (पुं)
2.9.6.1 – क्षेत्राजीवः कर्षकश्च कृषिकश्च कृषीवलः

धान्यसामान्योत्पत्तियोग्यक्षेत्रम्. (1) – व्रैहेय (वि)
कलमाद्युत्पत्तियोग्यक्षेत्रम्. (1) – शालेय (वि)
2.9.6.2 – क्षेत्रं व्रैहेयशालेयं व्रीहिशाल्युद्भवो हि यत्

यवक्षेत्रम्. (1) – यव्य (वि)
यवकक्षेत्रम्. (1) – यवक्य (वि)
षष्टिकक्षेत्रम्. (1) – षष्टिक्य (वि)
2.9.7.1 – यव्यं यवक्यं षष्टिक्यं यवादिभवनं हि यत्

तिलक्षेत्रम्. (2) – तिल्य (वि), तैलीन (वि)
माषक्षेत्रम्. (2) – माष्य (नपुं), माषीण (वि)
उमाक्षेत्रम्. (2) – उम्य (नपुं), औमीन (नपुं)
अणुधान्यक्षेत्रम्. (2) – अणव्य (नपुं), अणवीन (वि)
भङ्गाधान्यक्षेत्रम्. (2) – भङ्ग्य (नपुं), भाङ्गीन (वि)
2.9.7.2 – तिल्यं तैलीनवन्माषोमाणुभङ्गा द्विरूपता

मुद्गाधान्योद्भवक्षेत्रम्. (1) – मौद्गीन (वि)
कुद्रवधान्योद्भवक्षेत्रम्. (1) – कौद्रवीण (नपुं)
चणकधान्योद्भवक्षेत्रम्. (1) – चाणकीण (वि)
गोधुमधान्योद्भवक्षेत्रम्. (1) – गौधुमीण (नपुं)
कालयधान्योद्भवक्षेत्रम्. (1) – कालायीण (नपुं)
कोधुमधान्योद्भवक्षेत्रम्. (1) – कौदुमीण (नपुं)
प्रियङ्गधान्योद्भवक्षेत्रम्. (1) – प्रैयङ्गवीण (नपुं)
2.9.8.1 – मौद्गीनकौद्रवीणादि शेषधान्योद्भवक्षमम्

शाकक्षेत्रादिकः. (2) – शाकशाकट (वि), शाकशाकिन (वि)
2.9.8.2 – शाकक्षेत्रादिके शाकशाकटं शाकशाकिनम्

बीजवापोत्तरं कृष्टक्षेत्रम्. (2) – बीजाकृत (नपुं), उप्तकृष्ट (वि)
कृष्टक्षेत्रम्. (3) – सीत्य (वि), कृष्ट (वि), हल्यवत् (नपुं)
2.9.8.3 – बीजाकृतं तूप्तकृष्टे सीत्यं कृष्टं च हल्यवत्

वारत्रयकृष्टक्षेत्रम्. (4) – त्रिगुणाकृत (वि), तृतीयाकृत (वि), त्रिहल्य (वि), त्रिसीत्य (वि)
2.9.9.1 – त्रिगुणाकृतं तृतीयाकृतं त्रिहल्यं त्रिसीत्यमपि तस्मिन्

द्विवारकृष्टक्षेत्रम्. (5) – द्विगुणाकृत (वि), द्वितीयाकृत (वि), द्विहल्य (वि), द्विसीत्य (वि), शम्बाकृत (वि)
2.9.9.2 – द्विगुणाकृते तु सर्वं पूर्वं शम्बाकृतमपीह

द्रोणपरिमितव्रीहिवापयोग्यक्षेत्रम्. (1) – द्रौणिका (नपुं)
आढकपरिमितव्रीहिवापयोग्यक्षेत्रम्. (1) – आढकिक (वि)
कुडवपरिमितव्रीहिवापयोग्यक्षेत्रम्. (1) – कौडविक (वि)
प्रस्थपरिमितव्रीहिवापयोग्यक्षेत्रम्. (1) – प्रास्थिक (वि)
2.9.10.1 – द्रोणाढकादिवापादौ द्रौणिकाढकिकादयः

खारीपरिमितव्रीहिवापयोग्यक्षेत्रम्. (1) – खारीक (पुं)
2.9.10.2 – खारीवापस्तु खारीक उत्तमर्णादयस्त्रिषु

क्षेत्रम्. (3) – वप्र (पुं-नपुं), केदार (पुं), क्षेत्र (नपुं)
2.9.11.1 – पुन्नपुंसकयोर्वप्रः केदारः क्षेत्रमस्य तु

क्षेत्रगणम्. (4) – कैदारक (नपुं), कैदार्य (नपुं), क्षैत्र (नपुं), कैदारिक (नपुं)
2.9.11.2 – कैदारकं स्यात्कैदार्यं क्षेत्रं कैदारिकं गणे

मृद्खण्डः. (2) – लोष्ट (पुं-नपुं), लेष्टु (पुं)
लोष्टभेदनकाष्ठम्. (2) – कोटिश (पुं), लोष्टभेदन (पुं)
2.9.12.1 – लोष्टानि लेष्टवः पुंसि कोटिशो लोष्टभेदनः

वृषभादिप्रेरणदण्डः. (3) – प्राजन (नपुं), तोदन (नपुं), तोत्र (नपुं)
खननाद्यर्थायुधम्. (2) – खनित्र (नपुं), अवदारण (नपुं)
2.9.12.2 – प्राजनं तोदनं तोत्रं खनित्रमवदारणे

तृणच्छेदनायुधम्. (2) – दात्र (नपुं), लवित्र (नपुं)
वृषादेर्युगबन्धनरज्जुः. (3) – आबन्ध (पुं), योत्र (नपुं), योक्त्र (नपुं)
लाङ्गलस्याधस्थलोहकाष्ठम्. (1) – फल (नपुं)
2.9.13.1 – दात्रं लवित्रमाबन्धो योत्रं योक्त्रमथो फलम्

लाङ्गलस्याधस्थलोहकाष्ठम्. (4) – निरीश (नपुं), कुटक (नपुं), फाल (पुं), कृषिक (पुं)
हलम्. (2) – लाङ्गल (नपुं), हल (नपुं)
2.9.13.2 – निरीशं कुटकं फालः कृषको लाङ्गलं हलम्

हलम्. (2) – गोदारण (नपुं), सीर (पुं)
युगस्य कीलकः. (2) – शम्या (स्त्री), युगकीलक (पुं)
2.9.14.1 – गोदारणं च शीरोऽथ शम्या स्त्री युगकीलकः

हलयुगयोर्मध्यकाष्ठम्. (2) – ईशा (स्त्री), लाङ्गलदण्ड (पुं)
लाङ्गलकृतरेखा. (2) – सीता (स्त्री), लाङ्गलपद्धति (स्त्री)
2.9.14.2 – ईषा लाङ्गलदण्डः स्यात्सीता लाङ्गलपद्धतिः

पशुबन्धनस्तम्भः. (2) – मेधि (पुं), खलेदारु (नपुं)
2.9.15.1 – पुंसि मेधिः खले दारु न्यस्तं यत्पशुबन्धने

व्रीहिः. (3) – आशु (वि), व्रीहि (पुं), पाटल (पुं)
यवः. (2) – शितशूक (पुं), यव (पुं)
2.9.15.2 – आशुर्व्रीहिः पाटलः स्याच्छितशूकयवौ समौ

अपक्वयवः. (1) – तोक्म (पुं)
रेणुकः. (2) – कलाय (पुं), सतीनक (पुं)
2.9.16.1 – तोक्मस्तु तत्र हरिते कलायस्तु सतीनकः

रेणुकः. (2) – हरेणु (पुं), खण्डिक (पुं)
कोद्रवः. (2) – कोरदूष (पुं), कोद्रव (पुं)
2.9.16.2 – हरेणुरेणुकौ चास्मिन्कोरदूषस्तु कोद्रवः

मसूरः. (2) – मङ्गल्यक (पुं), मसूर (पुं)
वनमुद्गः. (2) – मकुष्ठक (पुं), मयुष्ठक (पुं)
2.9.17.1 – मङ्गल्यको मसूरोऽथ मकुष्टक मयुष्टकौ

वनमुद्गः. (1) – वनमुद्ग (पुं)
सर्षपः. (3) – सर्षप (पुं), तन्तुभ (पुं), कदम्बक (पुं)
2.9.17.2 – वनमुद्गे सर्षपे तु द्वौ तन्तुभकदम्बकौ

श्वेतसर्षपः. (1) – सिद्धार्थ (पुं)
गोधुमः. (2) – गोधूम (पुं), सुमन (पुं)
2.9.18.1 – सिद्धार्थस्त्वेष धवलो गोधूमः सुमनः समौ

अर्धस्विन्नयवादिः. (2) – यावक (पुं), कुल्माष (पुं)
चणकः. (2) – चणक (पुं), हरिमन्थक (पुं)
2.9.18.2 – स्याद्यावकस्तु कुल्माषश्चणको हरिमन्थकः

तैलहीनतिलः. (2) – तिलपेज (पुं), तिलपिञ्ज (पुं)
2.9.19.1 – द्वौ तिले तिलपेजश्च तिलपिञ्जश्च निष्फले

कृष्णसर्षपः. (5) – क्षव (पुं), क्षुधाभिजनन (पुं), राजिका (स्त्री), कृष्णिका (स्त्री), आसुरी (स्त्री)
2.9.19.2 – क्षवः क्षुताभिजननो राजिका कृष्णिकासुरी

कङ्गुः. (2) – कङ्गु (स्त्री), प्रियङ्गु (स्त्री)
अतसी. (3) – अतसी (स्त्री), उमा (स्त्री), क्षुमा (स्त्री)
2.9.20.1 – स्त्रियौ कङ्गुप्रियङ्गू द्वे अतसी स्यादुमा क्षुमा

चणभेदः. (2) – मातुलानी (स्त्री), भङ्गा (स्त्री)
व्रीहिभेदः. (1) – अणु (पुं)
2.9.20.2 – मातुलानी तु भङ्गायां व्रीहि भेदस्त्वणुः पुमान्

सस्यशूकम्. (2) – किंशारु (पुं), सस्यशूक (नपुं)
धान्यमञ्जरी. (2) – कणिश (नपुं), सस्यमञ्जरी (स्त्री)
2.9.21.1 – किंशारुः सस्यशूकं स्यात्कणिशं सस्यमञ्जरी

धान्यम्. (3) – धान्य (नपुं), व्रीहि (पुं), स्तम्बकरि (पुं)
यवादीनां मूलम्. (2) – स्तम्ब (पुं), गुच्छ (पुं)
2.9.21.2 – धान्यं व्रीहिः स्तम्बकरिः स्तम्बो गुच्छस्तृणादिनः

तृणादिकाण्डः. (2) – नाडी (स्त्री), नाल (नपुं)
धान्यरहितकाण्डः. (1) – पलाल (पुं-नपुं)
2.9.22.1 – नाडी नालञ्च काण्डोऽस्य पलालोऽस्त्री सनिष्फलः

पलालादिक्षोदः. (2) – कडङ्गर (पुं), बुस (नपुं)
तुषः. (2) – धान्यत्वच् (स्त्री), तुष (पुं)
2.9.22.2 – कडङ्गरो बुसं क्लीबे धान्यत्वचि तुषः पुमान्

तीक्ष्णाग्रधान्यम्. (1) – शूक (पुं-नपुं)
शिम्बा. (2) – शमी (स्त्री), शिम्बा (स्त्री)
2.9.23.1 – शूकोऽस्त्री श्लक्ष्णतीक्ष्णाग्रे शमी शिम्बा त्रिषूत्तरे

अपनीततृणसशीकृत धान्यम्. (2) – ऋद्ध (वि), आवसित (वि)
अपनीतबुसधान्यम्. (2) – पूत (वि), बहुलीकृत (वि)
2.9.23.2 – ऋद्धमावसितं धान्यं पूतं तु बहुलीकृतम्

शमीप्रभवमाषादिधान्यम्. (1) – शमीधान्य (नपुं)
यवादिशूकधान्यम्. (1) – शूकधान्य (नपुं)
2.9.24.1 – माषादयः शमीधान्ये शूकधान्ये यवादयः

कलमषष्टिकाद्याः. (1) – शालि (पुं)
2.9.24.2 – शालयः कलमाद्याश्च षष्टिकाद्याश्च पुंस्यमी

श्यामाकादितृणधान्यानि. (2) – तृणधान्य (नपुं), नीवार (पुं)
मुन्यन्नविशेषः. (2) – गवेधु (स्त्री), गवेधुका (स्त्री)
2.9.25.1 – तृणधान्यानि नीवाराः स्त्री गवेधुर्गवेधुका

मुसलः. (2) – अयोग्र (पुं-नपुं), मुसल (पुं-नपुं)
उलूखलम्. (2) – उदूखल (नपुं), उलूखल (नपुं)
2.9.25.2 – अयोग्रं मुसलोऽस्त्री स्यादुदूखलमुलूखलम्

शूर्पम्. (2) – प्रस्फोटन (नपुं), शूर्प (पुं-नपुं)
चालनी. (2) – चालनी (स्त्री), तितउ (पुं)
2.9.26.1 – प्रस्फोटनं शूर्पमस्त्री चालनी तितउः पुमान्

धान्यादिभरणार्थं वस्त्रादिनानिर्मितस्यूतः. (2) – स्यूत (पुं), प्रसेव (पुं)
वंशादिनिर्मितभाण्डः. (2) – कण्डोल (पुं), पिट (पुं)
वंशादिविकारः. (2) – कट (पुं), किलिञ्जक (पुं)
2.9.26.2 – स्यूतप्रसेवौ कण्डोलपिटौ कटकिलिञ्जकौ

पाकस्थानम्. (3) – रसवती (स्त्री), पाकस्थान (नपुं), महानस (नपुं)
2.9.27.1 – समानौ रसवत्यां तु पाकस्थानमहानसे

महानसाधिकारी. (1) – पौरोगव (पुं)
पाककर्ता. (2) – सूपकार (पुं), बल्लव (पुं)
2.9.27.2 – पौरोगवस्तदध्यक्षः सूपकारास्तु बल्लवाः

पाककर्ता. (5) – आरालिक (वि), आन्धसिक (वि), सूदा (वि), औदनिक (वि), गुण (वि)
2.9.28.1 – आरालिका आन्धसिकाः सूदा औदनिका गुणाः

भक्ष्यकारः. (3) – आपूपिक (वि), कान्दविक (वि), भक्ष्यकार (वि)
2.9.28.2 – आपूपिकः कान्दविको भक्ष्यकार इमे त्रिषु

चुल्लिः. (5) – अश्मन्त (नपुं), उद्धान (नपुं), अधिश्रयणी (स्त्री), चुल्ली (स्त्री), अन्तिका (स्त्री)
2.9.29.1 – अश्मन्तमुद्धानमधिश्रयणी चुल्लिरन्तिका

अङ्गारशकटी. (3) – अङ्गारधानिका (स्त्री), अङ्गारशकटी (स्त्री), हसन्ती (स्त्री)
2.9.29.2 – अङ्गारधानिकाङ्गारशकट्यपि हसन्त्यपि

अङ्गारशकटी. (1) – हसनी (स्त्री)
प्रज्वलकाष्ठम्. (1) – अङ्गार (पुं-नपुं)
अर्धदग्धकाष्ठम्. (2) – अलात (नपुं), उल्मुक (नपुं)
2.9.30.1 – हसन्यप्यथ न स्त्री स्यादङ्गारोऽलातमुल्मुकम्

भर्जनपात्रम्. (2) – अम्बरीष (नपुं), भ्राष्ट्र (पुं)
मद्यनिर्माणोपयोगिपात्रम्. (2) – कन्दु (स्त्री-पुं), स्वेदनी (स्त्री)
2.9.30.2 – क्लीबेऽम्बरीषं भ्राष्ट्रो ना कन्दुर्वा स्वेदनी स्त्रियाम्

महाकुम्भः. (2) – अलिञ्जर (पुं), मणिक (पुं)
गलन्तिका. (3) – कर्करी (स्त्री), आलु (स्त्री), गलन्तिका (स्त्री)
2.9.31.1 – अलिञ्जरः स्यान्मणिकः कर्कर्यालुर्गलन्तिका

स्थाली. (4) – पिठर (पुं), स्थाली (स्त्री), उखा (स्त्री), कुण्ड (नपुं)
घटः. (1) – कलश (वि)
2.9.31.2 – पिठरः स्थाल्युखा कुण्डं कलशस्तु त्रिषु द्वयोः

घटः. (3) – घट (पुं), कुट (पुं), निप (पुं-नपुं)
पात्रभेदः. (2) – शराव (पुं-नपुं), वर्धमानक (पुं)
2.9.32.1 – घटः कुटनिपावस्त्री शरावो वर्धमानकः

पिष्टपाकोपयोगी पात्रम्. (2) – ऋजीष (नपुं), पिष्टपचन (नपुं)
पानपात्रम्. (2) – कंस (पुं-नपुं), पानभाजन (नपुं)
2.9.32.2 – ऋजीषं पिष्टपचनं कंसोऽस्त्री पानभाजनम्

चर्मनिर्मिततैलघृतादिपात्रम्. (2) – कुतू (स्त्री), कृत्ति (स्त्री)
अल्पतैलघृतादिपात्रम्. (1) – कुतुप (पुं)
2.9.33.1 – कुतूः कृत्तेः स्नेहपात्रं सैवाल्पा कुतुपः पुमान्

पात्रम्. (5) – आवपन (नपुं), भाण्ड (नपुं), पात्र (नपुं), अमत्र (नपुं), भाजन (नपुं)
2.9.33.2 – सर्वमावपनं भाण्डं पात्रामत्रं च भाजनम्

दर्विः. (3) – दर्वि (स्त्री), कम्बि (स्त्री), खजाका (स्त्री)
दर्विभेदः. (2) – तर्दू (पुं), दारुहस्तक (पुं)
2.9.34.1 – दर्विः कम्बिः खजाका च स्यात्तर्दूर्दारुहस्तकः

वास्तुकादिशाकः. (3) – शाक (पुं-नपुं), हरितक (नपुं), शिग्रु (पुं)
2.9.34.2 – अस्त्री शाकं हरितकं शिग्रुरस्य तु नाडिका

शाकनालः. (2) – कलम्ब (पुं), कडम्ब (पुं)
हरिद्रासर्षपमरीचादिचूर्णम्. (2) – वेषवार (पुं), उपस्कर (पुं)
2.9.35.1 – कलम्बश्च कडम्बश्च वेसवार उपस्करः

तिन्तिडीकस्याम्लभेदः. (3) – तिन्तिडीक (नपुं), चुक्र (नपुं), वृक्षाम्ल (नपुं)
मरीचम्. (1) – वेल्लज (नपुं)
2.9.35.2 – तिन्तिडीकं च चुक्रं च वृक्षाम्लमथ वेल्लजम्

मरीचम्. (5) – मरीच (नपुं), कोलक (नपुं), कृष्ण (नपुं), औषण (नपुं), धर्मपत्तन (नपुं)
2.9.36.1 – मरीचं कोलकं कृष्णमूषणं धर्मपत्तनम्

जीरकः. (4) – जीरक (पुं), जरण (पुं), अजाजी (स्त्री), कणा (स्त्री)
2.9.36.2 – जीरको जरणोऽजाजि कणा कृष्णे तु जीरके

कृष्णवर्णजीरकः. (6) – सुषवी (स्त्री), कारवी (स्त्री), पृथ्वी (स्त्री), पृथु (पुं), काला (स्त्री), उपकुंञ्चिका (स्त्री)
2.9.37.1 – सुषवी कारवी पृथ्वी पृथुः कालोपकुञ्जिका

आर्द्रकम्. (2) – आर्द्रक (नपुं), शृङ्गबेर (नपुं)
धान्यकम्. (2) – छत्रा (स्त्री), वितुन्नक (नपुं)
2.9.37.2 – आर्द्रकं शृङ्गबेरं स्यादथच्छत्रा वितुन्नकम्

धान्यकम्. (2) – कुस्तुम्बरु (नपुं), धान्याक (नपुं)
शुण्ठी. (2) – शुण्ठी (स्त्री), महौषध (नपुं)
2.9.38.1 – कुस्तुम्बुरु च धान्याकमथ शुण्ठी महौषधम्

शुण्ठी. (3) – विश्व (स्त्री-नपुं), नागर (नपुं), विश्वभेषज (नपुं)
2.9.38.2 – स्त्रीनपुंसकयोर्विश्वं नागरं विश्वभेषजम्

काञ्जिकम्. (4) – आरनालक (नपुं), सौवीर (नपुं), कुल्माष (नपुं), अभिषुत (नपुं)
2.9.39.1 – आरनालकसौवीरकुल्माषाभिषुतानि च

काञ्जिकम्. (4) – अवन्तिसोम (नपुं), धान्याम्ल (नपुं), कुञ्जल (नपुं), काञ्जिक (नपुं)
2.9.39.2 – अवन्तिसोमधान्याम्लकुञ्जलानि च काञ्जिके

हिङ्गुवृक्षनिर्यासः. (5) – सहस्रवेधि (नपुं), जतुक (नपुं), बल्हीक (नपुं), हिङ्गु (नपुं), रामठ (नपुं)
2.9.40.1 – सहस्रवेधि जतुकं बाल्हीकं हिङ्गु रामठम्

हिङ्गुपत्रम्. (5) – कारवी (स्त्री), पृथ्वी (स्त्री), बाष्पिका (स्त्री), कबरी (स्त्री), पृथु (पुं)
2.9.40.2 – तत्पत्री कारवी पृथ्वी बाष्पिका कबरी पृथुः

हरिद्रा. (5) – निशाह्वा (स्त्री), काञ्चनी (स्त्री), पीता (स्त्री), हरिद्रा (स्त्री), वरवर्णिनी (स्त्री)
2.9.41.1 – निशाख्या काञ्चनी पीता हरिद्रा वरवर्णिनी

लवणम्. (4) – सामुद्र (नपुं), लवण (पुं), अक्षीव (नपुं), वशिर (नपुं)
2.9.41.2 – सामुद्रं यत्तु लवणमक्षीवं वशिरं च तत्

सिन्धुजलवणम्. (4) – सैन्धव (पुं-नपुं), शीतशिव (नपुं), माणिमन्थ (नपुं), सिन्धुज (नपुं)
2.9.42.1 – सैन्धवोऽस्त्री शीतशिवं माणिमन्थं च सिन्धुजे

शाम्भरलवणम्. (2) – रौमक (नपुं), वसुक (नपुं)
कृतकलवणम्. (2) – पाक्य (नपुं), बिड (नपुं)
2.9.42.2 – रौमकं वसुकं पाक्यं विडं च कृतके द्वयम्

मधुरलवणम्. (3) – सौवर्चल (नपुं), अक्ष (पुं-नपुं), रुचक (पुं)
कृष्णवर्णलवणम्. (1) – तिलक (नपुं)
2.9.43.1 – सौवर्चलेऽक्षरुचके तिलकं तत्र मेचके

फाणितम्. (3) – मत्स्यन्डी (स्त्री), फाणित (नपुं), खण्डविकार (पुं)
शर्करा. (2) – शर्करा (स्त्री), सिता (स्त्री)
2.9.43.2 – मत्स्यण्डी फाणितं खण्डविकारः शर्करा सिता

क्षीरविकृतिः. (1) – कूर्चिका (स्त्री)
दधिमधुशर्करामरिचार्द्रादिभिः कृतलेह्यः. (2) – रसाला (स्त्री), मार्जिता (स्त्री)
2.9.44.1 – कूर्चिका क्षीरविकृतिः स्याद्रसाला तु मार्जिता

दध्यादिव्यञ्जनम्. (2) – तेमन (नपुं), निष्ठान (नपुं)
2.9.44.2 – स्यात्तेमनं तु निष्ठानं त्रिलिङ्गा वासितावधेः

लोहशलाकया पक्वमांसः. (3) – शूलाकृत (वि), भटित्र (वि), शूल्य (वि)
स्थालीसंस्कृतान्नादिः. (2) – उख्य (वि), पैठर (वि)
2.9.45.1 – शूलाकृतं भटित्रं स्याच्छूल्यमुख्यं तु पैठरम्

पाकेन संस्कृतव्यञ्जनादिः. (2) – प्रणीत (वि), उपसम्पन्न (वि)
द्रव्यान्तरसंस्कृतपक्वम्. (2) – प्रयस्त (वि), सुसंस्कृत (वि)
2.9.45.2 – प्रणीतमुपसंपन्नं प्रयस्तं स्यात्सुसंस्कृतम्

मण्डयुक्तदध्यादिः. (2) – पिच्छिल (वि), विजिल (वि)
केशकीटाद्यपनीयशोधितोन्नः. (2) – सम्मृष्ट (वि), शोधित (वि)
2.9.46.1 – स्यात्पिच्छिलं तु विजिलं संमृष्टं शोधितं समे

स्निग्धम्. (3) – चिक्कण (वि), मसृण (वि), स्निग्ध (वि)
ग्राहितहिङ्ग्वादिगन्धव्यञ्जनादिः. (2) – भावित (वि), वासित (वि)
2.9.46.2 – चिक्कणं मसृणं स्निग्धं तुल्ये भावितवासिते

पौलिः. (3) – आपक्व (नपुं), पौलि (पुं), अभ्यूष (पुं)
भृष्टव्रीह्यादिः. (1) – लाज (पुं-बहु)
अखण्डतण्डुलाः. (1) – अक्षत (पुं-बहु)
2.9.47.1 – आपक्वं पौलिरभ्यूषो लाजाः पुंभूम्नि चाक्षताः

पृथुकः. (2) – पृथुक (पुं), चिपिटक (पुं)
भर्जितयवः. (2) – धाना (स्त्री), भृष्टयव (पुं)
2.9.47.2 – पृथुकः स्याच्चिपिटको धाना भ्रष्टयवे स्त्रियः

अपूपः. (3) – पूप (पुं), अपूप (पुं), पिष्टक (पुं)
दधिमिश्रसक्तुः. (2) – करम्भ (पुं), दधिसक्तु (पुं)
2.9.48.1 – पूपोऽपूपः पिष्टकः स्यात्करम्भो दधिसक्तवः

सिद्धान्नम्. (6) – भिस्सा (स्त्री), भक्त (नपुं), अन्ध (पुं), अन्न (नपुं), ओदन (पुं-नपुं), दीदिवि (पुं)
2.9.48.2 – भिस्सा स्त्री भक्तमन्धोऽन्नमोदनोऽस्त्री सदीदिविः

दग्धोदनः. (2) – भिस्सटा (स्त्री), दग्धिका (स्त्री)
सर्वेषाम् रसानामग्रम्. (1) – मण्ड (पुं-नपुं)
2.9.49.1 – भिस्सटा दग्धिका सर्वरसाग्रे मण्डमस्त्रियाम्

भक्तोद्भवमण्डः. (3) – मासर (पुं), आचाम (पुं), निस्राव (पुं)
2.9.49.2 – मासराचामनिस्रावा मण्डे भक्तसमुद्भवे

यवागू. (5) – यवागू (स्त्री), उष्णिका (स्त्री), श्राणा (स्त्री), विलेपी (स्त्री), तरला (स्त्री)
2.9.50.1 – यवागूरुष्णिका श्राणा विलेपी तरला च सा

तैलम्. (3) – म्रक्षण (नपुं), अभ्यञ्जन (नपुं), तैल (नपुं)
तिलौदनः. (2) – कृसर (नपुं), तिलौदन (पुं)
2.9.50.2 – म्रक्षणाभ्यञ्जने तैलं कृसरस्तु तिलौदनः

गोरसम्. (1) – गव्य (वि)
गोमयम्. (2) – गोविष् (पुं-नपुं), गोमय (पुं-नपुं)
2.9.50.3 – गव्यं त्रिषु गवां सर्वं गोविड्गोमयस्त्रियाम्

शुष्कगोमयम्. (1) – करीष (पुं-नपुं)
दुग्धम्. (3) – दुग्ध (नपुं), क्षीर (नपुं), पयस् (नपुं)
2.9.51.1 – तत्तु शुष्कं करीषोऽस्त्री दुग्धं क्षीरं पयस्समम्

घृतदध्यादिः. (1) – पयस्य (नपुं)
शिथिलदधिः. (1) – द्रप्स (नपुं)
2.9.51.2 – पयस्यमाज्यदध्यादि द्रप्स्यं दधि घनेतरत्

घृतम्. (4) – घृत (नपुं), आज्य (नपुं), हविस् (नपुं), सर्पिस् (नपुं)
अकृताग्निसंयोगनवोद्धृतम्. (1) – नवनीत (नपुं)
2.9.52.1 – घृतमाज्यं हविः सर्पिर्नवनीतं नवोद्घृतम्

एकरात्रपर्युषिताद्दध्नोत्पन्नघृतम्. (1) – हैयङ्गवीन (नपुं)
2.9.52.2 – तत्तु हैयङ्गवीनं यद्ध्योगोदोहोद्भवं घृतम्

दण्डमथितगोरसमात्रम्. (4) – दण्डाहत (नपुं), कालशेय (नपुं), अरिष्ट (नपुं), गोरस (पुं)
2.9.53.1 – दण्डाहतं कालशेयमरिष्टमपि गोरसः

पादांशजलघोलः. (1) – तक्र (नपुं)
अर्धांशजलघोलः. (1) – उदश्वित् (नपुं)
2.9.53.2 – तक्रं ह्युदश्विन्मथितं पादाम्ब्वर्धाम्बु निर्जलम्

वस्त्रनिःसृतदधिजलम्. (1) – मस्तु (नपुं)
नवप्रसूतगोः क्षीरम्. (1) – पीयूष (नपुं)
2.9.54.1 – मण्डम्दधिभवं मस्तु पीयूषोऽभिनवं पयः

बुभुक्षा. (3) – अशनाया (स्त्री), बुभुक्षा (स्त्री), क्षुत् (स्त्री)
ग्रासः. (2) – ग्रास (पुं), कवल (पुं)
2.9.54.2 – अशनाया बुभुक्षा क्षुद्ग्रासस्तु कवलः पुमान्

सहपानम्. (2) – सपीति (स्त्री), तुल्यपान (नपुं)
सहभोजनम्. (2) – सग्धि (स्त्री), सहभोजन (नपुं)
2.9.55.1 – सपीतिः स्त्री तुल्यपानं सग्धिः स्त्री सहभोजनम्

पिपासा. (4) – उदन्या (स्त्री), पिपासा (स्त्री), तृष् (स्त्री), तर्ष (पुं)
भोजनम्. (2) – जग्धि (स्त्री), भोजन (नपुं)
2.9.55.2 – उदन्या तु पिपासा तृट्तर्षो जग्धिस्तु भोजनम्

भोजनम्. (5) – जेमन (नपुं), लेह (पुं), आहार (पुं), निघस (पुं), न्याद (पुं)
2.9.56.1 – जेमनं लेह आहारो निघासो न्याद इत्यपि

तृप्तिः. (3) – सौहित्य (नपुं), तर्पण (नपुं), तृप्ति (स्त्री)
भुक्तोच्चिष्टम्. (2) – फेला (स्त्री), भुक्तसमुज्झित (नपुं)
2.9.56.2 – सौहित्यं तर्पणं तृप्तिः फेला भुक्तसमुज्झितम्

यथेप्सितम्. (6) – काम (नपुं), प्रकामम् (अव्य), पर्याप्त (नपुं), निकामम् (अव्य), इष्ट (नपुं), यथेप्सितम् (अव्य)
2.9.57.1 – कामं प्रकामं पर्याप्तं निकामेष्टं यथेप्सितम्

गोपालः. (6) – गोप (पुं), गोपाल (पुं), गोसङ्ख्य (पुं), गोधुक् (पुं), आभीर (पुं), वल्लव (पुं)
2.9.57.2 – गोपे गोपालगोसंख्यगोधुगाभीरवल्लवाः

गोमहिष्यादिः. (1) – पादबन्धन (नपुं)
गवां स्वामिः. (1) – गवीश्वर (पुं)
2.9.58.1 – गोमहिष्यादिकं पादबन्धनं द्वौ गवीश्वरे

गवां स्वामिः. (2) – गोमत् (पुं), गोमिन् (पुं)
गोसङ्घातः. (2) – गोकुल (नपुं), गोधन (नपुं)
2.9.58.2 – गोमान्गोमी गोकुलं तु गोधनं स्याद्गवां व्रजे

पूर्वं गवां चरणस्थानम्. (1) – आशितङ्गवीन (वि)
2.9.59.1 – त्रिष्वाशितङ्गवीनं तद्गावो यत्राशिताः पुरा

वृषभः. (6) – उक्षन् (पुं), भद्र (पुं), बलीवर्द (पुं), ऋषभ (पुं), वृषभ (पुं), वृष (पुं)
2.9.59.2 – उक्षा भद्रो बलीवर्द ऋषभो वृषभो वृषः

वृषभः. (3) – अनडुह् (पुं), सौरभेय (पुं), गो (पुं)
वृषभसङ्घः. (1) – औक्षक (नपुं)
2.9.60.1 – अनड्वान्सौरभेयो गौरुक्ष्णां संहतिरौक्षकम्

गोसमूहः. (2) – गव्या (स्त्री), गोत्रा (स्त्री)
वत्ससमूहः. (1) – वात्सक (नपुं)
धेनुसमूहः. (1) – धैनुक (नपुं)
2.9.60.2 – गव्या गोत्रा गवां वत्सधेन्वोर्वात्सकधैनुके

महावृषभः. (1) – महोक्ष (पुं)
वृद्धवृषभः. (2) – वृद्धोक्ष (पुं), जरद्गव (पुं)
2.9.61.1 – वृषो महान्महोक्षः स्याद्वृद्धोक्षस्तु जरद्गवः

आरब्धयौवनवृषभः. (1) – जातोक्ष (पुं)
सद्योजातवृषभवत्सः. (1) – तर्णक (पुं)
2.9.61.2 – उत्पन्न उक्षा जातोक्षः सद्यो जातस्तु तर्णकः

वृषभवत्सः. (2) – शकृत्करि (पुं), वत्स (पुं)
स्पष्टतारुण्यवृषभः. (2) – दम्य (पुं), वत्सतर (पुं)
2.9.62.1 – शकृत्करिस्तु वत्सस्याद्दम्यवत्सतरौ समौ

तारुण्यप्राप्तवृषभः. (2) – आर्षभ्य (पुं), षण्डतायोग्य (पुं)
साण्डवृषभः. (3) – षण्ड (पुं), गोपति (पुं), इट्चर (पुं)
2.9.62.2 – आर्षभ्यः षण्डतायोग्यः षण्डो गोपतिरिट्चरः

वृषभस्कन्धदेशः. (1) – वह (पुं)
गलकम्बलः. (2) – सास्ना (स्त्री), गलकम्बल (पुं)
2.9.63.1 – स्कन्धदेशे त्वस्य वहः सास्ना तु गलकम्बलः

नासारज्जुयुक्तवृषभः. (2) – नस्तित (पुं), नस्योत (पुं)
दमनार्थं कण्ठारोपितकाष्ठवाहः. (2) – प्रष्ठवाह् (पुं), युगपार्श्वग (पुं)
2.9.63.2 – स्यान्नस्तितस्तु नस्योतः प्रष्ठवाड्युगपार्श्वगः

युगवाह्यवृषभः. (1) – युग्य (नपुं)
युगेयुगवाह्यवृषभः. (1) – प्रासङ्ग्य (पुं)
शकटवाह्यवृषभः. (1) – शाकट (पुं)
2.9.64.1 – युगादीनां तु वोढारो युग्यप्रासङ्ग्यशाकटाः

हलेन खनतीत्यादयः. (2) – हालिक (पुं), सैरिक (पुं)
2.9.64.2 – खनति तेन तद्वोढास्येदं हालिकसैरिकौ

धुरन्धरवृषभः. (5) – धुर्वह (पुं), धुर्य (पुं), धौरेय (पुं), धुरीण (पुं), सधुरन्धर (पुं)
2.9.65.1 – धुर्वहे धुर्य धौरेय धुरीणाः सधुरन्धराः

एकामेव धुरन्धरः. (3) – एकधुरीण (पुं), एकधुर (पुं), एकधुरावह (पुं)
2.9.65.2 – उभावेकधुरीणैकधुरावेकधुरावहे

धुरीणश्रेष्ठः. (2) – सर्वधुरीण (पुं), सर्वधुरावह (पुं)
2.9.66.1 – स तु सर्वधुरीणः स्याद्यो वै सर्वधुरावहः

गौः. (6) – माहेयी (स्त्री), सौरभेयी (स्त्री), गो (पुं), उस्रा (स्त्री), मातृ (स्त्री), शृङ्गिणी (स्त्री)
2.9.66.2 – माहेयी सौरभेयी गौरुस्रा माता च शृङ्गिणी

गौः. (3) – अर्जुनी (स्त्री), अघ्न्या (स्त्री), रोहिणी (स्त्री)
श्रेष्ठा गौः. (1) – नैचिकी (स्त्री)
2.9.67.1 – अर्जुन्यघ्न्या रोहिणी स्यादुत्तमा गोषु नैचिकी

गोभेदः. (2) – शबली (स्त्री), धवला (स्त्री)
2.9.67.2 – वर्णादिभेदात्संज्ञाः स्युः शबलीधवलादयः

द्विवर्षा गौः. (1) – द्विहायनी (स्त्री)
एकवर्षा गौः. (1) – एकहायनी (स्त्री)
2.9.68.1 – द्विहायनी द्विवर्षा गौरेकाब्दा त्वेकहायनी

चतुर्वर्षा गौः. (1) – चतुर्हायणी (स्त्री)
त्रिवर्षा गौः. (1) – त्रिहायणी (स्त्री)
2.9.68.2 – चतुरब्दा चतुर्हायण्येवं त्र्यब्दा त्रिहायणी

वन्ध्या गौः. (2) – वशा (स्त्री), वन्ध्या (स्त्री)
अकस्मात् पतितगर्भा गौः. (2) – अवतोका (स्त्री), स्रवद्गर्भा (स्त्री)
कृतमैथुना गौः. (1) – सन्धिनी (स्त्री)
2.9.69.1 – वशा वन्ध्यावतोका तु स्रवद्गर्भाथ सन्धिनी

वृषयोगेन गर्भपातिनी. (2) – वेहत् (स्त्री), गर्भोपघातिनी (स्त्री)
2.9.69.2 – आक्रान्ता वृषभेणाथ वेहद्गर्भोपघातिनी

गर्भग्रहणयोग्या गौः. (1) – उपसर्या (स्त्री)
प्रथमं गर्भं धृतवती गौः. (2) – प्रष्ठौही (स्त्री), बालगर्भिणी (स्त्री)
2.9.70.1 – काल्योपसर्या प्रजने प्रष्ठौही बालगर्भिणी

अकोपजा गौः. (2) – अचण्डी (स्त्री), सुकरा (स्त्री)
बहुप्रसूता गौः. (2) – बहुसूति (स्त्री), परेष्टुका (स्त्री)
2.9.70.2 – स्यादचण्डी तु सुकरा बहुसूतिः परेष्टुका

दीर्घकालेन प्रसूता गौः. (2) – चिरप्रसूता (स्त्री), बष्कयणी (स्त्री)
नूतनप्रसूता गौः. (2) – धेनु (स्त्री), नवसूतिका (स्त्री)
2.9.71.1 – चिरप्रसूता बष्कयणी धेनुः स्यान्नवसूतिका

सुशीला गौः. (2) – सुव्रता (स्त्री), सुखसन्दोह्या (स्त्री)
स्थूलस्तनी गौः. (2) – पीनोध्नी (स्त्री), पीवरस्तनी (स्त्री)
2.9.71.2 – सुव्रता सुखसंदोह्या पीनोध्नी पीवरस्तनी

द्रोणप्रिमितदुग्धमात्रा गौः. (2) – द्रोणक्षीरा (स्त्री), द्रोणदुग्धा (स्त्री)
बन्धनस्थिता गौः. (1) – धेनुष्या (स्त्री)
2.9.72.1 – द्रोणक्षीरा द्रोणदुग्धा धेनुष्या बन्धके स्थिता

प्रतिवर्षं प्रसवित्री गौः. (1) – समांसमीना (स्त्री)
2.9.72.2 – समांसमीना सा यैव प्रतिवर्षं प्रसूयते

क्षीरशयः. (2) – ऊधस् (नपुं), आपीन (नपुं)
पशुबन्धनकाष्ठम्. (2) – शिवक (पुं), कीलक (पुं)
2.9.73.1 – ऊधस्तु क्लीबमापीनं समौ शिवककीलकौ

दोहनकाले पादबन्धनरज्जुः. (2) – दामन् (स्त्री-नपुं), सन्दान (नपुं)
पशुबन्धनरज्जुः. (2) – पशुरज्जु (स्त्री), दामनी (स्त्री)
2.9.73.2 – न पुंसि दाम सन्दानं पशुरज्जुस्तु दामनी

मन्थनदण्डः. (5) – वैशाख (पुं), मन्थ (पुं), मन्थान (पुं), मन्था (पुं), मन्थदण्डक (पुं)
2.9.74.1 – वैशाखमन्थमन्थान मन्थानो मन्थदण्डके

मन्थदण्डदारककाष्ठम्. (2) – कुठर (पुं), दण्डविष्कम्भ (पुं)
मन्थनपात्रम्. (2) – मन्थनी (स्त्री), गर्गरी (स्त्री)
2.9.74.2 – कुठरो दण्डविष्कम्भो मन्थनी गर्गरी समे

उष्ट्रः. (4) – उष्ट्र (पुं), क्रमेलक (पुं), मय (पुं), महाङ्ग (पुं)
उष्ट्रशिशुः. (1) – करभ (पुं)
2.9.75.1 – उष्ट्रे क्रमेलकमयमहाङ्गाः करभः शिशुः

दारुविकारशृङ्खलाबद्धोष्ट्रशिशुः. (1) – शृङ्खलक (पुं)
2.9.75.2 – करभाः स्युः शृङ्खलका दारवैः पादबन्धनैः

अजा. (2) – अजा (स्त्री), छागी (स्त्री)
अजः. (5) – स्तभ (पुं), छाग (पुं), वस्त (पुं), छगलक (पुं), अज (पुं)
2.9.76.1 – अजा छागी शुभच्छागबस्तच्छगलका अजे

मेषः. (7) – मेढ्र (पुं), उरभ्र (पुं), उरण (पुं), ऊर्णायु (पुं), मेष (पुं), वृष्णि (पुं), एडक (पुं)
2.9.76.2 – मेढ्रोरभ्रोरणोर्णायु मेष वृष्णय एडके

उष्ट्रसमूहः. (1) – औष्ट्रक (नपुं)
मेषसमूहः. (1) – औरभ्रक (नपुं)
अजसमूहः. (1) – आजक (नपुं)
2.9.77.1 – उष्ट्रोरभ्राजवृन्दे स्यादौष्ट्रकौरभ्रकाजकम्

गर्दभः. (5) – चक्रीवत् (पुं), वालेय (पुं), रासभ (पुं), गर्दभ (पुं), खर (पुं)
2.9.77.2 – चक्रीवन्तस्तु वालेया रासभा गर्दभाः खराः

वणिक्. (5) – वैदेहक (पुं), सार्थवाह (पुं), नैगम (पुं), वाणिज (पुं), वणिज् (पुं)
2.9.78.1 – वैदेहकः सार्थवाहो नैगमो वाणिजो वणिक्

वणिक्. (3) – पण्याजीव (पुं), आपणिक (पुं), क्रयविक्रयक (पुं)
2.9.78.2 – पण्याजीवो ह्यापणिकः क्रयविक्रयिकश्च सः

वस्त्रपात्रादिदत्वा तन्मूल्यं गृहीतः. (2) – विक्रेतृ (पुं), विक्रयिक (पुं)
मूल्येन वस्त्रादि गृहीतः. (2) – क्रायक (पुं), क्रयिक (पुं)
2.9.79.1 – विक्रेता स्याद्विक्रयिकः क्रायकक्रयिकौ समौ

वणिक्कर्मः. (2) – वाणिज्य (नपुं), वणिज्या (स्त्री)
विक्रेयवस्तूनां मूल्यम्. (3) – मूल्य (नपुं), वस्न (पुं), अवक्रय (पुं)
2.9.79.2 – वाणिज्यं तु वणिज्या स्यान्मूल्यं वस्नोऽप्यवक्रयः

मूलधनम्. (3) – नीवी (स्त्री), परिपण (पुं), मूलधन (नपुं)
अधिकफलम्. (3) – लाभ (पुं), अधिक (वि), फल (नपुं)
2.9.80.1 – नीवी परिपणो मूलधनं लाभोऽधिकं फलम्

परिवर्तनम्. (4) – परिदान (नपुं), परीवर्त (पुं), नैमेय (पुं), नियम (पुं)
2.9.80.2 – परिदानं परीवर्तो नैमेयनियमावपि

निक्षेपः. (2) – उपनिधि (पुं), न्यास (पुं)
स्वामिने निक्षेपार्पणम्. (1) – प्रतिदान (नपुं)
2.9.81.1 – पुमानुपनिधिर्न्यासः प्रतिदानं तदर्पणम्

क्रये प्रसारितं द्रव्यम्. (1) – क्रय्य (वि)
क्रेतव्यमात्रके द्रव्यम्. (1) – क्रेय (वि)
2.9.81.2 – क्रये प्रसारितं क्रय्यं क्रेयं क्रेतव्यमात्रके

विक्रयक्रियाकर्मः. (3) – विक्रेय (वि), पणितव्य (वि), पण्य (वि)
2.9.82.1 – विक्रेयं पणितव्यं च पण्यं क्रय्यादयस्त्रिषु

सत्यङ्कारः. (3) – सत्यापन (नपुं), सत्यङ्कार (पुं), सत्याकृति (स्त्री)
2.9.82.2 – क्लीबे सत्यापनं सत्यङ्कारः सत्याकृतिः स्त्रियाम्

विक्रयः. (2) – विपण (पुं), विक्रय (पुं)
2.9.83.1 – विपणो विक्रयः संख्याः संख्येये ह्यादश त्रिषु

2.9.83.2 – विंशत्याद्याः सदैकत्वे सर्वाः संख्येयसंख्ययोः

2.9.84.1 – संख्यार्थे द्विबहुत्वे स्तस्तासु चानवतेः स्त्रियः

2.9.84.2 – पङ्क्तेः शतसहस्रादि क्रमाद्दशगुणोत्तरम्

मानार्थः. (3) – यौतव (नपुं), द्रुवय (नपुं), पाय्य (नपुं)
2.9.85.1 – यौतवं द्रुवयं पाय्यमिति मानार्थकं त्रयम्

माननाम. (1) – आद्यमाषक (पुं)
2.9.85.2 – मानं तुलाङ्गुलिप्रस्थैर्गुञ्जाः पञ्जाद्यमाषकः

षोडशमाषः. (2) – अक्ष (पुं), कर्ष (पुं-नपुं)
कर्षचतुष्टयम्. (1) – पल (नपुं)
2.9.86.1 – ते षोडशाक्षः कर्षोऽस्त्री पलं कर्षचतुष्टयम्

हेम्नो़क्षमानः. (2) – सुवर्ण (पुं-नपुं), विस्त (पुं-नपुं)
सुवर्णस्याक्षपलः. (1) – कुरुविस्त (पुं)
2.9.86.2 – सुवर्णबिस्तौ हेम्नोऽक्षे कुरुबिस्तस्तु तत्पले

पलशतम्. (1) – तुला (स्त्री)
विंशतितुला. (1) – भार (पुं)
2.9.87.1 – तुला स्त्रियां पलशतं भारः स्याद्विंशतिस्तुलाः

आचितभारः. (1) – शाकटभार (वि)
दशभाराः. (1) – आचित (पुं-नपुं)
2.9.87.2 – आचितो दश भाराः स्युः शाकटो भार आचितः

रजतरूप्यकम्. (2) – कार्षापण (पुं), कार्षिक (पुं)
ताम्रकृतकार्षापणः. (1) – पण (पुं)
2.9.88.1 – कार्षापणः कार्षिकः स्यात् कार्षिके ताम्रिके पणः

परिमाणः. (5) – आढक (पुं-नपुं), द्रोण (पुं), खारी (स्त्री), वाह (पुं), निकुञ्चक (पुं)
2.9.88.2 – अस्त्रियामाढकद्रोणौ खारी वाहो निकुञ्चकः

परिमाणः. (2) – कुडव (पुं), प्रस्थ (पुं)
2.9.89.1 – कुडवः प्रस्थ इत्याद्याः परिमाणार्थकाः पृथक्

तुरीयोभागः. (1) – पाद (पुं)
विभागः. (3) – अंश (पुं), भाग (पुं), वण्टक (पुं)
2.9.89.2 – पादस्तुरीयो भागः स्यादंशभागौ तु वण्टके

द्रव्यम्. (7) – द्रव्य (नपुं), वित्त (नपुं), स्वापतेय (नपुं), रिक्थ (नपुं), ऋक्थ (नपुं), धन (नपुं), वसु (नपुं)
2.9.90.1 – द्रव्यं वित्तं स्वापतेयं रिक्थमृक्थं धनं वसु

द्रव्यम्. (6) – हिरण्य (नपुं), द्रविण (नपुं), द्युम्न (नपुं), अर्थ (पुं), रै (पुं), विभव (पुं)
2.9.90.2 – हिरण्यं द्रविणं द्युम्नमर्थरैविभवा अपि

घटिताघटितहेमरूप्यकम्. (2) – कोश (पुं), हिरण्य (नपुं)
2.9.91.1 – स्यात्कोशश्च हिरण्यं च हेमरूप्ये कृताकृते

ताम्रादिधातोर्रूप्यकम्. (1) – कुप्य (नपुं)
आहतरूप्यकहेमादिः. (1) – रूप्य (नपुं)
2.9.91.2 – ताभ्यां यदन्यत्तत्कुप्यं रूप्यं तद्द्वयमाहतम्

मरतकमणिः. (4) – गारुत्मत (नपुं), मरकत (नपुं), अश्मगर्भ (पुं), हरिन्मणि (पुं)
2.9.92.1 – गारुत्मतं मरकतमश्मगर्भो हरिन्मणिः

पद्मरागमणिः. (3) – शोणरत्न (नपुं), लोहितक (पुं), पद्मराग (पुं)
मौक्तिकम्. (1) – मौक्तिक (नपुं)
2.9.92.2 – शोणरत्नं लोहितकः पद्मरागोऽथ मौक्तिकम्

मौक्तिकम्. (1) – मुक्ता (स्त्री)
प्रवालमणिः. (2) – विद्रुम (पुं), प्रवाल (पुं-नपुं)
2.9.93.1 – मुक्ताथ विद्रुमः पुंसि प्रवालं पुन्नपुंसकम्

रत्नम्. (2) – रत्न (नपुं), मणि (स्त्री-पुं)
2.9.93.2 – रत्नं मणिर्द्वयोरश्मजातौ मुक्तादिकेऽपि च

सुवर्णम्. (6) – स्वर्ण (नपुं), सुवर्ण (नपुं), कनक (नपुं), हिरण्य (नपुं), हेमन् (नपुं), हाटक (नपुं)
2.9.94.1 – स्वर्णं सुवर्णं कनकं हिरण्यं हेमकाटकम्

सुवर्णम्. (5) – तपनीय (नपुं), शातकुम्भ (नपुं), गाङ्गेय (नपुं), भर्मन् (नपुं), कर्बुर (नपुं)
2.9.94.2 – तपनीयं शातकुम्भं गाङ्गेयं भर्म कर्बुरम्

सुवर्णम्. (4) – चामीकर (नपुं), जातरूप (नपुं), महारजत (नपुं), काञ्चन (नपुं)
2.9.95.1 – चामीकरं जातरूपं महारजतकाञ्चने

सुवर्णम्. (4) – रुक्म (नपुं), कार्तस्वर (नपुं), जाम्बूनद (नपुं), अष्टापद (पुं-नपुं)
2.9.95.2 – रुक्मं कार्तस्वरं जाम्बूनदमष्टापदोऽस्त्रियाम्

अलङ्कारस्वर्णम्. (1) – श्रृङ्गीकनक (नपुं)
2.9.96.1 – अलङ्कारसुवर्णं यच्छृङ्गीकनकमित्यदः

रजतम्. (5) – दुर्वर्ण (नपुं), रजत (नपुं), रूप्य (नपुं), खर्जूर (नपुं), श्वेत (नपुं)
2.9.96.2 – दुर्वर्णं रजतं रूप्यं खर्जूरं श्वेतमित्यपि

पित्तलम्. (2) – रीति (स्त्री), आरकूट (पुं-नपुं)
ताम्रम्. (1) – ताम्रक (नपुं)
2.9.97.1 – रीतिः स्त्रियामारकूटो न स्त्रियामथ ताम्रकम्

ताम्रम्. (5) – शुल्ब (नपुं), म्लेच्छमुख (नपुं), द्व्यष्ट (नपुं), वरिष्ठ (नपुं), उदुम्बर (नपुं)
2.9.97.2 – शुल्बं म्लेच्छमुखं द्व्यष्टवरिष्टोदुम्बराणि च

लोहः. (6) – लोह (पुं-नपुं), शस्त्रक (नपुं), तीक्ष्ण (नपुं), पिण्ड (नपुं), कालायस (नपुं), अयस् (नपुं)
2.9.98.1 – लोहोऽस्त्री शस्त्रकं तीक्ष्णं पिण्डं कालायसायसी

लोहः. (1) – अश्मसार (पुं-नपुं)
लोहमलम्. (2) – मण्डूर (नपुं), सिंहाण (नपुं)
2.9.98.2 – अश्मसारोऽथ मण्डूरं सिंहाणमपि तन्मले

सर्वधातवः. (2) – तैजस (नपुं), लोह (नपुं)
अयोविकारः. (1) – कुशी (स्त्री)
2.9.99.1 – सर्वं च तैजसं लौहं विकारस्त्वयसः कुशी

काचः. (2) – क्षार (पुं), काच (पुं)
पारदः. (4) – चपल (पुं), रस (पुं), सूत (पुं), पारद (पुं)
2.9.99.2 – क्षारः काचोऽथ चपलो रसः सूतश्च पारदे

महिषशृङ्गम्. (1) – गवल (नपुं)
अभ्रकम्. (3) – अभ्रक (नपुं), गिरिज (नपुं), अमल (नपुं)
2.9.100.1 – गवलं माहिषं शृङ्गमभ्रकं गिरिजामले

सौवीराञ्जनम्. (4) – स्रोतोञ्जन (नपुं), सौवीर (नपुं), कापोताञ्जन (नपुं), यामुन (नपुं)
2.9.100.2 – स्रोतोञ्जनं तु सौवीरं कापोताञ्जनयामुने

तुत्थाञ्जनम्. (4) – तुत्थाञ्जन (नपुं), शिखिग्रीव (नपुं), वितुन्नक (नपुं), मयूरक (नपुं)
2.9.101.1 – तुत्थाञ्जनं शिखिग्रीवं वितुन्नकमयूरके

आवर्तननिष्पन्नरसाञ्जनम्. (3) – कर्परी (स्त्री), दार्विका (स्त्री), तुत्थ (नपुं)
रसाञ्जनम्. (1) – रसाञ्जन (नपुं)
2.9.101.2 – कर्परी दार्विकाक्वाथोद्भवं तुत्थं रसाञ्जनम्

रसाञ्जनम्. (2) – रसगर्भ (नपुं), तार्क्ष्यशैल (नपुं)
गन्धकः. (2) – गन्धाश्मन् (पुं), गन्धक (पुं)
2.9.102.1 – रसगर्भं तार्क्ष्यशैलं गन्धाश्मनि तु गन्धिकः

गन्धकः. (1) – सौगन्धिक (पुं)
तुत्थविशेषः. (3) – चक्षुष्या (स्त्री), कुलाली (स्त्री), कुलत्थिका (स्त्री)
2.9.102.2 – सौगन्धिकश्च चक्षुष्याकुलाल्यौ तु कुलत्थिका

सन्तप्तपित्तलादुत्पन्नद्रव्यम्. (4) – रीतिपुष्प (नपुं), पुष्पकेतु (नपुं), पौष्पक (नपुं), कुसुमाञ्जन (नपुं)
2.9.103.1 – रीतिपुष्पं पुष्पकेतु पुष्पकं कुसुमाञ्जनम्

हरितालम्. (5) – पिञ्जर (नपुं), पीतन (नपुं), ताल (नपुं), आल (नपुं), हरितालक (नपुं)
2.9.103.2 – पिञ्जरं पीतनं तालमालं च हरितालके

शिलाजतुः. (5) – गैरेय (नपुं), अर्थ्य (नपुं), गिरिज (नपुं), अश्मज (नपुं), शिलाजतु (नपुं)
2.9.104.1 – गैरेयमर्थ्यं गिरिजमश्मजं च शिलाजतु

गन्धरसः. (6) – बोल (पुं), गन्धरस (पुं), प्राण (पुं), पिण्ड (पुं), गोप (पुं), रस (पुं)
2.9.104.2 – वोलगन्धरसप्राणपिण्डगोपरसाः समाः

समुद्रफेनः. (3) – हिण्डीर (पुं), अब्धिकफ (पुं), फेन (पुं)
सिन्दूरम्. (2) – सिन्दूर (नपुं), नागसम्भव (नपुं)
2.9.105.1 – डिण्डीरोऽब्धिकफः फेनः सिन्दूरं नागसंभवम्

सीसकम्. (4) – नाग (पुं), सीसक (नपुं), योगेष्ट (नपुं), वप्र (नपुं)
वङ्गम्. (2) – त्रपु (नपुं), पिच्चट (नपुं)
2.9.105.2 – नागसीसकयोगेष्टवप्राणि त्रपु पिञ्चटम्

वङ्गम्. (2) – रङ्ग (नपुं), वङ्ग (नपुं)
कार्पासः. (2) – पिचु (पुं), तूल (पुं)
कुसुम्भम्. (1) – कमलोत्तर (नपुं)
2.9.106.1 – रङ्गवङ्गे अथ पिचुस्तूलोऽथ कमलोत्तरम्

कुसुम्भम्. (3) – कुसुम्भ (नपुं), वह्निशिख (नपुं), महारजन (नपुं)
2.9.106.2 – स्यात्कुसुम्भं वह्निशिखं महारजनमित्यपि

कम्बलः. (2) – मेषकम्बल (पुं), ऊर्णायु (पुं)
शशलोमः. (2) – शशोर्ण (नपुं), शशलोमन् (नपुं)
2.9.107.1 – मेषकम्बल ऊर्णायुः शशोर्णं शशलोमनि

पुष्पमधुः. (3) – मधु (पुं), क्षौद्र (नपुं), माक्षिक (नपुं)
मधूच्छिष्टम्. (2) – मधूच्छिष्ट (नपुं), सिक्थक (नपुं)
2.9.107.2 – मधु क्षौद्रं माक्षिकादि मधूच्छिष्टं तु सिक्थकम्

मनःशिला. (4) – मनःशिला (स्त्री), मनोगुप्ता (स्त्री), मनोह्वा (स्त्री), नागजिह्विका (स्त्री)
2.9.108.1 – मनःशिला मनोगुप्ता मनोह्वा नागजिह्विका

मनःशिला. (3) – नैपाली (स्त्री), कुनटी (स्त्री), गोला (स्त्री)
यवक्षारः. (2) – यवक्षार (पुं), यवाग्रज (पुं)
2.9.108.2 – नैपाली कुनटी गोला यवक्षारो यवाग्रजः

यवक्षारः. (1) – पाक्य (पुं)
स्वर्जिकाक्षारः. (3) – स्वर्जिकाक्षार (पुं), कापोत (नपुं), सुखवर्चक (पुं)
2.9.109.1 – पाक्योऽथ सर्जिकाक्षारः कापोतः सुखवर्चकः

स्वर्जिकाक्षारः. (2) – सौवर्चल (नपुं), रुचक (नपुं)
वेणुजन्यौषधिविशेषः. (2) – त्वक्क्षीरी (स्त्री), वंशरोचना (स्त्री)
2.9.109.2 – सौवर्चलं स्याद्रुचकं त्वक्क्षीरी वंशरोचना

शोभाञ्जनबीजम्. (2) – शिग्रुज (नपुं), श्वेतमरिच (नपुं)
इक्षुमूलम्. (1) – मोरट (नपुं)
2.9.110.1 – शिग्रुजं श्वेतमरिचं मोरटं मूलमैक्षवम्

पिप्पलीमूलम्. (3) – ग्रन्थिक (नपुं), पिप्पलीमूल (नपुं), चटकाशिरस् (नपुं)
2.9.110.2 – ग्रन्थिकं पिप्पलीमूलं चटकाशिर इत्यपि

भूतकेशः. (2) – गोलोमी (स्त्री), भूतकेश (पुं)
रक्तचन्दनः. (2) – पत्राङ्ग (नपुं), रक्तचन्दन (नपुं)
2.9.111.1 – गोलोमी भूतकेशो ना पत्राङ्गं रक्तचन्दनम्

शुण्ठीपिप्पलिमरीचिकानां समाहारः. (3) – त्रिकटु (नपुं), त्र्यूषण (नपुं), व्योष (नपुं)
हरीतक्यामलकविभीतक्यां समाहारः. (2) – त्रिफला (स्त्री), फलत्रिक (नपुं)
2.9.111.2 – त्रिकटु त्र्यूषणं व्योषं त्रिफला तु फलत्रिकम्