विदग्धा वाक्

इक्षोरग्रात् क्रमशः पर्वणि पर्वणि यथा विशेषरसः ।

तद्वत् सज्जनमैत्री विपरीतानां च विपरीता ॥

–नीतिद्विषष्टिका १६

इक्षोः अग्रात् क्रमशः पर्वणि पर्वणि यथा विशेषरसः । तद्वत् सज्जन-मैत्री विपरीतानां च विपरीता ॥

यथा इक्षोः अग्रात् पर्वणि पर्वणि क्रमशः विशेषरसः (निष्पद्यते) तद्वत् सज्जन-मैत्री (अपि भवति)। विपरीतानां च विपरीता (भवति) ॥

ईख के ऊपर से प्रत्येक गठान के बीच वाले भाग में जैसे विशेष रस होता है, वैसे ही सत्पुरुषों की मित्रता होती है। और उससे भिन्न (दुर्जनोंकी) विपरीत होती है।

The friendship of noble-souls is like a sugar-cane that is sweeter from above, in every part and that of the opposite is reverse https://pharmacieinde.com/cialis-oral-jelly/.