२३३ . ।। तृष्णा ।।

अतितृष्णा न कर्तव्या

तृष्णां नैव परित्यजेत् ।

शनैः शनैश्च भोक्तव्यं

वित्तम् स्वयमुपार्जितम् ॥

कुठल्याही गोष्टीची अत्याधिक ईच्छा बाळगू नये . त्याचवेळी ईच्छांचा सर्वत्यागही करु नये . आपण स्वतः कमावलेल्या धनाचा हळूहळू उपभोग घ्यावा buscar.

अधिक इच्छाएं नहीं करनी चाहिए पर इच्छाओं का सर्वथा त्याग भी नहीं करना चाहिए । अपने कमाये हुए धन का धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिए ।

Extreme hankering should be avoided without rejecting desire itself. One should steadily enjoy self-earned wealth in moderation.